मनोज ने किसी तरह ग्यारहवीं तक पढाई की थी बारहवीं का बोर्ड न पास कर सके तीसरी बार मे हथियार डालकर तौबा कर लिया। आखिर बड़े बड़े लोगों के पास क्या डिग्री है जो अरबपति और खरबपति बने हुए हैं पैसे के लिए पढ़ाई जरूरी नही वो तो नौकरी की जरूरत है। चाकर बनने के लिए पढ़ो हम तो इतना पैसा कमायेंगे कि आस पास दस पचास गांव मे किसी पर नही होगा।
मनोज की घर पे खूब सम्मान था घर का इकलौता चिराग जो था सभी उसकी नींद सोते जागते थे। मां तो उसकी खातिर एक पैर पर रहती उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी करती उसकी चले तो चांद भी ला कर रख देती लेकिन पिता को दुनिया की कठोरता का भान था उन्होने देख रखा था पैसा नही होने पर लोग कदम कदम पर अपमानित होते हैं। वह हमेशा चिंतित रहते थे खूब समझाते पर मनोज पर जैसे कोई असर ही नही होता। वो एक कान से सुनता दूसरे से निकाल देता। समय बीतता गया और शादी ब्याह की बातें चलने लगी लेकिन पुश्तैनी सम्पत्ति पर लड़के को दहेज भले मिल जाये पर सम्मान नही मिल पाता हैं। दो तीन शादियां आयीं और सारी बातें हो जाने के बाद भी कुछ दिन बाद बताने का कहकर गये फिर कोई बात आगे न बढ़ पायी। अब शादी के लिए आने वालों के प्रति मनोज के मन मे एक आशंका सी हो गई थी एक तो लड़की के पिता ने सबके सामने ही बड़ी कटु बात कह दिया मामला हाथापाई तक पहुंच गया था। अपने दरवाजे की बात न होती तो आज तो मनोज क्या कर गुजरता लेकिन मामा और पिता ने बीच बचाव कर लिया। अंत में मामा और पिता के बीच भी झगड़ा हो गया आखिर मामा की ही अगुवाई मे यह शादी आयी थी।
मनोज को निठल्ला कहना पिता के मन को ये बात नागवार गुजरी थी और उन्होने भी आज पहली बार मनोज के तरफ से रिश्ते के लिए आये लोगों को खूब बुरा भला कहा था यहीं से बात बिगड़ी तो मामा बीच बचाव मे कूदे तो पिता ने उन्हें भी रपट दिया था। कैसे भननाते भुनभुनाते भागे थे मामा। लेकिन इसका खामियाजा ये हुआ की और कोई ढंग का रिश्ता नही आया । अंत मे थक हारकर समस्या की जड़ को समझा गया और, परिवार के तीनो सदस्यों की एकमत राय बनी की मनोज की नौकरी लग जाये तो शादी हो जायेगी। अब शादी छोड़ नौकरी की बात चलायी जाने लगी पिता ने कितने जानने वालों से निहोरा किया पर हरेक जगह बात नही बनती जहां बनती वहां मनोज का मन नही लगता। कहीं कही तो पैसे भी देने पड़े थे पर कुछ भी बनता ना देख खुद का व्यापार आगे बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन मेहनत और अनुशासन के बिना व्यापार मे भी तरक्की कहां है। अब कोई और रास्ता ना देख पिता पुत्र बड़े परेशान थे।
नौकरी और अकूत पैसा कमाने की ऐसी जरूरत इंसान को बाहर देश मे जाकर अवसर तलाशने को प्रेरित करती है। पड़ोस के गांव का ही एक व्यक्ति पैसे लेकर खाड़ी देशों मे नौकरी लगवाता है और वहां रूपये तो चलते ही नही बल्कि दिरहम चलता है। खाना पीना सब फ्री है दूध दही की नदियां बहती हैं और सोना चांदी हीरे जवाहरात सब बहुत सस्ता भी है। बस फिर क्या अब तो मनोज को वहीं जाना था। इकलौता लड़का परदेश जायेगा यह सुनकर मां बाप का कलेजा मुंह को आ गया लेकिन उसकी जिद के आगे एक न चली। आखिर खेत गिरवी रखकर दलाल को पैसे दिए गये यह तय हुआ जब मनोज पैसे भेजेगा तो पहले खेत ही छुड़ायेगें।
सब कुछ ठीक ठाक रहा और मनोज कुछ दिनों मे ही अरब की धरती पर पहुंच गया। वहां जिस फैक्ट्री मे काम की बात तय हुई थी वहां अचानक कोई वैकेंसी न होने की वजह से नौकरी न लग पायी। बाहर मुल्क मे इतना खर्चा होता है खाली बैठे तो कौन खिलायेगा कुछ दिन के ना नुकुर के बाद एक शेख के यहां भेड़ों को चराने का काम मिला। दूर रेगिस्तान के किनारे जो हरियाली थी उसमे भेड़ों को रखा गया था। पहले भेड़ों की देखभाल मे चार लोग रहते थे अब धीरे धीरे सिर्फ दो लोग रह गये थे मनोज उनमे से एक था। एक बार कुछ भेड़ें कही से गिनती मे कम पड़ रही थी तो शेख ने मनोज के साथी की चमड़ी उधेड़ दी हंटर से पीटा था। अब तो डर से रात में भी भेड़ों की गिनती बराबर आती थी।
मोल-की :- (एक अनिर्णीत निर्णय की खूबसूरत कहानी)
धीरे धीरे मनोज अपना नसीब समझ चुका था और उससे समझौता भी करने लगा था। सूखे प्रदेश मे ताड़ के पेड़ के नीचे बैठा मनोज सामने से गर्म आती हवा को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था। तेज धूप से रैत मे बनती मरीचिका सामने बरसते पानी का अहसास हो रहा था।
वहां बैठे मनोज यह सोच रहा था अपने खेत मे कुदाल चलाने के बजाय ये दिरहम का लालच उसे इतनी दूर मरूस्थल में खींचकर ले आया ।
शशिवेन्द्र "शशि"
SHASHIVENDRA SHASHI
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