जीतन सिंह फौज से रिटायर हुए तो शहर मे बेटे बहू के पास फ्लैट मे रहने लगे। पाश सोसाइटी का फ्लैट आधुनिक सुविधापूर्ण पर जगह कम जान पडती थी। उनके अंदर का फौजी अनुशासन पक्का सुबह चार बजे जागते, पीटी परेड, रोल काॅल पर यह सिक्योरिटीज गार्ड के साथ ही बाकियों के लिए भी नीद मे खलल डालने जैसा था।
सब परेशान थे पर कौन समझाये, बीबी पहले ही गुजर चुकी थीं। बेटे ने एक बार प्रयास किया तो उसे जो फटकार पड़ी दुबारा किसी का साहस नही हुआ। जीतन से धीरे धीरे आस पडोस के लोग कन्नी काटने लगे थे। उन्हें भी शहर उबाऊ और नीरस लगने लगा था।
उनमें कुछ दिन के लिए अपने गांव जाकर पुस्तैनी मकान मे रहने की इच्छा जागृत हुई तो चल पड़े। यहां पास पड़ोस को जैसे नया जीवन मिला गया हो।
दूधिए से लेकर कामवाली तक सबने चैन भरी राहत की सांस ली। वहां गांव में अपने पुराने मकान की मरम्मत कराकर जीतन उसमें रहने लगे।
होसिल और चिंता उनके बचपन के दोस्त थे दिन भर गांव के ताल के किनारे ताश होता नये नये दोस्त मिलने लगते हालांकि जान पहचान पुरानी ही थी। रही सही कसर कैन्टीन वाली दारू कर देती।
एक दिन ताव मे लखन का लड़का अजीत बोला "चचा, दारू के साथ लालसर भी होती तो मजा आ जाता।
लालसर खाये एक अरसा हो गया था। बाबू जी के समय मे मिलती थी पर स्वाद अभी तक नही भूला है। बस फिर क्या तय हुआ टोली बनी और शिकार के लिए तो यही मौसम ठीक हैं। इसमे ताल मे प्रवासी पक्षी आते ही हैं।
अगली रात को दस बारह लोग के जाने की सहमति बनी। शिकार के लिए जरूरी सामान टार्च, टीन की थाली, जाल और नाव आदि जुटा लिए गये थे। कर्मा मल्लाह नाव चलाने मे मास्टर हैं। चिडिया के बगल तक चला जाये तब भी उसे पता ना चले। उसने दल मे सभी को उनका उनका काम समझा दिया था। शिकार का वक्त आ गया सभी पुरानी यादें ताजा करने चल पडे थे। रास्ते मे चिंता के पट्टीदार सोखा के पांव के नीचे सांप आ गया वो तो डीह बाबा रक्षा किये पनियहवां सांप था। पनियवहां सांप जहरीला नही होता है। थाली बजने के साथ ही शिकार की शुरूआत हो चली थी। सभी अपनी अपनी जगह पर दी गई भूमिका निभाने के लिए तैयार थे। टार्च की रौशनी मे आंखे चुधियां जाने से पक्षी घबरा जाते थे इतनी देर मे उन्हे लपेटकर थैले मे रख लिया जाता था। इसी लपकने के प्रयास मे हासिल पानी मे गिर पड़ा था। करीबन 20 से ज्यादा चिड़िया पकड़ ली गई थीं। जीतन ने सोचा यदि ऐसा ही चलता रहा तो दोबारी क्यूं ढो कर लाया। कर्मा ने धीरे से सबको वापस लौटने का इशारा किया सब वापस लौटने की जुगत मे लग रहे थे की जीतन को टार्च की रौशनी मे एक मोटी लालसर दिख पड़ी थी। शब्दभेदी निशाने से सबके बीच अपने निशानची होने का दबदबा बनाने की ललक मे उसने फायर झौंक दिया।
अचानक हुए इस हमले से सभी घबरा गये पक्षियों के झुंड मे हलचल मच गई और यह कोलाहल गांव तक पहुंच गया। सब ताल से बाहर निकले ही थे की सामने पुलिस की गाड़ी आती दिखी। सिपाही ने थोड़ा धमकाकर पूछा तो कर्मा टूट गया सब सच सच बता दिया।
प्रवासी संरक्षित पक्षियों के अवैध शिकार के जुर्म मे सबको थाने में लाया गया। रातभर सभी हवालात मे बंद रहे सुबह मिलने आये प्रधान जी ने बताया दरोगा ने 50,000 की मांग की है नही तो तस्करी का केस बनायेगा। सब रोने चिल्लाने लगे थे घबराये हुए कोई अपना सिर पीट रहा था। कोई जीतन को कोस रहा था। रोते पीटते बड़ी मुश्किल से 30,000 मे बात बनी। दल मे बाकि तो सब फट़क लाल थे निठल्ले सारा बिल जीतन के माथे पडा था। थानेदार ने बडा दिल दिखाते हुए थैले मे से एक लालसर जीतन को थमाते हुए कहा मेरी दरियादिली है जो इतने मे ही छोड़ रहा हूं नही तो इस जुर्म की जमानत ही नही है। आराम से चार पांच साल के लिए अंदर जाते और कचहरी का चक्कर लगाते सो अलग। जीतन चुपचाप 30,000 की कीमत देकर लालसर वाला थैला कंधे पर लटकाए घर की तरफ चल पड़े।
#Ssps96
:---शशिवेन्द्र "शशि"
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