जहां माथे पर कोई कर्ज नही और हरे भरे खेतों मे लहलहाती फसल के साथ ही दरवाजे पर दुधारू पछाही गाय बंधी रहती हो उस किसान के घर का सुख तो देवताओं के स्वर्ग जैसा है। जैताराम चौधरी के 80 किले खेत थे और चार बेटों संग भरा पूरा परिवार। हरियाणे के सुखी मानस मे से एक था वो। बड़े बेटे की दिल्ली मे नौकरी लगी तो वो सपरिवार दिल्ली रहने लगा। दो छोटे बेटे एक साथ ही हरियाणा पुलिस मे लग गये उनका भी शादी ब्याह हो लिया बाल बच्चों समेत वे भी ड्यूटी पर ही रहते। चौथा बेटा जयपाल बहुत मेहनती था पर कम पढ़ा लिखा तो घर और खेत संभालने की जिम्मेदारी उसकी ही थी। उसकी शादी भी नज़दीक में कैथल मे हुई।
गांव मे लिंगानुपात कम होने की वजह से अक्सर बहुएं बाहर से खरीद कर लायी जाती थीं।
इस मोलकी नाम के पीछे बड़ा खास उद्देश्य था जैसे ब्याह कर सम्मानित तरीके से लाई गई और मोल खरीदी गई मे सरे आम भेद बताना। भीड़ मे अपने पराये का अंतर बताना और साथ ही साथ अगले को भी उसकी औकात मे रखने का एक तरीका भी था। नई बहू की भाषा और व्यवहार दोनो बिलकुल अलग था।
वो गुमसुम सी रहती थी किसी बात पर कभी कोई आपत्ति नहीं करती। यूं लगता जैसे वो किसी बात से अवाक रहती थी किसी उलझन में लगती थी फिर भी बात व्यवहार मे बहुत शांत रहती थी। जल्दी ही उसने एक बेटे को जन्म दिया जो हलका सांवला सा था पर बड़ी बड़ी आंखो वाला बड़ा ही आकर्षक लगता था। उसका नाम किशोर रखा गया। धीरे धीरे समय बीतता गया लड़का बड़ा होनहार था वो कभी भी घरवालों को शिकायत का मौका नही देता जबकी जैताराम के बाकी नाती पोते अपना रास्ता भटक चले थे जो न भी भटके वे औसत दर्जे के ही थे। किशोर दसवीं मे भी अव्वल दर्जे मे पास हुआ था जिले मे उसके नाम की बड़ी चर्चा थी मजिस्ट्रेट ने खुद उसे सम्मानित किया था। अबकी बार हरियाणा राज्य की सरकार ने घोषणा की थी 12वीं की परीक्षा मे प्रथम तीन परीक्षार्थियों को विशेष पुरस्कार दिये जायेंगे। आज बारहवीं के परिणाम आने वाले थे। सभी परीक्षार्थी थोड़े बहुत नर्वस थे जाने क्या होगा। किशोर इन बातों से दूर घर और खेती के कामों मे मां के साथ लगा हुआ था। गेहूं की नयी फसल का भूसा आ गया था सुबह से उसे ढो ढोकर मां बेटा किनारे भैंसों के चारे वाले कमरे मे रख रहे थे। लगभग पूरा दिन इसमें बीत चुका था शाम के करीब चार बजने को आये किशोर भैंसो को चारा डालने जा रहा था की उसका एकमात्र दोस्त अजेश दूर से ही उसे आवाज लगाता हुआ दौडा चला आ रहा है। अरे भाई कमाल हो गया है तू टाॅप कर गया है। अजेश ने अखबार निकाला और परिणाम दिखाया किशोर ने मां की तरफ देखा गौरवान्वित मां सजल नेत्रों से उसे देख रही थी। झट उसने मां के पैर छुए, शाम तक दरवाजे पर लोगों का जमावड़ा लग गया डीएम स्वयं आने वाले थे।
बरामदे मे बैठे मजिस्ट्रेट ने किशोर को शाबासी देते हुए कहा आज से एक हफ्ते बाद मुख्यमंत्री तुम्हे सम्मानित करेंगे और जिले को जोड़ने वाली तुम्हारी गांव की सड़क का नामकरण तुम्हारे नाम पर होगा। यह रहा सहमति पत्र इसे भर दो बेटा।
किशोर ने भर कर पत्र वापस लौटाया तो मजिस्ट्रेट ने फार्म चैक किया तो समझाते हुए बोले बेटा लगता है नाम गलत भर दिया है। तुम्हारा नाम तो किशोर है न?
नहीं सर मेरा वास्तविक नाम इस गाँव मे यही है "मोलकी का"
मतलब, मजिस्ट्रेट के मुंह से निकला
मतलब ब्याह के लिए मोल खरीदी गई औरत से जना गया बच्चा जो की मै हूं, आलोचनात्मक और दर्द भरी मुस्कान के साथ किशोर बोला।
पूरी भीड़ यह बातचीत सुनकर निस्तब्ध निरूत्तर खडी थी जबकि थोड़ी दूरी पर "मोलकी" अपनी बहुप्रतीक्षित जीत पर मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
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शशिवेन्द्र "शशि"
SHASHIVENDRA SHAHI
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