सोमवार, 7 नवंबर 2022

उत्पीड़न:- रफा दफ़ा

जब शहर मे मोहन की क्लर्क के तौर पर नौकरी लगी तो उन्होने अपने बचपन के मित्र नेवास को नगर निगम मे नौकरी दिलाकर उनके इस अहसान चुकाया था। घर के इकलौते मोहन दशको पहले जब नौकरी की तलाश मे इस शहर में आये तो उनकी बूढी मां समेत खेतों और पशुओं की देखभाल करते थे नेवास। शादी ब्याह से लेकर तीज त्यौहार तक सब कुछ मे भाग लेते थे दोनो के परिवार, यहां पराये शहर मे दोनो ही एक दूसरे के असल संबंधी थे हालांकि यह रिश्तों का नही वरन नेह का नाता था।

गांव मे मोहन का दूध का पैतृक व्यवसाय था जो उनकी पीढियों से यह काम जमाया गया था जबकि नेवास गांव के अनुसूचित जाति से थे। शहर मे मां की अंत्येष्टि के बाद जब मोहन ने तीर-धनुष लिया तो उनको किसी और को छूना आदि निषेध था तब नेवास ने घर के दूसरे मुखिया के तौर पर सहयोग किया और जब निवास की पत्नी गर्भ से थी तो मोहन की बीबी ने जेठानी के तौर पर सारा भार अपने कंधे पर ले लिया। दिन राजी खुशी बीतते जा रहे थे दोनो के ही एक एक बेटे थे जो बड़े हो चले थे। निवास का बेटा अनिरुद्ध कॉलेज मे शिक्षक के तौर पर भर्ती हुआ था अच्छी तनख्वाह मिली तो चलने के लिए एक मोटर कार ले आया नौसिखिए को अभी तीसरा दिन ही था स्कूल मे गाड़ी से जाने का प्रभाव भी अलग वापस लौटते हुए मोहन के बेटे आर्यन के जिम के आगे खडी कुछ गाडियो को ठोक दिया। नौजवान खून उपर से ग्राहको का रिपेयर के लिए पैसे मांगने का दबाव होने पर आर्यन अकारण हुए इस नुकसान से आग बबूला हो गया उसने अनिरुद्ध को खूब खरी खोटी सुनाई, अपराध बोध मे घबराया घर का इकलौता अनिरुद्ध ऐसी बातें सुनने का आदी न था उपर से शिक्षकपद के सम्मान को धक्का लगने का अंदेशा और सरेआम हुई बेइज्जती वो बर्दाश्त न कर पाया।

तैश मे भरकर बोला कितना पैसा हुआ बता, अभी दे देता हूं।

आर्यन भी गुस्से मे भर गया था सोचा इसे अब छोटे बड़े का लिहाज भी नही रहा जरूर इसे सबक सिखाना पड़ेगा, उसने जोर से अनिरुद्ध का कालर पकड़ कर आगे की तरफ खींच लिया और दोनों में हाथापाई शुरू हो गया थी शोर सुनकर भीड़ जुट गई ज्यों मीठेपन से चींटिया बरबस  खींची चली आती है।

टकराव बढ़ा तो जिम् वाले आर्यन और उसके साथियों ने कोमल काया वाले मास्टर जी को बुरी पीट दिया। अनिरुद्ध किसी तरह से जान बचाकर भागा और थोडी दूर जाकर अपने तथाकथित जातीय व्हाटसप ग्रुप के एक नेता को मदद के लिए फोन किया। दरअसल नेता जी बड़े परोपकारी थे पहली मुलाकात मे ही सहयोग का वादा किया था। बोले जाति के किसी व्यक्ति पर होने वाले अत्याचार पर पीछे नही हटेंगे चाहे सर क्यूं न कटाना पड़े।थोड़ी देर मे ही जिम के बाहर भीषण संघर्ष शुरू हो गया कहीं कांच टूटा किसी को चोटें आयीं। गुस्साई भीड़ ने कार और जिम को भी नही बख्शा नजदीकी रेहड़ी खोमचेवालों पर भी जमकर गुस्सा उतारा गया।

मामला थाने पहुंचा विरोधी को ठीक से सबक सिखाने का प्रण किये अनिरुद्ध को नेता जी की सलाह पर हरिजन उत्पीडन एक्ट बिल्कुल सही दांव लगा।

नेता ने थाने की सेटिंग की और मात्र 50हजार मे ही आर्यन सलाखों के पीछे। जरूर नेता ने बड़ी सिफारिश की थी अन्यथा दारोगा ने 2 लाख रूपये की मांग की थी।

इतनी ही देर में दूसरे पक्ष के लोग भी आ गये जमकर नारेबाजी शुरू हुई परन्तु जिन्दाबाद मुर्दाबाद के नारों के बीच भी लोगो का सहयोगात्मक रवैया बना रहा कोई व्यक्ति किसी भी पक्ष से नारे लगा लेता था आवाज कम होने पर सामूहिक नारेबाजी होती थी। इस जीत के तुरंत बाद आयोजन हेतु नेता के सुझाए ठिकाने पर मुर्ग और दारू की दावत दी गई, खर्चा पहली बार शराब चखे अनिरुद्ध के माथे आया तक़रीबन 50 हजार और देने मे ही निपटान हो पाया। इंसान अपमान और सम्मान खातिर कभी भी धन की परवाह नही करता सीमा से बाहर जाकर खर्च करता है।

देर रात खबर मिली तो नेवास को साथ ले मोहन थाने पहुंचे, थानेदार की मिन्नते, मान मनौवल सब बेअसर क्यूंकि अब तो जमानत कोर्ट से ही मिलेगी और यह रात तो कैदी की जेल में हीं बीतेगी।

यहां अनिरुद्ध का मोबाइल भी बंद आ रहा था दोनो वहीं थाने के कैम्पस मे ही बेंच पर बैठे रहे जैसे इन दोनो के जन्म पर अस्पताल परिसर मे बैठना पड़ा था।

सुबह जमानत के कागज तैयार हुए दोनो अपमानित युवक अपने अपने घर पहुंचे अपना निर्दोष होना और दूसरे का सारा दोष नमक मिर्च लगाकर बताया। माता का हृदय वात्सल्य की आग पर सहस्रों गुना तेजी से पिघलता है फिर वो गलत सही सब कुछ बहा ले जाता है। बरसों का प्रेम, सहयोग, समर्पण और एक दूसरे की खातिर रतजगे सब कुछ भूलकर दोनो महिलाओं मे खूब झगड़ा हुआ एक दूसरे को नीचा दिखाने हेतु दोनो ने अपनी अपनी सास और गांव से दी गई सूचनाओं का भी जमकर प्रयोग किया। जातिगत टिप्पणी, पुरखों के काम काज आदि कुछ भी शेष नही बचा। इस बीच मुहल्ले वालों को भी खूब मसाला मिला तीन दशकों से परिवार की तरह रहने वालों मे टकराव का सुख भला कौन जाने देगा।

इधर डीएस पी कार्यालय के बाहर दोनो बुजुर्ग चुप बैठे थे समय बिताने के लिए बीडी सुलगा सुलगा कर अपनी झुंझलाहट को मिटने की कोशिश कर रहे थे 

हालांकि साहब तो आज सुबह 10 बजे ही आ जाते है लेकिन नौसरिया चौकी पर एक जातीय संघर्ष हो गया है जिसमें अनुसूचित जाति के एक लड़के को बहुत मारा गया है। वह अस्पताल मे जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। पहले साहब उसी के परिवार से मिलेंगे, सिपाही ने कहा था।

कहीं आप जिम वाले झगड़े की बात तो नही कर रहे :- नेवास ने टोका

हां वही, क्या हुआ था सुना हमारी जाति के लड़के को बहुत मारा है (सिपाही ने खैनी रगडते हुए कहा)

नहीं साहब, दो चचेरे भाइयों मे झगड़ा हुआ गलती से वे दोनों मूर्ख थाने आ पहुंचे :-मोहन ने समझाते हुए कहा

इतनी देर मे रौबदार अंदाज मे काला चश्मा लगाए डीएस पी जतनसिंह आ गये थे। आते ही उन्होंने दोनों को अपने सामने बुलाया

हमारा कोई उत्पीड़न नही हुआ है साहेब, यह तो एक घरेलु झगड़ा है जिसको हम बरसो से ऐसे ही आपस मे बात चीत से ही सुलझा लिया करते हैं आप को कष्ट हुआ हमें माफ करें ( नेवास ने हाथ जोड़कर डी एस पी से निवेदन करते हुए कहा)

कृप्या इसे यही खत्म करें दोनो मित्र हाथ जोड़कर बोले, सिंह साहब प्रोन्नति से आये तजुर्बे वाले अधिकारी थे उन्हें हर दौर का असल तजुर्बा  था वो झट सारा माजरा समझ गये। तत्काल उन्होने सबके लिए चाय मंगाई अपने दौर की कुछ पुरानी बातें शुरू हुई और हंसी के कहकहे के साथ केस रफा दफा हो गया।

ट्विटर #Ssps96 

:- शशिवेन्द्र "शशि" 

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