जीउतिया
जीवित्पुत्रिका व्रत में मां निर्जल व्रत रखकर संतान की लंबी आयु एवं स्वस्थ, समृद्ध जीवन की कामना करती हैं। इसे मध्य पूर्व भारत मे "जीउतिया" के नाम से जाना जाता है। बल्लभ की मां हर साल श्रद्धापूर्वक यह व्रत करती थीं। बड़ी मान और मनौतियों के बाद इकलौता पुत्र पैदा हुआ, बचपन से ही उसकी इच्छा सेना मे जाने की थी हालांकि माता का विरोध था लेकिन इकलौता पुत्र अपनी आकाक्षांए पूरी करवा कर ही लेता हैं।
भर्ती रैली मे बल्लभ भी चयनित हुये। पिता तो समझते थे कि जीवन मृत्यु तो विधाता के हाथ मे हैं लेकिन मातृभूमि की सेवा सबसे बड़ा पुण्य हैं। वो बड़े खुश थे पर मां इन बातों को नही समझती और बड़ी अनिच्छा से प्रशिक्षण पर जाते पुत्र को विदा किया था।
पठारी क्षेत्र की प्रतिकूल जलवायु के बावजूद सैन्य खान पान और अनुशासित शैली से स्वास्थ्य ठीक था। 1962 के बाद से अब तक चीन से हमारी सरकार के संबंध औसत ही रहें अचानक जब पिछले कुछ वर्षों मे सीमा पर चीनी सक्रियता बढ़ गई है तो सैन्य टकराव के आसार बढ़ने लगे। अतः परिणामस्वरूप भारत सरकार ने सीमा पर चौकसी बढ़ा दी सीमा का स्थायी रेखांकन न होना भी टकराव के मुख्य कारणों मे से एक था।
लद्दाख की एक चौकी "तेनांगसा" पर 20 जवानों की एक सैन्य टुकड़ी तैनात थी।
रात के लगभग दो बजे होगें, एक सिपाही अभय बोला दो तीन दिनो से चीनी पक्ष मे कोई हरकत नही है बिल्कुल शांत हैं, पता नही लौट गये क्या?
शायद उन्हे समझ आ गया है की पडोसियों से मिलकर रहने मे ही भलाई है दूसरे सिपाही गोतराम ने कहा।
नही जवान, चीनी दुश्मन और पहाड़ी नदी का कभी भरोसा नहीं करना, मुत्थू उस्ताद अपनी टूटी फूटी हिन्दी में बोला
(फौज मे जवान टुकड़ी मे अपने वरिष्ठ सिपाही को उस्ताद बोलते हैं)
एक सीमित हंसी के बाद पहरे वाले जवानों के अतिरिक्त बाकि सब थोड़ी झपकी लेने लगे, करीब आधे घंटे बाद हुई चहल पहल से उनकी नींद टूटी और सामने नदी पार कर 50 से ज्यादा चीनी आते दिखाई दिए।
यह इनके हाथों मे क्या है किसी ने धीरे से कहा, हथियार?
नही अरे नही, जवान मेहरसिंह ने फिर समझाते हुए कहा
सीमा समझौते मे हथियार साथ न रखने की बाध्यता है।
फिर हल्की रौशनी मे देख पाना भी मुश्किल हो रहा था।
थोड़ा नजदीक आने पर पता चला डंडे और राॅड है।
मुत्थू नफरी का उस्ताद था झट रेडियो पर पड़ोसी टुकड़ी को इत्तला दी गई इतनी देर मे चीनी और नजदीक आ गये।
मुत्थू अंग्रेजी का जानकार था दो सैनिको को साथ ले बात करने को आगे बढ़ा पर चीनी सैनिक ने आव देखा न ताव और बिना एक भी शब्द बोले प्रहार कर दिया।
एक डंडा मुत्थू के सिर पर लगा वो वहीं जमीन पर गिर गया बाकी भारतीय सैनिक अब नहीं रूक सकते थे। चीनियों पर टूट पड़े पर अब संख्या और कम रह गई जबकि चीनी पचास से ज्यादा थे और डंडो से लैस।
अरे देख क्या रहे हो मारों इन्हें, गोतराम ने गाली देते हुए ललकारा फिर क्या हिन्दुस्तानी जवान चीनियों पर वीरभद्र की भांति टूट पड़े।
इन चीनियों की इतनी औकात मेहरसिंह दहाड़ा, हर भारतीय सिपाही 4-5 चीनियों से जूझ रहा था। कुछ को नीचे बहती नदी मे फेंका गया किसी की गर्दन तोड़ी गई बल्लभ के कबड्डी और कुश्ती वाले दांव भरपूर काम आये।
एक चीनी की गर्दन पर लात रख दी दो को कांख मे दबा लिया, खाते पीते घर का अकेला लड़का चाल चलन से भी ठीक और बजरंगी की भांति शक्तिशाली पट्ठे ने दर्जन भर से ज्यादा दुश्मनों को लपेट दिया पर संख्या मे अधिक चीनियों ने भी खूब उत्पात काटा। थोड़ी ही देर बाद सारे चीनी खामोश कर दिए गये और बल्लभ को मिलाकर भारतीय पक्ष से भी मात्र तीन लोग बचे थे। चोट और थकान से मूर्छित होकर जमीन पर पड़े जवानों की मदद को दूसरी नफरी पहुंच चुकी थी। घायल तीनो जवानों को तुरंत अस्पताल भेजा गया और शहीदों के शवों को मुख्यालय ले जाने का इंतजाम किया गया।
मां अगले दिन सुध बुध खोयी सी अस्पताल के अंदर पहुंची जहां घायल बल्लभ सोया हुआ था मां ने जीउतबंधन बाबा का धागा उसके माथे पर रख दिया।
रोते हुए बोली "हमरे बच्चा के रक्षा जीउतबंधन बाबा करिहें" संघर्ष वाली रात की शाम को ही जीवित्पुत्रिका व्रत मे बरियार वृक्ष पूजकर आयी थी। उसमें ईश्वर से प्रार्थना की थी
हे बर, हे बरियार जाके भगवान श्री रामचंद्र जी से कहो, बल्लभ के माई "जीउतिया" व्रत रखी हैं
#Ssps96
शशिवेन्द्र "शशि"
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