रविवार, 6 नवंबर 2022

अधूरा वादा: संस्मरण

"भरारा" स्टेशन पर गाड़ी आज थोड़ी ज्यादा देर तक रूकी, नीलेश खिड़की से अपने गांव जाने वाले रास्ते को निहार रहा था। नरकट और सरपत के झुरमुटों से ढकी पगडण्डी और हल्की हवा से हिलते पत्ते जैसे सिर हिला हिला कर उसको विदा कर रहे हों

बरसों पहले पिता जी वहीं एक छोटी सी गुमटी पर इंतजार करते हुए मिलते थे, कुर्ता पाजामा पहने, पान से लाल होंठ मुस्कराते हुए, चरण स्पर्श करने के बाद वहां जुटे लोगों का अभिवादन और फिर बाप बेटे अपनी पुरानी बुलेट पर गांव तक उस पगडण्डी का 4 कोस का सफर लचकते हिलते डुलते पूरा करते थे, पहुंचने तक सांझ हो जाती थी, गाड़ी से उतरते ही ओसारे मे लालटेन जलाती मां दीखती पर घर मे घुसने से पहले कुल देवी को प्रणाम करके ही आगे बढ़ना होता था, मां आगे बढ़कर आंचल से ढक कर ढेरों आशीर्वाद देते हुए अंदर ले जाती थी।

बातें शुरू होती तो खाते-पीते, सोने तक खूब बातें पिछली पुरानी, विस्मृत, शरारती, ठिठोली खत्म ही न होने वाली पर पिता जी के सामने गंभीरतापूर्वक फिर जाने कब नींद आ जाती और सुबह नींद खुलती तब तक पूरा गांव जग जाता था।

पूरे घर मे उत्सव का माहौल रहता बाहर से मित्र और संबंधी भी मिलने आते थे, कुशल क्षेम के साथ ही दावत पर भी बुलाया जाना लेकिन इतने दिनो तक शहर का खाना फिर मां के हाथ के खाने का मौका कौन छोड़ दे।

सीधे मना भी नही कर सकते सो रोज मां को दो तीन लोगो के लिए अतिरिक्त खाना बनाना पडता था।

मां खुश रहती थीं, पूरा घर पुलकित रहता था लेकिन न जाने क्यूं छुटटियों के दिन जल्दी बीत जाते और लौटने की तैयारी शुरू हो जाती अभी तो ठीक से बातें भी ख़त्म नही हुई, वहां मंदिर मे जाना था, मामा के घर भी जाना है।

मां अबकी बार कैसे होगा लेकिन अगली बार जब आउंगा तब जरूर चलेंगे, यही अधूरा वादा हर बार करके नीलेश लौटता था मां चुप रह जाती थीं। अब जबकि बहुत कुछ बदल गया, ना पिता जी रहे ना ही वो गुमटी, रह गया तो सिर्फ नीलेश का बहुप्रतीक्षित वादा, वो भी आधा, अधूरा, अपूर्ण..........

ट्विटर #Ssps96

 :-शशिवेन्द्र "शशि"



1 टिप्पणी:

Freak Techies ने कहा…

Every middle class boy subconscious feelings 👌🙏

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