रामसुख महतो के नाम की तरह ही उनके जीवन मे राम का दिया सुख ही सुख था। दो स्वस्थ बैल, दो सुन्दर सुशील बेटे सुलक्षणी पत्नी चना चबैना जो भी होता था अपने घर का होता। सभी निरोगी थे और क्या ही चाहिए होता है एक गृहस्थ को। महतो एक जलसे मे गये वहां बिरहा कार्यक्रम मे एक गाना सुना
"हमरे दुगो ललनवा महान बाबू
एगो रहे सीमा पर एगो किसान बाबू।।"
महतो को यह जीवंत गीत भा गया यूं लगा जैसे यह गीत उनके लिए ही बना हो। उन्होने ठान लिया बड़े बेटे आनंद को सेना मे भेजेंगे और छोटे वाले अजय को खेती का काम देंगे। आनंद पढ़ने मे होशियार था और मेहनती भी खूब दौड़ भाग करता मेहनत करता। जब बारहवीं मे अव्वल आया तो पिता को बड़ी खुशी हुई। उसके दोस्त शहर की भर्ती रैली मे जा रहे थे आनंद भी उनके साथ हो लिया। बरसों से इसकी ही तैयारी थी अतः उसका सिलेक्शन हो गया। शाम को घर लौटकर जब यह खबर बूढ़े पिता को सुनाया तो महतो ने उसे गले से लगा लिया।
फौज की ट्रेनिंग बड़ी कठिन होती है आनंद ने उसे जी-जान से पूरी कर पोस्टिंग प्राप्त की। कच्छ के रण की अपनी अलग ही कठिनाईयां थी जैसे नंगे पैर नही चल सकते, जहरीले सांप बिच्छूओं का कदम कदम पे खतरा पर पहली पोस्टिंग और जवानी के दिनों में अपने सपने के पूरे होते देखने के उत्साह के सन्मुख यह कुछ भी नही था। आनंद की शादी के लिए दूर दूर से रिश्ते आने लगे, जाति गोत देखकर मास्टर ब्रजनाथ की बेटी से लगन तय हुआ। मास्टर की बेटी पढी लिखी थी सुन्दर और सुशील भी। शादी हुई परिवार बढ़ा आनंद का ओहदा भी बढ़ गया सिपाही से हवलदार और इधर महतो छोटे बेटे के साथ खेतों मे जमकर मेहनत करते घर मे चार लोग कमाने वाले आस पड़ोस के खेत भी खरीद लिए।
अब महतो की गिनती इलाके के संपन्न लोगो मे होने लगी। छोटे बेटे के लिए और अच्छे रिश्ते आने लगे, पड़ोस के गांव के ओंकार महतो का शहर मे अच्छा काम जम गया था लोग इज्जत से ओंकार बाबू कहने लगे थे। शादी तय हुई और नई बहू दहेज मे ट्रैक्टर ले आई। ट्रैक्टर बड़े कमाल की चीज था बीघा भर खेत कम समय मे ही जोत देता था। पर महतो को जाने क्यो इससे ज्यादा अपने बैलों से स्नेह था ट्रैक्टर के नखरे अलग महंगा तेल पीता था घड़ी घड़ी नखरे कभी पिसटन तो कभी पहिए हमेशा कुछ न कुछ गडबड़ी।
छोटी बहू भी थोडी अलग मिजाज की थी घर मे किसी से नही बनता बात बात पर ताने मारती थी। दरअसल व्यापारी पिता की इकलौती बेटी थी दिखावा उसके जीवन का अभिन्न अंग था। सुबह और शाम की ही भांति जन्म और मृत्यु भी धरती का अनिवार्य सच हैं। महतो के स्वर्गवास के बाद दोनो भाई बंटवारे के लिए आमने सामने थे। बहुओं ने अपने अपने पसंद के पंच बुला लिए दोनो भाई भी पत्नियों के आग्रह पर आ गये। दरवाजे पर इक छोटी भीड़ इकट्ठा थी सामान बराबर बांट कर रख दिए गये थे, बूढी मां चुप बैठी देख रही थी। एक पंच ने आवाज लगायी हां भाई तुम दोनो बोलो कौन सा हिस्सा किसे चाहिए।
आनंद बोलता इससे पहले ही अजय बोला " बाबूजी के बाद भैया ही बड़े है सब उनकी ही कमाई से खरीदा है उन्हें जो चाहिए वो वापस ले लें।
आनंद उसे रोकते हुए बोला " हां मेला बाजार मे तो हमसे पहले तुम खिलौना लेते हुए आया है। अपनी मेहनत से तुमने दो का चार किया है आज भी तुम ही पहले बोलो, यह कहते हुए उसका गला भर्रा गया।
छोटा रोते हुए उससे लिपट गया। दोनो भाई एक दूसरे को अंक मे भर कर रोने लगे असमंजस पंचो की भी आंखे नम हो गई। बहुएं लज्जित सी ड्योढी मे अपने पतियों के इस कारनामें को आश्चर्य से देख रहीं थीं।
बुढ़िया महतो वाला पुराना गीत गुनगुनाते अंदर हुक्का भरने चली गई।
#Ssps96
शशिवेन्द्र "शशि"
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