ट्रेन नदी नाले पार करती चली जा रही थी। जब भी किसी नदी नाले के पुल को पार करती तो पहिए की गड़गड़ाहट से पूरा तन मन रोमांच से भर जाता था। अभी थोडी देर पहले डिब्बे मे एक अलग सा उतावलापन था। पूरा परिवार साथ बच्चों के साथ ही बडे भी बहुत उत्साहित थे।
परिवार की सबसे बड़ी लडकी रागिनी के लिए लड़का देखने जा रहे थे। यात्रा की थकान और सुबह जल्दी जागने के परवाह मे जल्दी जल्दी सभी सो गये। मां और पिता के अतिरिक्त उस कुमुदिनी की आंखो मे भी नींद नही थी जिसके नव पल्लवित जीवन का मधुमास आने वाला था। यौवन की धरा पर पांव रखते मानव का मन इक अलग ही ऊंचाई पर उड़ता हैं। मन मे रह रहकर स्वप्न के तार झंकृत होते तो नवयौवना अपनी आंखो को बंद कर उस शहद को चुप घुलने देती, बारबार ममेरी बहन स्मिता के शब्द याद आते।
विचित्र आकर्षण है विवेक मे जितना सुन्दर है उतना ही सौम्य और वाकपटू ऐसा की अंजाने को भी पल भर मे अपने रंग मे रंग ले। यह सब याद कर वह लाजवंती हल्की सी मुस्कराहट के साथ शर्मा जाती थी। ईश्वर मानव जीवन मे कितने अलग अलग रंग भरता है। यौवन यात्रा मे कितने आकर्षक प्रस्तावों से सामना हुआ था पर किसी को हां नही कहा शायद इसी सुन्दर विकल्प हेतु विधाता ने मेरा हृदय किसी से जोड़ा ही नही। इन माधुर्य विचारों मे मग्न युवती को भान भी न रहा कब नींद आ गई सुबह पापा हडबडी मे सबको जगा रहे थे। अगला स्टेशन 10मिनट मे आने वाला था। हालांकि गाड़ी 15मिनट तक रूकती थी पर इतने लोगो का सुरक्षित उतारना भी चुनौती थी। प्रभु कृपा से सब कुछ बहुत सहजता से हो गया। नियत समय पर सभी तैयार होकर होटल पहुंच गये हल्के फुल्के नाश्ते का दौर साथ साथ बातें लगातार चलती जा रही है। शीघ्र ही दोनो पक्ष परस्पर घुल मिल गये और वह समय आ गया जब वर वधू को आपस मे बात करने हेतु समय दिया गया। हृदय दुगुनी गति से धड़क रहा था। होटल के लान मे किनारे एक बेंच पर दोनो बैठे थे। बातें शुरू हुई। पहले संभल कर धीरे धीरे पर फिर जैसे भावनाएं अब बुद्धि के वश से बाहर हो रही थीं पर मर्यादा का विचार करते हुए एक दूसरे को पहचानना भी आवश्यक था। रागिनी और विवेक सहमति के काफी करीब थे की सहसा अश्विन ने रागिनी को सजग करते हुए पूछा, मेरा एक अतीत है जिसका ज़िक्र किये बिना मैं आगे नही बढना चाहता। रागिनी हल्की सी सतर्क हो गई धीमे से बोली बताइये।
मेरे जीवन का एक अतीत है हालाँकि उसकी कोई प्रासंगिकता शेष नही है फिर भी।
रागिनी पूरी तरह चौंक गई थी।
विवेक सहजता से कहता चला गया, चेहरे पर दर्द के भाव, विछोह की पीड़ा सब परिलक्षित थे।
रागिनी दुविधा मे थी, यह क्या! हे ईश्वर मेरे हिस्से मे यह विचित्र अधूरापन क्यों। अभी वो ऐसा सोच ही रही थी की विवेक ने कहा "परन्तु अब यह मेरे लिए मात्र एक बुरे स्वप्न की तरह है। जिन्हे मै अपनी असफलताओं की भांति कभी याद नही रखता"।
हां आज तुम्हे बताना जरूरी समझा मै अपनी होने वाली अर्धांगिनी से कोई रहस्य नही रखना चाहता था।
यह तो जितना सहज है उतना ही निर्मल भी धीरे धीरे रागिनी विचारमग्न थी उसका संशय छंटता जा रहा था। निर्णय की घड़ी उसके नजदीक आ गई थी विकल्प की स्वीकार्यता पर उसका निर्णय और ढृढ़ होता जा रहा था।
विवेक ने अपनी बाते समाप्त की और फिर दोनो ने आपसी सहमति से वहां से चलना प्रारंभ किया।
मुझे अतीत के उतार चढाव से सहानुभूति तो है पर कोई शिकायत नहीं,बेंच से उठ कर अपनी साडी का पल्लू संभालती रागिनी ने कहा था।
मारा सरोकार वर्तमान और भविष्य से हैं, मुझे उसका आश्वासन चाहिए और साथ भी।
सहमति के इस अद्भुत प्रस्तुतीकरण से दोनो ही आह्लादित थे
#Ssps96
:-शशिवेन्द्र "शशि"