सोमवार, 21 नवंबर 2022

आहूति

 पिता की मौत होने के बाद घर की जिम्मेदारियों से प्रभावित अमरेन्द्र एक छोटे से अस्पताल मे सुरक्षाकर्मी की नौकरी करने लगा। पिता की छत्र छाया मे कभी खाने पीने की कमी नही रही थी खाने पीने के शौकीन हल्की मूंछो वाले अमरेन्द्र का बजरंग बली मे बड़ा भरोसा था। नौकरी के पहले दिन से ही अपने मिलनसार व्यवहार से उसने सबका हृदय जीत लिया था। 



धीरे धीरे समय बीतता गया जिम्मेदारियां बढ़ती गई पुराने लोग खत्म हो गये समय के साथ अस्पताल का बिजनेस भी बढ़ा कुछ नही बढा तो वो था अमरेन्द्र का ओहदा। तीस वर्षों से उसी पद पर रहे। दशकों लंबा आयुर्वेदिक इलाज करा रहे मरीज हर महीने मिलते थे उनसे खूब जन पहचान थी। तनख्वाह के अतिरिक्त कुछ उपरी आमदनी भी हो जाती थी बात व्यवहार मे कुशल अमरेन्द्र का कभी कभी झगड़ा भी हो जाता था। जिस संस्था को अपना खून पसीना दिया उसने कभी न्याय नही किया दीवाली के बोनस के अतिरिक्त कोई अलग प्रोत्साहन नही।

अस्पताल का काम बढा वह एक शोध और शिक्षण संस्थान मे बदल चुका था 



सभी पुराने स्टाफ की तरक्की हो गई थी यहां तक की काउंटर पर पर्ची बनाने वाले क्लर्क भी अब मैनेजर बन कर मोटी सैलरी लेने लगे थे पर पाल का काम अब भी वही था। फिर भी ईश्वरीय शक्ति मे यकीन कर बडी निष्ठा से काम करता रहा जब अस्पताल के सुरक्षा व्यवस्था का टेंडर जारी हुआ।

बड़ी बड़ी प्राइवेट सुरक्षा एजेन्सियों ने दिलचस्पी दिखाई अमरेन्द्र ने भी एक छोटी सी कंपनी बनाकर टेंडर डाल दिया था। मालिक का बेटा रोहन जो स्विट्जरलैंड मे कहीं सैटल था वो पाल को जानता था उससे सिफारिश की तो उसने हां कर दिया। मगर मणिदास ने ऐन वक्त पर अडंगा लगा दिया और होता होता काम रूक गया। सहकर्मी और कंपनी को तेज तर्रार बन्दा नही चाहिए था। कुछ बहाने से पाल को छुट्टी दे दी गई और वह बेरोजगार हो गया।

मुसीबतें अकेले थोड़े आती हैं, संक्रामक बीमारी कोरोना ने कोढ मे खाज कर दी, बीमार हुए तो इसी अस्पताल मे भर्ती हुए।



संक्रमण ज्यादा था इलाज के दौरान मौत हो गई परिवार वालों को शव देने हेतु अस्पताल ने लाख का बिल बनाया।

वर्षो से आर्थिक परेशानी से जूझता परिवार बिल चुका पाने मे असमर्थ था। बेटा और पत्नी अस्पताल के हैड के पास गये, विनती की हाथ जोड़े तब पसीजकर अस्पताल प्रशासन ने करूणा दिखाते हुए अपने पूर्व कर्मचारी की सेवाओं को ध्यान मे रखते हुए बिल मे 30 प्रतिशत का डिस्काउंट दिया। पाल का खरीदा एक ही प्लाट रह गया था, वह औने पौने दाम मे बेच कर बिल का भुगतान कर शव का अंतिम संस्कार किया गया।

#Ssps96

:-शशिवेन्द्र "शशि"

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