गोताखोर
घाट पर नाव से यात्रियों को पार कराना नरेश मल्लाह का पुस्तैनी काम था। आधुनिक युग मे जब मोटर चालित स्टीमरों की वजह से काम कम हो गया था। लोग मोटर पर बैठ फर्राटा चलना चाहते थे रही सही कसर सरकार के पुल बनाने की तत्परता ने कर दिए थे।
अब यात्रियों के लिए लंबा इंतजार और फिर मोल भाव। जब खाने के भी लाले पडने लगे तो नरेश ने काम बदलने की सोची जाने गंगा मैया क्या ही कराना चाह रही हैं। अपनी गोद से क्यूं निकाल रही हैं सोचा था बाप दादा की तरह हम भी यहीं मुक्ति पायेंगे पर जैसी मैया की मर्जी। असमंजस के इस सागर मे गोते लगाते नरेश को यह भी ध्यान नही रहा की पुलिस की गाड़ी बगल मे आकर रूकी हैं।
यह नाव तुम्हारी है, सिपाही के प्रश्न से तन्द्रा टूटी
हां जी मेरी है, क्या हुआ
कप्तान साहब का परिवार नदी की सैर करने आया हैं।
उन सबको सैर करा दो।
नरेश समझ गया आज का दिन तो बेगारी मे ही जायेगा
सिपाही लोग आते रहते हैं कभी तस्कर, जुआरी और शराब पकड़ने पर भूले से कभी पैसे न दिए।
वह अनमने ढंग से उठा नाव पर सवार बिठा लिए और बरहा खोल कर नाव को कमर भर पानी में धकेल कर ले गया फिर बांस से धक्का देकर मुख्य धारा की तरफ को आगे बढ़ा ही था कि उनमे से एक युवती ने जयकारा लगाया गंगा मैया की जय!
सभी ने जयकारा किया पर हल्के और चौकते स्वर में लेकिन एक महिला थोड़ी लज्जित सी चुप रही थी। नरेश को कुछ समझ नही आया पर वह अनभिज्ञता दर्शाता चुपचाप नाव खेवने लगा।
नाव हिलती डुलती संभलती मुख्य धारा की ओर बढ़ रही थी। नदी के किनारे से पक्षियों का कलरव सुनायी दे रहा है हालाँकि टिटहरी की चीख से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो जा रहा था। बच्चे बड़े उत्साहित थे इस रोमांचित कर देने वाली यात्रा से नाव का अगला सिरा पानी को चीरता यूं आगे बढ़ रहा था जैसे कोई अश्वारोही शत्रु दल को परास्त करता चला जा रहा हों।
पानी की तेज धार नाव से टकरा कर अलग संगीत प्रस्तुत कर रही थी अक्सर यात्रा की आपा धापी में वह इस सुन्दर धुन को नही सुन पाता और जल्दबाजी मे मोटर की फट फट सुन कर लौट जाते थे। कितनी समानता है नदी और मनुष्य के जीवन में बचपन के किनारे से शुरू हो यौवन की बलवती धार को साधती दूसरे किनारे तक की वृद्धता। यौवन, सुन्दरता और आकर्षण के बारे मे सोचते हुए उसकी नजर उस लड़की की तरफ पड़ी 20 वर्ष के आस पास होगी चेहरे पर गजब़...
नाविक ठिठक गया उस युवती के चेहरे की तरफ देखते ही वह चौंक गया। उसके चेहरे का सारा लावण्य और मासूमियत भयानक गुस्से मे बदल चुका था। वो जोर से चीखी "अमित मैं भी आ रही हूं" और नदी मे छलांग लगा दी।
क्षण भर भी गंवाना व्यर्थ था नरेश भी कूद पड़ा नाव पर सभी चीखने चिल्लाने लगे। घाट से भी कुछ लोग मदद को नदी मे कूद पड़े।
नरेश झट युवती का हाथ बांधे अपनी तरफ खींचता किनारे की तरफ ले आया।
युवती की मां मल्लाह के पैरों पर गिर पड़ी युवती को भी थोडी देर बाद होश आ गया था। पता लगा किसी प्रिय के सदमे मे युवती कभी कभी विक्षिप्त हरकत कर देती थी।
कप्तान साहब को यह पता चला तो इस अहसान के बदले उनकी सिफ़ारिश पर नरेश को जिले की गोताखोर टीम मे तनख्वाह पर रख लिया गया।
ऐ गंगा मैया तोहके पियरी चढाइबें.... वाला गीत नरेश के कंठ से पुनः घाट पर गूंजने लगा।
#Ssps96
शशिवेन्द्र "शशि"
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