बुधवार, 9 नवंबर 2022

व्यथा

 व्यथा

अंजू की खांसी रूकने का नाम न ले रही थी छोटी बहन मंजू ने दवा पिलाई पर बेअसर कोई फ़ायदा नहीं। कल भी दिन भर खांसती रही यह रोग का आखिरी चरण हैं। डाक्टर ने भी घर पर ही रखने की सलाह दी है।

लाला अमरपाल के दो बेटियों मे मंजू छोटी थी जन्म के समय ही मां के गुजर जाने के बाद जब से होश संभाला बड़ी बहन अंजू ही उसकी देखभाल करती रही थी। 

लाला व्यापार के चक्कर मे हफ्तों बाहर रहते थे तब दोनो बहनें एक दूसरे का सहारा बन दिन गुजारती थीं।

समय बीता अंजू की शादी हुई शैलेन्द्र बड़े हंसमुख और खुशमिजाज थे खूब ठिठोली करते थे। बेटे बेटियों से भरे पूरे इस खुशहाल परिवार मे बस मां की कमी झलकती थी उनकी याद बरबस आंखे नम कर जाया करती। जब लाला की भी आंखे भर जाती तो अंजू संभालती बाबा पुरूष भी कहीं रोया करते है रोने पर तो महिलाओं का एकाधिकार हैं इस ठिठोली से सब हंस पडते। लेकिन जबसे अंजू को फेफड़े के कैंसर का पता चला है पूरे घर की हंसी गायब हो गई है। रही सही कसर आज शैलेन्द्र की मां के फोन ने पूरी कर दी। बहुत बुरा भला कहा, निष्ठुर कह रहीं थी कि बीमार लड़की से शादी करा दी, भला ऐसा कोई कैसे कह सकता है। उसे क्या पता पिता को किस कद़र अजीज होती हैं बेटियां और भला ये परमात्मा को क्या हो गया है। हमारे हिस्से मे सिर्फ घोर दुख और अपनों का विछोह ही लिखा हैं। 

ऐसा भी कहीं होता है क्या कोई अपनी बेटी को कैंसर जैसी बीमारी से.... यह बोलकर लाला फफक कर रो पड़े थे अचानक कमरे मे से अंजू की कराहती आवाज आयी बाबा पुरूष भी कहीं....


हां हां चल मै रो थोड़े रहा हूं, लाला झट आंसू पोछते हुए उसके कमरे की तरफ भागे। एक बहादुर योद्धा की तरह उसके सामने खड़े हो गये। उसने क्षण भर देखा और कहा बाबा शर्त लगा लो रो रहे थे आप। इस कला में विधाता ने स्त्री को एकाधिकार दिया है मां और बेटी के तौर पर दोनो ही समान रूप से अपने पुत्र और पिता के गूढ़तम मनोभावों को ताड़ जाती हैं। पुरूष इन दोनो से ही अपनी भावनाएं नहीं छिपा सकता हैं।

मां जी क्या कह रही थी बाबा?

अब तो लाला का मन चीत्कार उठा एक बच्चे  की भांति जोर जोर से रोने लगे। अंजू ने अपना बायां हाथ सिर झुकाए पिता के कंधे पर रखा "ठीक ही तो है बाबा उनका इकलौते लड़के का जीवन अधर मे हैं हर मां ऐसा ही सोचती हैं मुझे भी तो अपने बच्चों की ही चिंता हैं"। लाला के मन में सैकड़ो प्रश्न थे उससे लड़ने का जी करता था सामान्य दिन होते तो भयंकर तर्क और तकरार होती पर आज, वो भी अपनी ही बिटिया से जो कुछ दिनों की..  खैर, आंसू पोछ कर आगे बढ़ लिए।

उसने फिर टोका, बाबा बताओ तो क्या  कह रही थीं?

लाला टालना चाहते थे पर उसकी जिद के आगे विवश थे। गहरा दर्द उस धधकती आग की तरह है जो फौलाद को भी आकार बदलने पर मजबूर कर देती है इसी तरह लाला एक ही सांस मे पूरी बात बोल गये,

बोले उसकी मां अपने बेटे की जिन्दगी खराब करने का मुआवज़ा चाहती हैं वो चाहती है तेरी बहन शैलेंद्र से शादी करले। बच्चों का वास्ता दे रही है अंजू मौन हो गयी उसे एक हिचकी सी आई और आंखे खुली रह गई थी लाला जोर से चीखे लेकिन प्राणपंछी अंतिम प्रयाण को निकल चुका था।

अंत्येष्टि के क्रिया कर्म की समाप्ति के बाद पुनः शैलेन्द्र  की मां आ धमकी लाला सिर पर हाथ रखे किंकर्तव्यविमूढ़ बैठे थे। समधन ने लाला से पूछा बताओ कौन करेगा इन बच्चों की देखभाल ।

मै और आप तो टूटे डाल के पंछी आज गिरे या कल कोई ठिकाना नहीं फिर इनका ठौर क्या रहेगा कौन थामेगा इनका हाथ।



मैं थामूंगी अब मेरी जिम्मेदारी हैं ये, बातें बढता देख मंजू कमरे से बाहर आयी, आरोप प्रत्यारोप का दौर रूक गया। उसके इस आश्वासन पर सभी खुश थे सभी को उसके मुख पर हर्ष प्रतीत हुआ जबकि पिता की चिंता अंजू के चेहरे की हल्की मुस्कान के पीछे छिपी "व्यथा" 

#Ssps96


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