पहलवान जतन चौधरी का इलाके मे काफी नाम था दूर दूर तक कुश्ती मे कोई सानी नही था। मन मे राष्ट्रीय स्तर पर कभी ना खेल पाने का मलाल रह गया था। माता पिता अधूरे सपने को अपने बच्चो की आंखों मे देखने लगते हैं जब शादी हुई और एक के बाद एक तीन लडकियां हुई तो जतन को अपना सपना टूटता दिखा।
मन मसोस कर रह गया छोरियां क्या पहलवानी करेंगी और फिर... खैर छोड़ो यह सपना छोड़कर जतन ने खेती और काम धंधे पर मन लगाना शुरू किया पहलवानी मे सीखी लगन और अनुशासन ने यहां भी रंग दिखाया और जल्दी ही क्षेत्र के सबसे समृद्ध किसानों मे गिनती होने लगी। बेटियां बड़ी हुई तो दो की शादी कर दी बस अब तीसरी बच रही थी। वो अभी कॉलेज मे पढ़ाई कर रही है सोचा पढ लिखकर अफसर भी लग जाये तो ठीक नाम हो जाये। पर उसका मन तो कही और ही है शायद नेतागिरी मे।
नेतागिरी मे आज तक हमारे खानदान से किसी ने कभी चुनाव ना लडा, हम वोट तक अनमने ढंग से डालते हैं फिर क्या करेगी यह चुनाव लड़कर। पिछली बार अपने कालेज के किसी चुनाव की बात कर रही थी। ना भैया ना मेरी बेटी नही लडेगी, हमारे खानदान की इज्जत दांव पर ना लगायेगी।
अबकी घर आती है तो शादी की बात चलाउंगा शादी कर अपने घर जा वहीं लडे चुनाव। जतन ने ट्रैक्टर पर बैठे बगल की सीट पर बैठी पत्नी से कहा। पत्नी चुप रही वो भी अच्छे खाते पीते घर से आयी थी थोडी बहुत पढी भी थी पर जतन के घर मे बोलने की ज्यादा स्वतंत्रता नही थीं सो चुप ही रहती थी।
जब बेटी ललिता अबकी घर आयी तो बाप बेटी मे बात शुरू हुई बेटी नई नई बातें बता रही थी। चौधरी बोलना चाह रहा था पर उसकी बाते सुनी तो चुप सुनता रह गया। बाते तो बड़ी अच्छी करती है सुन्दर तर्कपूर्ण समुचित उत्तर, चौधरी दाव पेच का सामंजस्य खूब समझता था उसे चर्चा की इस कुश्ती मे पुत्री से हारते हुए बड़ा अच्छा लगा।
कई दिन बीत गये बेटी की छुटटियां खत्म हो गई थीं अब वह वापस जाने वाली थी बाकी दोनो बिटिया भी छुट्टी मे आ गयीं थीं चौधरी ने सही समय देख ललिता को बुलाया।
ललिता आंगन मे पडें तखत पर बैठ गई चौधरी आंगन के मोढे पर बैठा बोला " बेटा जमाना खराब है, मुझे चिन्ता होती हैं, आजकल बेटियों के साथ हादसे हो रहे हैं। लोगो मे पाप पुण्य का भय खत्म हो गया है। मेरी बात मान अब शादी कर ले मैने एक लड़का देखा है। सुन्दर पढा लिखा है और दिल्ली पुलिस मे इंस्पेक्टर है। ललिता ठिठक गई बापू आज क्या हो गया, अचानक ये क्यों अभी सुबह तक तो सब ठीक था। जवान बेटी का बाप चिन्ता तो करेगा ही।
हां बापू पर मैंने ऐसा क्या किया, जो आप परेशान हो रहे।मै तो आपका ही नाम बढाउंगी। धीरे से ही सही सभी ने उसका समर्थन किया।
चौधरी निरूत्तर था चार औरतें वो अकेला पत्नी की तरफ इशारा करके बोला समझाओ इसे।
बड़ी बेटी बोली "पापा जी ललिता ने बहुत मेहनत की है उसे इस बार अपने मन की कर लेने दो।
चौधरी घूरते हुए मुड़ा ही था की पत्नी की आवाज आयी "जब बेटियां इतनी मिन्नते कर रही है तो इस बार खुद को ही समझा लो। बात व्यंग्यपूर्ण थी पर मर्मपूर्ण थी।
चौधरी मैने और मेरी बेटियों ने कभी तुम्हारी मूंछ नीची ना होने दी भरोसा रखो।
बात सही थी चौधरी चुप रह गया बेटी को बस स्टैंड तक छोड़कर आया।
समय बीतता गया एक दिन शाम को ललिता का फोन आया वो विश्वविद्यालय का छात्रसंघ का चुनाव जीत गई है। अगले दिन सुबह नौ बजे तक चौधरी के घर के आगे हजारों की भीड़ जुट गई बधाई देने वालों का तांता लगा था। फूल मालाओं से लदी ललिता ने पिता के चरण स्पर्श किए तो चौधरी की मूंछे बिना ताव दिए ही आसमान छूं रहीं थीं।
बेटी के इस सम्मान से अभिभूत चौधरी की आंखे विजय के गर्व से नम थी।
#Ssps96
शशिवेन्द्र "शशि"
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