खेमू चौधरी गांव के मध्यमवर्गीय किसान थे चार बेटों मेवालाल, खूबलाल, रतिलाल और हरिलाल समेत भरा पूरा परिवार था। ठेठ मेहनती लोग अपने खेतों मे काम करते हर साल मंडी मे सबसे ज्यादा अनाज बेचते थे। खेमू ने बडी शराफत से अपने बच्चों की परवरिश की थी किसी का एक भी रूपया उधार नही, नशे का नाम तक नही। दौर बदला बच्चों के बच्चे हुए परिवार बडा हुआ।
दद्दा अबकी रतनू भी प्रधानी का मन बनाये है, अवधू मान जाता तो अच्छा रहता।
पर मेवालाल को प्रधानी का स्वाद खूब पता था और सब छोड़ो फटफटिया पर बैठ कहीं जाने पर जो सम्मान मिलता हैं, लोग कुर्सी से उठकर अगवानी करते हैं। पिछली दफा नरेनदर के ससुराल मे झगड़े की पंचायत मे गये तो प्रधान जी कह कर कितना सम्मान हुआ था।
अब यह मजा सेंती मे थोड़े गंवाया जायेगा। पर हरिया को भी रूष्ट नही करना है। क्या पता किसका बुरा मान जाये फिर सहोदर का रूठना तो किसी के हित मे नही रहता। इस असंतोष मे तो रावण दुर्योधन का राज पलट गया।
किशोर एक काम कर अबकी बार लास्ट अवधेश को लडाते है अगली बार रतन को। मेवा समझाते हुए बोला
किशोर मुंह से तो कुछ नही बोला था पर भाव पूर्णतया अनिच्छा झलक रही थी। मेवा ने झट भांप लिया उसे कई प्रलोभन दिए वार्ड सदस्य से लेकर जिला पंचायत तक सब बता दिया पर किशोर टस से मस न हुआ।
मेवा बड़ा था छोटे भाईयों से उसे ना सुनने की आदत थी नही, झुंझलाहट मे बोला चल फिर लड़कर ही देख ले किसके जूते मे दम हैं।
हरिलाल हालांकि भाई को ना कहने के अपराधबोध मे किंकर्तव्यविमूढ़ था पर भाई के इस अप्रत्याशित व्यवहार से उसे अवसर मिल गया और उसने इस बात की गांठ बांध ली। जब तक मेवा को अपनी गलती का अह्सास होता बहुत देर हो चुकी थी। उसने हरि को समझाने के सारे हथकंडे अपनाये उसकी पत्नी अपने लाडले देवर को समझाने खुद उसके घर पर आयी पर हरि एक ही बात की रट लगाये था दद्दा ने चुनौती दे दी है।बात जब किसी तरह नही संभली और चुनाव आ गये। दोनो पक्षों ने क्षमता से बाहर जाकर खर्च करना शुरू किया, खर्च सुरसा के मुह की तरह फैलता ही जाये गहने बेचे, मवेशी बेच दिए,खेत रेहन रख दिए और भी जहां कही से बन पड़ा लेकर चुनाव जीतने का दम बनाया गया। पर चुनाव तो एक खेल की भांति है, हार जीत लगी रहती है, मत बंटवारे की वजह से दोनो पक्ष हार गये थे। तीसरा व्यक्ति बाजी मार ले गया, इतना बड़ा दांव हारने के बाद दोनो ही पक्ष एक दूसरे पर क्रोधित थे बस फिर क्या खींच गई लाठियां और बिना अपनेपन का लिहाज किये बरस पड़ी एक दूसरे पर।
बड़े छोटे का लिहाज नही जिन हाथों ने गोद मे बिठाकर कभी गांव भर घुमाया था उन पर रत्तीभर मुरव्वत नहीं।थोड़ी ही देर मे सब लहूलुहान होकर धरती पर पड़ गये थे। गांव वालो ने उन्हे अस्पताल पहुंचाया इलाज के दौरान दोनो पक्षों के लोग असपताल मे भर्ती रहे। आधी रात का समय था खेमू सिर पर हाथ रखे अस्पताल के बाहर बैठे थे थोड़े समय पर जैसे ही अंदर से किसी के होश मे आने की खबर मिलती एक गहरी सांस के साथ एक बीड़ी सुलगा लेते थे।
#Ssps96
शशिवेन्द्र "शशि"
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