रविवार, 23 अप्रैल 2023

मरूस्थल का दिरहम



खेतों से गेहूं कट चुका था तेज चौमुखिया हवा पेड़ पौधों के सिर यूं हिला रही थी मानो वो स्कूल का हेडमास्टर छोटी बच्चियों की गुंथी हुई चोटियों पर हल्की सी धौल लगाता मुस्कुराकर आगे चला जा रहा हो। उसकी इस हरकत से देर तक बच्चियां खिलखिलाती रही हों। सूरज लट्ठ भर उपर आसमान मे चढ़ आया था लेकिन उसकी गर्मी जरा भी महसूस न हो रही।आसमान मे बादलों के टुकड़े जो मौसम को यदा कदा सुहावना बना रहे थे। मनोज अपने घर से कुछ दूर आगे बढ़ा तो गांव से खेतों की ओर बाहर जाने वाली पगडंडी पर लगी भीड़ देख उधर को बढ़ चला। भीड़ के अंदर घुसता आगे चला आया तो देखा भीड़ दम साधे थोड़ी दूरी पर एक गेहुवन सांप को देख रही है। वह अपनी गर्दन उठाये पूरे क्षेत्र का मुआयना कर रहा था। गर्वीला काला सांप अपना शरीर पूरी क्षमता से तान कर यूं लग रहा हो जैसे तक्षक नाग का ही अवतार हो। उसके क्रिया कलापों मे कहीं भी रत्तीभर भय का आभास नही था बल्कि कुछ फरलांग दूरी से पर उसकी फुंफकार से देखने वालों के बदन मे सिहरन पैदा हो जाती थी।
कोई उसे कालिया नाग बताता जिसके माथे पर श्रीकृष्ण के खड़ाऊ के निशान है तो कोई नागराज भीड़ मे तो सभी अपनी चलाते है। किसी के पास दूसरे को मानने से ज्यादा अपनी बात मनवाने के तर्क ज्यादा थे। मनोज देर तक यही गप्प सुनता रहा थोड़ी देर मे सांप तो चला गया पर अपने पीछे कई दिनों का एक मुद्दा छोड़ गया। दोपहर होने को आ गई लेकिन चर्चा खत्म न हुई थी। वहीं पेड़ के नीचे बैठे चर्चा सुनते मनोज की आंख लग आई थी। जब आंख खुली तो उसके पिता रामसनेही कांधे पर गमछा डाले उसे तेज आवाज मे उलाहना दे रहे थे और घर भेज रहे थे। मनोज चुप उठा और घर की ओर चल पड़ा। दरअसल इकलौते बेटे का निठल्लापन पिता को वैसे ही अखरता है जैसे शिकारी की एकल आखिरी गोली भी निशाना चूक जाये। 

लौट आया चिराग

मनोज ने किसी तरह ग्यारहवीं तक पढाई की थी बारहवीं का बोर्ड न पास कर सके तीसरी बार मे हथियार डालकर तौबा कर लिया। आखिर बड़े बड़े लोगों के पास क्या डिग्री है जो अरबपति और खरबपति बने हुए हैं पैसे के लिए पढ़ाई जरूरी नही वो तो नौकरी की जरूरत है। चाकर बनने के लिए पढ़ो हम तो इतना पैसा कमायेंगे कि आस पास दस पचास गांव मे किसी पर नही होगा।

मनोज की घर पे खूब सम्मान था घर का इकलौता चिराग जो था सभी उसकी नींद सोते जागते थे। मां तो उसकी खातिर एक पैर पर रहती उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी करती उसकी चले तो चांद भी ला कर रख देती लेकिन पिता को दुनिया की कठोरता का भान था उन्होने देख रखा था पैसा नही होने पर लोग कदम कदम पर अपमानित होते हैं। वह हमेशा चिंतित रहते थे खूब समझाते पर मनोज पर जैसे कोई असर ही नही होता। वो एक कान से सुनता दूसरे से निकाल देता। समय बीतता गया और शादी ब्याह की बातें चलने लगी लेकिन पुश्तैनी सम्पत्ति पर लड़के को दहेज भले मिल जाये पर सम्मान नही मिल पाता हैं। दो तीन शादियां आयीं और सारी बातें हो जाने के बाद भी कुछ दिन बाद बताने का कहकर गये फिर कोई बात आगे न बढ़ पायी। अब शादी के लिए आने वालों के प्रति मनोज के मन मे एक आशंका सी हो गई थी एक तो लड़की के पिता ने सबके सामने ही बड़ी कटु बात कह दिया मामला हाथापाई तक पहुंच गया था। अपने दरवाजे की बात न होती तो आज तो मनोज क्या कर गुजरता लेकिन मामा और पिता ने बीच बचाव कर लिया। अंत में मामा और पिता के बीच भी झगड़ा हो गया आखिर मामा की ही अगुवाई मे यह शादी आयी थी।

नये संबंधो का श्रीगणेश

मनोज को निठल्ला कहना पिता के मन को ये बात नागवार गुजरी थी और उन्होने भी आज पहली बार मनोज के तरफ से रिश्ते के लिए आये लोगों को खूब बुरा भला कहा था यहीं से बात बिगड़ी तो मामा बीच बचाव मे कूदे तो पिता ने उन्हें भी रपट दिया था। कैसे भननाते भुनभुनाते भागे थे मामा। लेकिन इसका खामियाजा ये हुआ की और कोई ढंग का रिश्ता नही आया । अंत मे थक हारकर समस्या की जड़ को समझा गया और, परिवार के तीनो सदस्यों की एकमत राय बनी की मनोज की नौकरी लग जाये तो शादी हो जायेगी। अब शादी छोड़ नौकरी की बात चलायी जाने लगी पिता ने कितने जानने वालों से निहोरा किया पर हरेक जगह बात नही बनती जहां बनती वहां मनोज का मन नही लगता। कहीं कही तो पैसे भी देने पड़े थे पर कुछ भी बनता ना देख खुद का व्यापार आगे बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन मेहनत और अनुशासन के बिना व्यापार मे भी तरक्की कहां है। अब कोई और रास्ता ना देख पिता पुत्र बड़े परेशान थे।

नौकरी और अकूत पैसा कमाने की ऐसी जरूरत इंसान को बाहर देश मे जाकर अवसर तलाशने को प्रेरित करती है। पड़ोस के गांव का ही एक व्यक्ति पैसे लेकर खाड़ी देशों मे नौकरी लगवाता है और वहां रूपये तो चलते ही नही बल्कि दिरहम चलता है। खाना पीना सब फ्री है दूध दही की नदियां बहती हैं और सोना चांदी हीरे जवाहरात सब बहुत सस्ता भी है। बस फिर क्या अब तो मनोज को वहीं जाना था। इकलौता लड़का परदेश जायेगा यह सुनकर मां बाप का कलेजा मुंह को आ गया लेकिन उसकी जिद के आगे एक न चली। आखिर खेत गिरवी रखकर दलाल को पैसे दिए गये यह तय हुआ जब मनोज पैसे भेजेगा तो पहले खेत ही छुड़ायेगें।



अंजाना बंधन

सब कुछ ठीक ठाक रहा और मनोज कुछ दिनों मे ही अरब की धरती पर पहुंच गया। वहां जिस फैक्ट्री मे काम की बात तय हुई थी वहां अचानक कोई वैकेंसी न होने की वजह से नौकरी न लग पायी। बाहर मुल्क मे इतना खर्चा होता है खाली बैठे तो कौन खिलायेगा कुछ दिन के ना नुकुर के बाद एक शेख के यहां भेड़ों को चराने का काम मिला। दूर रेगिस्तान के किनारे जो हरियाली थी उसमे भेड़ों को रखा गया था। पहले भेड़ों की देखभाल मे चार लोग रहते थे अब धीरे धीरे सिर्फ दो लोग रह गये थे मनोज उनमे से एक था। एक बार कुछ भेड़ें कही से गिनती मे कम पड़ रही थी तो शेख ने मनोज के साथी की चमड़ी उधेड़ दी हंटर से पीटा था। अब तो डर से रात में भी भेड़ों की गिनती बराबर आती थी।

मोल-की :- (एक अनिर्णीत निर्णय की खूबसूरत कहानी)

कभी कोई भेड़ ब्या जाती तो उसके बच्चे को टोकरे मे लाद कर सिर पर रखकर चलना पड़ता था। खाड़ी देश मे काम करने का ये सुख मनोज रो रोकर उठाता था और अपनी तनख्वाह सीधे पिता के पास भेजता रहता था।

धीरे धीरे मनोज अपना नसीब समझ चुका था और उससे समझौता भी करने लगा था। सूखे प्रदेश मे ताड़ के पेड़ के नीचे बैठा मनोज सामने से गर्म आती हवा को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था। तेज धूप से रैत मे बनती मरीचिका सामने बरसते पानी का अहसास हो रहा था।

वहां बैठे मनोज यह सोच रहा था अपने खेत मे कुदाल चलाने के बजाय ये दिरहम का लालच उसे इतनी दूर मरूस्थल में खींचकर ले आया ।


शशिवेन्द्र "शशि"

SHASHIVENDRA SHASHI

हमारे साथ जुड़े

#Ssps96

#travel

#socialmedia 

#bedtimestories 

#google 

#fun 

#goodstory 

#consciousliving 

#higherconsciousness 

#storiestotell 

#positivity 

#positivestories 

#story 

#positivequotes 

#bestofstories 

#moralvalues 

#positivevibe 

#morality 

#higherawareness 

#moralofthestory 

#bestofeverything 

#truthbetold 

#higherself 

#laugh 

#moralsandvalues

#community 

#posts 

शनिवार, 22 अप्रैल 2023

बस अब बस करो:-

किसी परिवार की पुश्तैैनी इज्जत को बनाए रखने के लिए उस परिवार के सभी सदस्य जिम्मेदार होते है।
इस जिम्मेदारी को सभी सदस्य सतर्कता से निभाएं इसी क्रम मे एक पात्र दूसरे पात्र को समझा रहा है:- 

अवसर भरी दुनिया मे बेपरवाह सोये हो
माना बाप के गुजरने पर बेइंतहा रोये हो
गुजर फिर भी तो करना ही पडेगा बोलो
बेजां इस दारू के नशे मे क्यों खोये हो।01

लडखड़ाने से अपनी साख को बट्टा लगता है
दरकती घर दीवार का न ईंट कंकड़ बचता है
यही कर्ज चुकाया तुने बाप के अहसानों का
जो उनके नाम से था जीता वह तुमपे हंसता है।।02

ये आखिर हुआ कैसे मुझे कुछ तो समझाओ
मेरे भाई बिरादर मेरे, आओ मेरे करीब आओ
घर के छोटे हो तुम तो दर्द भी छोटा ही होगा
हुई बहुत बेजा जगहंसाई ना अब कराओ।।03

जिसकी दहलीज पर शराब थी आ नही सकती
नशीली छाया रात क्या दिन मे भी नही दिखती
तुम्हारी हिम्मत थी जो ये मजाल कर गये ऐसे
वर्ना यूं कौड़ियों मे शेर की इज्जत नही बिकती।।04


करो याद हम उस बुलंद हवेली के हिस्से हैं
जिसकी अदावत के अहल रूहानी किस्से हैं
अचानक बहके कैसे तुम सबक भूल आये
हम तुम उस बाप के दोनो हाथों के जैसे हैं।।05

भूलो जो गलत हुआ अब उस पर मिट्टी डालो
निकलो इस कुफ्र से बाहर हमें भी निकालो
तुम्हें शराबी सुनकर हमें अच्छा नही लगता
यूं लगता दिल मे एक धधकता गर्म शोला हो।।06


सोचा कभी क्यों वीरवा अब गुस्से में रहता है
आंगन की मुटरी का गला बातों मे भरता है
कहीं हरकतों से घर का कोना तो न थर्राता
या सदमें मे बैठी मां के देख आंसू सहमता है।।05

मिटेगा आधा ग़र तो हवेली आधी ही बचेगी
जुबानें हर हालात मे इसको जली ही कहेंगी
चलो फेंक दो बोतल कही न ये फेंक दे तुमको
इज्जत घर की मिल्कियत सदा आबाद रहेगी।।07

हो चुका खुद को मिटाना बाकि नही कुछ भी
गुलशन-ए-आशियां का एक खंभा हो तुम भी
इसे गुलज़ार करने का अब तो कोई सबब करो
बड़ा होकर मै जोडूं हाथ बस; अब बस करो।।08

:- शशिवेन्द्र "शशि"
SHASHIVENDRA SHASHI 




मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

नये संबंधो का श्रीगणेश



रात का तीसरा पहर और आंखो मे नींद का नामो निशान नही। बस खिड़की से दूर आसमान मे चांद की रौशनी से नहाया पूरा इलाका दूर से चकवे की आवाज कही इस नीरवता को और मधुर बना रही थी। कुसुम अपनी बड़ी बड़ी आंखो मे अपने किसी प्रिय के स्वप्न लिए प्रतीक्षारत यामिनी सी बिस्तर पर अधलेटी सी थी। तकिये पर सिर को टिकाये नेत्र खिड़की से बाहर देख रहे थे। 

यौवन मूर्ति स्त्री मे भगवान अप्रतिम धैर्य भी देता है वह अपने संकेतों से ही अपने मनोभाव को प्रदर्शित करती है न कि शब्दों से।
ठीक वैसे ही कुसुम का भी अपने इस अंजाने प्रिय से अनूठा लगाव था। कहने को तो वो अंजाना परंतु जैसे सबसे ज्यादा जान पहचान उसी से हो। उसके लिए कुछ भी कर गुजरने के भाव पैदा होते पर घर की मर्यादा और लाज के आवरण को पार न करने के प्रति सदैव सचेत भी रहती। इसी उधेडबुन मे रात का चौथा पहर शुरू हो चला था। कुसुम ने थोड़ी थकान महसूस की और वहीं लेटे हुए उसे नीद लग गई। 
सुबह मां की आवाज से जगी तो देखा पापा भी वहीं कमरे मे चाय लिए बैठे हैं। एक हलकी मुस्कुराहट से घर के सभी सदस्यों ने उसके जागने का स्वागत किया।
कुसुम थोड़ी शर्माते हुए वहां से उठकर जाने लगी तो पिता ने टोकते हुए कहा "कुसु आज चाय मैने बनायी है, पी कर देख"
आती हूं पापा कहकर वह जल्दी से चहकती हुई कमरे से बाहर निकल गई।
बिटिया घर की वो गौरैया होती है जो समूचे घर के उदासी के दाने चुनकर प्यार ही प्यार बखेर देती है।
मां ने कनखियों से पापा की तरफ देखते हुए कुसुम को आवाज लगायी "अरे, इलायची वाली चाय बनाई है तेरे पापा ने अपनी लाडो के लिए" बाद के शब्दों को हल्के व्यंग्यात्मक अंदाज मे कहा था।
"वो बाथरूम से बोली आती हूं मां" आवाज मे वही कशिश और शहद सी मीठास। इस आवाज से समूचा घर प्रफुल्लित हो जाता था।
कुछ पलों के लिए माता पिता अतीत की यादों मे खो गये। वर्षों पहले किस तरह उनके जीवन मे रंग भरने एक नन्ही सी परी आई थी। उसने चारो तरफ उनकी इस नन्ही बगिया को ढेरों सुनहले रंगो से इस कद़र भर दिया की घर का जर्रा जर्रा उसकी खूशबू से महकता रहता है। वो कुछ देर के लिए सहेलियों के यहां चली जाये या कालेज चली जाये तो घर मे एक अलग ही माहौल हो जाता था।


पिता थोड़ी थोड़ी देर मे पूछने लगते अरे क्या हुआ कुसु आयी, उससे बात हुई क्या?
मां भी थोड़ी थोड़ी देर मे बात करके बेटी का हाल चाल लेती। अपने बच्चों की परवाह ही प्रत्येक मां बाप को खास बनाती है। छोटी बड़ी हर बात की चिंता से मां बाप अपने बड़े होने का हक भी जनाते हैं।
कुसुम वापस रूम मे आयी तो मां उसकी तरफ देख मुस्कुराते बोली "चाय बड़ी खास है आज की, और यह एक ट्रेनिंग भी है। तुम्हारे पापा का कहना है कि तुम भी ऐसी ही चाय बनाना"।
पापा सरकारी मुलाजिम थे। वह मानते थे कि चाय पर तो बड़े बड़े मसले हल हो जाते है और आज तो बेटी को देखने के लिए कुछ लोग आने वाले हैं।
बेटी की शादी मे उसका बाप खुशी और चिंता, कष्ट और सुख जैसे अनेकों परस्पर विपरीत भावों मे सना होता हैं। एक तरफ अपनी जिम्मेदारी निभाने का गर्व तो दूसरी तरफ अपने कलेजे के टुकड़े से बिछड़ना। जिस घर मे उसके होने से आनंद भरा रहता हो उसके जाने के बाद कैसा लगेगा यहां। दिन भर उसकी बातें उसी से करने की आदत पर अब लगाम लगानी पड़ेगी। यही सब ठानकर पिता अंदर ही अंदर खुद को समझा रहे थे। खुद को सख्त पुरुष होने का अहसास न करने पर स्वयं को आईना दिखा रहे थे। तभी यह मजबूती कहीं दरक सी गई और उनकी आंखो से आंसूओं का रिसाव होने ही वाला था कि खुद को संभालते हुए खांसने के बहाने बाहर निकल आये।
कदाचित पिता ही कन्या के जीवन का वह प्रथम पुरूष होता है जिससे प्रेम की होड़ लगती है। बेटियां पिता को सबसे ज्यादा प्यार करती हैं जबकि पिता इस प्रतियोगिता का विजेता होता है उसके पास लुटाने को अविरल प्रेम होता है।
चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा शुरू हुई तो पिता ने धीरे से अपने फोन मे उस घर के होने वाले सबसे खास मेहमान की फेसबुक प्रोफाइल खोल कर मां के हाथ में पकड़ा दिया।

जनाब ने अलग अलग वेश भूषा मे फोटो लगा रखी थी। कही पर्वत पर कहीं झरने मे नहाते तो कहीं रेस्टोरेंट में खाते हुए और सबसे मजेदार की कहीं मुंह बनाते तो कहीं आंखे मिलाते। पहली झलक में तो साहब मजाकिया लग रहे थे पर चेहरे की कटिंग सुन्दर थी और एक अलग गांभीर्य भाव दिख रहा था। एक अलग आकर्षण उनके मुखमंडल पर, कुसुम ने छिप कर देख ही लिया था।
पिता ने कहा "अनंत" नाम है और यहीं विश्वविद्यालय के फिजिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर है।
उन्हें बेटी के संकोच का पूरा भान था अतः मर्यादा का अह्सास करते कुछ काम से मम्मी को भी बाहर ले गये थे। 
अरे वाह रे फिजिक्स तुझे तो मै बड़ी नीरस समझती थी पर तुने ऐसा सरस कहां छिपा रखा था, कुसुम मन मे विचार करती फोटो को निहारती रही।

#यह भी पढ़ें:- लौट आया चिराग

छोटा भाई उसे छेड़ते हुए बोला बहन अभी कुछ दिन तो ये चाय और पी ले फिर तुझसे पैसे लुंगा मैं। अभी तक कुसुम उसे अपनी बातों से करारा जवाब दे चुकी होती पर जाने कहां खोई थी किस सोच मे डूब रही है।

ला मैं भी तो देखूं भाई ने उसके हाथ से फोन लेते हुए कहा। अरे ये बंदर की तरह उकडूं क्यों बैठा है। चिढ़ाते हुए बोला।

इसके पेट मे दर्द है क्या ? आने दे पूछता हूं इससे।

कुसुम को जाने क्यों अनंत के लिए "इससे" जैसा शब्द उचित नही लगा वह फट बोल पड़ी थी "वो बड़े हैं तुमसे आप कहो"

भाई अवाक रह गया। उसे तो बहन के साथ मिलकर अनंत की खिंचाई करनी थी पर वह तो आज विपरीत बातें कर रही हैं। भाई कुछ कहता इससे पहले कुसुम कमरे से बाहर जा चुकी थी। थोड़ी देर मे चाचा चाची आ गये फूआ और मौसी भी पहुंच गये घर में 10-15 लोगों का जमावड़ा लग गया। ग्यारह बजे तक अनंत के परिवार के लोग भी आ गये थे। नाश्ते पानी के बाद बातें शुरू हुई। 

बातें क्रमशः बड़ों की फिर औरतों और बच्चों की, बाद में बागवानी, खेत, गांव,घर यहां तक की घर पर पाले गये कुत्तों की भी खूब चर्चा हुई। फिर अनंत की मां ने कहा तो अब एक बार लड़का लड़की भी आपस मे बातें कर लें। इस बात पर सबकी सहमति बनी और दोनो को उपर वाले कमरे में भेजा गया। कुसुम की मौसेरी बहन साथ गई।

रूकते हिचकते हुए अनंत ने बात शुरू की। औपचारिक बातों के बाद पसंद नापसंद और भी बहुत ढेर सारी बातें। कुसुम को अनंत की बातों का अंदाज बड़ा भा रहा था। दोनो के मन मे एक दूसरे को जानने की उत्सुकता खूब थी। बातें खत्म ही नही हो रही थी पर जल्दी ही नीचे से बुलावा आ गया।

रिश्ता दोनो पक्षों को पसंद आ गया। फिर कुछ देर बाद अनंत का परिवार वहां से विदा लेकर अपने घर के लिए निकल गया।

#यह भी पढ़ें:- अंजाना बंधन

तीन दिन बीत चुके थे दोनो में कोई बात नही हुई थी। कोई फोन काॅल नही पता नही किसी ने नंबर दिया या नही। नंबर तो दिया था पर क्या पता पसंद ना आई हों नही कहने में सकुचाते हों और बस यहां बातें बनाकर चले गये हों।

इसी उधेडबुन मे लगी वो थोड़ी सी दुखी अपनी गलती ढूंढ ही रही थी की अचानक उसके मोबाइल की हल्की घंटी बजी थी और काल कट गई। 

कोई और दिन होता तो शायद इस समय फोन देखती भी नही पर आज तपाक से फोन वापस उसी नंबर पर मिला दिया। उधर से घबरायी हुई सी पर खूब जानी पहचानी आवाज आयी " हैलो मै अनंत बोल रहा हूं, 

कुसुम ने प्यारी सी सहमति दी

फिर धीरे धीरे दोनो में बातें आगे बढ़ने लगी।

"साॅरी वो मै समझ नही पा रहा था फोन करके क्या कहूँगा इसीलिए तीन दिन तक सोचता रहा था"

यह सुनकर कुसुम खिलखिलाती हंसने लगी फिर दोनो तरफ से ही कहकहे लगने लगे। इनकी प्यारी हंसी से दोनो घरों मे आह्लादित सुख और नये जुड़ाव का वास्तविक श्रीगणेश हो चला था।


:-SHASHIVENDRA SHASHI

शशिवेन्द्र "शशि"

#hindilekhan

#hindilinespoetry

#hindilekh

#lekhak

#stories

#hindiline

#lekhakrang

#lekhika

#lekha

#umeed

#hindipoetryslam

#lafj

#lekh

#madhushala

#hindihaihum

#kuchhbatein

#lekhalekhi

#litraturelover

#hindiurdushayari

#hindyugm

#nayiwalihindi

#newwritersclub

#hindikitaab

#hindwi

#laghukatha

#hindikahani

#hindi

#hindistory

#hindikavi

#hindilines

#hindipoetry

#story

#shabd

#hindikavitayen

#hindiquotes

#shabdanchal

#hindikaveeta

#hindikavyasangam

#hindistories

#kahani

#hindidakgharpoetry

#kaviraj

#hindikavisammelan

#hindidakghar

#shabdalay

#hindiliterature

#dakgharpoetry

#dakghar

#hindilearning

#storytelling

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

लौट आया चिराग

 वेद प्रकाश दिल्ली जल बोर्ड मे आपरेटर थे तीन दशकों से उनका परिवार सरकारी क्वार्टर मे रहता था। पानी की टंकी के आस पास खाली जगह खूब ज्यादा थी। घर के लिए साग सब्जी से लेकर किराये पर गाड़ियों की पार्किंग से अच्छा पैसा कमा लेते थे। शादी ब्याह और त्यौहारों पर तो कई गुना आमदनी हो जाती थी। उपर वाले की कृपा थी कभी तनख्वाह से खर्च चलाने की जरूरत नही पड़ी थी। चार लडकियों और दो लड़को के साथ ठाट से रहते आये थे। अपनी खुद की गाड़ियां थी जो किराये पर चलती थीं। इन सब सुख सुविधाओं मे एक ही बात जो परेशान करती थी वो थी बेटों की बेरोजगारी।


दोनो ने बी टेक की पढ़ाई कर रखी थी पर मनमाफिक तनख्वाह न मिलने के कारण नौकरी छोड़े बैठे थे। कम सैलरी वाली जगह सुविधायें भी नही होती और तान कर काम लिया जाता था बेटे नाजो नख्श मे पले थे। उनहें कष्ट सहने की आदत न थी सो ऐसी जगह से भाग पड़ते थे।

वेद ने कई अफसरों से बात चलाई आज के जमाने मे सरकारी नौकरी गेहूं के खेत मे सूई ढूंढने जैसा है। बड़ी मुश्किल से एक जगह बड़े वाले बेटे की बात बनी तो डेढ़ महीने मे ही वह काम छोड़कर भाग आया।

यह भी पढ़े :- अंजाना बंधन

कितनी मिन्नतें, कितने मिठाई के डिब्बे और पांच लाख रुपयों का चढ़ावा देना पड़ा था तब कही बात बन पाई थी। अब साहबजादे वापस जाने का नाम ही न ले रहे हैं। काम कौन सा बुरा था, साहब की थोड़ी टहल सिफारिश कर दो। कभी पानी चाय मांग दी तो क्या हो गया आखिर अफसर है पर इनको तो अपनी डिग्री का गुरूर था। बी टेक जो ठहरे। 

अरे भई जो रोटी ना दिला सके उस डिग्री को रख कर क्या ही करना है। वहां ड्यूटी पर किसी ने ताना मार दिया बीटेक करके भी पानी ही पिला रहा है। अफसर की झाड़ सुन रहा है बस तीर सरीखे लग गई यह बात और जनाब भाग आये। इतना ही नही अफसर की मां बहन को भी अपशब्द कह दिया सो अलग। वो तो पुराना जानकार था सो बख्श दिया वर्ना घर पर पुलिस भी आती।

पर अब क्या होगा ये तो निठल्ले यूं ही पड़े रहेंगे।

यह भी पढ़े:-आज का अंगुलीमाल

कमाऊ पिता एक ऐसी बरगद की छांव होता है जिसके तले सभी सुस्ताते हैं। कुछ तो वहीं डेरा ही जमाने की जुगत मे रहते हैं। यहां घर मे पड़े पड़े ये निखटटू हो चले थे काम के नाम पर दिन भर बच्चों के साथ कैरम खेल लेते शाम को खाने मे कुछ कम हो तो घर की औरतों पर खीझ निकाल लेते। दिन ब दिन हालात और खराब ही होते जा रहे थे। अब शाम को पिता ने अपने पास बिठाना और समझाने शुरू कर दिया तो इससे बचने के लिए सैर सपाटे पर निकलने लगे। अब बाहर जो गये तो शायद, देखा तो नही पर लोगों की सुनाई बातों के हिसाब से आदत मे भी बिगाड़ आ गया था। खैनी सुरती भी खाने लगे हैं।

एक दिन तंग आकर पिता ने सोचा आज फैसला कर ही देते है दिन मे थोड़ी बहुत बातें हुई तो बबलू घर से बाहर निकल कर कही बाहर चला गया। देर रात हो चली थी पर बेटा घर नही आया था। प्रकाश कुछ देर तो गुस्से मे बुरा भला कहते रहे पर जब घड़ी का कांटा 12 को भी पार करने लगा तो हल्की सी चिन्ता होने लगी कही कोई अनहोनी तो नही हो गई।

पोता बार बार पूछ रहा था बाबा, पापा कब तक आयेंगे ?

कोई जवाब नही अब मन मे आशंकाये उठने लगीं कही कोई बात हो गई हो और कहीं कुछ गलत कदम न उठा ले मन मे अभी यही द्वंद चल रहा था।

यह भी पढ़े:- कपोत और वनराज

तभी पत्नी ने अपने मायके के एक लड़के की कहानी बतानी शुरू की कैसे उसने बार बार फेल होने की वजह से अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।

अब तो सास बहू दोनो रोने लगी गनीमत थी पोता सोने चला गया था, छोटे बेटे की आंखे भी नम हो चली थीं।

रात जब गहराने लगी तो चिंता भी अब निश्चितता का रूप लेने लगी। गुस्से के समंदर मे डूबे पिता को अब आत्मग्लानि सताने लगी। वहीं बिस्तर पर सोये पोते को सहलाते हुए दूर तक सोचती एक गहरी सांस भरी। अपना कुर्ता खूंटी पर से उतारा और दरवाजे के पीछे से सोटा ले उसे खोजने चल पड़े। छोटा बेटा साथ चलने को आगे बढ़ा उसे मना कर दिया। 

पहले बबलू के दोसतों और परिचितों के यहां पहुंचे कोई खबर मिलती न देख गलियों, चौराहों, पार्कों मंदिर और रेलवे-स्टेशन आदि हर संभावित जगह पर ढूंढा। पूरी रात उस पिता ने जितनी मिन्नतें की उतनी तो उसके जन्म के खातिर नही की थी। थक हार कर थाने पहुंचे और गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवायी हारे मन से घर लौटे तो रात काफी बीत चुकी थी पर अंधेरा अभी भी था। 

वहीं घर की ड्योढी पर पहुंचे ही थे की अनमने ढंग से वहीं बाहर ही बैठ गये। घर वालों को क्या जवाब देंगे आखिर आज क्या गलत कह दिया था। बाप हूं क्या इतना भी नही कह सकता कि कोई काम कर ले। मन मे यही सब कुछ चल रहा था। जाने कब बूढ़े शरीर को नीद ने अपने आगोश मे ले लिया और सपने मे देखने लगे कैसे बबलू जब पैदा हुआ था। उसकी दादी ने पूरे गांव मे सत्यनारायण का प्रसाद बंटवाया था। सब कितने खुश थे घर का चिराग था।

 हाय रे भगवान! अब क्या करूं यही सोच कर रोने लगे। आंसू बहते जा रहे हैं अचानक ऐसा लगा जैसे बबलू सामने खड़ा होकर पुकार रहा है 

यह भी पढ़े:- रश्मियां और गोला

"बाबू जी, ओ बाबू जी। उनीदीं आंखे खोली तो बिखरे बाल गंदे कपड़ो में बबलू खड़ा था। आंखे मींच मींच कर देखा तो वही खड़ा है। 

वेद ने न आव देखा न ताव खींच कर दो झापड़ लगाये बबलू कुछ समझ पाता इससे पहले उसे बांहो मे जकड़ कर सीने पे खींच लिया जैसे कहीं भागा जा रहा हो। बेटे को अपने पिता की आंखो मे गुस्से की जगह एक डर देख कर बड़ा अजीब सा लगा वह चुप उनसे चिपटा रहा। यह शोर शराबा सुनकर थोडी ही देर मे घर के सभी लोग दौड़कर आ गये बबलू को देखकर सभी हर्षित थे। सास बहू फिर रोने लगी छोटा बेटा भी फफक़ कर रो रहा था। बबलू ने घबराकर पिता के हाथ मे सात सौ रूपये रख दिए और पूरा वाक्या बताया। 

उस रात उसने शहर की मंडी मे पल्लेदारी की थी और उसी कमाई को पिता को देकर बोला "बाबू जी आप ही कहते थे न काम कोई छोटा नही होता सो आज मैने खुद को आजमाया। अब आप बताइये कैसा किया मैने?

पिता ने बेटे को गले से लगाकर पीठ पर हल्की धौल जमाई। बाप बेटे दोनो की आंखे नम थीं पिता अपनी अप्रत्याशित जीत पर बहुत खुश था आज बेटा वास्तव मे घर का चिराग बन कर लौट आया था।


: शशिवेन्द्र "शशि"

Search #Ssps96

#hindistorywithmoral

#hindi_story_with_moral

#moralstory 

#life

#stories 

#storytime 

#indian 

#moralstories 

#india 


शनिवार, 15 अप्रैल 2023

अंजाना बंधन:- #hindistory



प्रीत मुंह मे रखी वह मिठाई का टुकड़ा है जिसका स्वाद जीभ पर रखने वाला ही जानता है। साथ रहते रहते चालीस बरस बीत चुके थे पार्वती काकी को इस घर मे आये हुए।

दोनो जून पूजा करती और नहाने के बाद ही घर में खाना बनता था। बद्री काका पहलवान थे इलाके मे काफी दबदबा था लेकिन जब पहला बच्चा खत्म हुआ तो टूट से गये थे। डाक्टर ने कहा था अब आगे काकी के मां बनने की उम्मीद नही बच रही है। यही ठानकर अस्पताल मे काकी को बचाने का निर्णय लिया गया था।


काकी डरी सी अस्पताल से घर आयीं थी अब तो शायद काका दूसरा ब्याह कर लेंगे। आखिर उनका वंश खानदान आगे कैसे चलेगा। नित रिश्तेदारों के झुंड आते घर लेकर से बाहर तक हर तरफ काका को समझाने और मान मुनौव्वल चलता रहता पर वो भी अपने धुन के पक्के ठहरे।

ठान लिया अब शादी फिर ना करेंगे कोई बड़ा दबाव देता तो मुस्कुराकर यह चौपाई सुना देते 


"शंकर कीन्ह संकल्प मन माहीं

 सती भेंट फिर एही तन नाहीं"

लोग निरूत्तर उन्हें देखते रह जाते।




काका के पास एक साइकिल थी कभी और कुछ शौक नही था दूध के लिए दो भैंसे थीं बस खेत मे मेहनत करते और सब्जी भाजी जो उगाते वो पूरे गांव को खिलाते गाहे बगाहे रुपये पैसे से लोगों की मदद भी कर देते थे।

बाढ़ सूखा आग कुछ भी हो काका छोटे बड़े सबकी मदद करते। पिछली बार अंजान संक्रामक बीमारी ने पूरे गांव को अपनी चपेट मे लिया पति पत्नी बेताल की तरह बिना थके हारे लोगों के सेवा मे लग गये जैसे अपनी जान की कोई परवाह नही। रोगियों की खूब मन लगाकर सेवा करते खुद से आधी उम्र के लोगों को पीठ पर बिठाकर शौच ले जाते उनके नित्य कर्म कराते पर रोग तो बेमौसम की बारिश जैसा उसे ही भिगोता है जिसे उसकी उम्मीद न हो।

काकी अपने निजी दुख की वजह से तन मन से कमजोर हो चलीं थी और पड़ोस के सूरज की बहू ललिता की देखभाल करते हुए जब उसे बचा ना पायीं तो और टूट गई थीं। वही तो एक थी जिसके सामने अपने मन की हर गांठ खोल लेती थीं। वह उम्र मे काफी छोटी होते हुए भी गांव की अन्य औरतों की तरह काकी को छेड़ती और बद्री काका को जोड़कर गालियां सुनाती। दोनो हंस पड़ती काकी को अपने पुराने दिन याद आ जाते। पुरानी यादें उनके जख्मों के लिए वह एक अनोखा मरहम सी लगती थी। स्त्रियां आपस मे बातें करके न सिर्फ बात बिगाड़ती ही नही है बल्कि बड़े से बड़ा दुख भी झेल जाती हैं। कुछ ऐसा ही इस संगत मे भी था।



काकी हमेशा उसके बच्चों की परवाह करती। वे भी दादी के मुंहलगे थें। हर शिक़ायत और कमी अपनी सगी से ना करके काकी से ही करते।

जबसे ललिता बहू गुजर गई थी उसके पति सूरज ने गांव का मुख तक ना देखा। निष्ठुर अपने बच्चो की भी परवाह नही करता।

इस दुख से काकी अलग ही दुखी थीं। अब इतने गम मे शरीर रूगण हो चला ज्यादा कुछ उम्मीद न रही तो डाक्टर ने घर पर ही सेवा की सलाह दी।

भारी मन से काका उन्हें घर ले आए यहां दोनो बच्चे दरवाजे पर राह जोह रहे थे। थकी बीमार काकी बिस्तर से उठ न पा रही थी कि तभी लड़की अपने भाई को समझाते हुए बोली "भैया आज पानी पीकर सो जाते हैं काकी खाना नही बना पायेगी"।


इधर इन दोनो पति पत्नी ने यह सुना तो चौंक पड़े थे क्या बच्चो ने कल से कुछ खाया नही है।

हे परमात्मा!!

यह क्या, काकी को अजीब सी बल मिल गया। वह उठ खड़ी हुई काका ने बहुत मना किया था बोले मै बना देता हूं। काकी बोली नही जी, अभी तो मरने की भी फुर्सत नही है आराम कहां करूंगी।

पति पत्नी तुरंत काम पर लग गए भोजन पकाया दोनो बच्चों को खिलाया। लड़का तोतली आवाज में बोला काकी अब ऐसे हमें छोड़कर मत जाना। जहां जाना साथ ले चलना। जब तुम नही थी तो भूख बड़े जोरों की लगी थी। दो दिन से खाना ना खाया। काकी की आत्मा कराह उठी काका निःशब्द खडे थे।

आधी रात हो चली काकी ने सोचा बच्चों को आंगन में लिटा आऊं जैसे उठने को हुई उसका आंचल नन्हें बच्चे ने अपने हाथ से बांध रखा था। काकी का जी भर आया उसने वो गांठ सदा के लिए अपने हृदय से बांध लिया और अब पति पत्नी ने ठान लिया था उन्हें जीवन जीना था। उन्हें अब भरपूर जीना था इस बंधन के विश्वास को बनाये रखने को जीना था..................


#hindistory #hindi

#hindilines #story

#hindiwriting #hindimotivationalquotes #storytelling

#writer

#hindistories

#hindikahani #hindinews #writersofindia

#kahani

#hindimedia

शशिवेन्द्र "शशि"




रविवार, 9 अप्रैल 2023

प्रथम सर्ग:- बचपन से शासन तक

जितनी रहे कठोर धरा उतना जीवन तपता है
सिंह भला क्या कभी मृदु मृग के घर पलता है
जननी निज सुत पे जब अगाध स्नेह रखती है 
भिन्न भिन्न कोणों से उसको नित्य परखती है।।01

 देख पुत्र को संघर्षो मे मां का आंचल भर आये
रोक सिंधु आंसू का एक बूंद न बाहर आने पाये
दुर्गा का है रूप और वीर प्रसविनी जननी है
इतिहास मे पूजित देवी है और वीर मननी है।। 02

वर्तमान को करे न्यौछावर गुप्त भविष्य के आगे
तब उस घर के उस कुल के सोयी किस्मत जागे
कुल सिसौदिया अटल वीरों की ऐसी बानी था
जिसमे पूर्वज सांगा के संकल्पों का पानी था। 03

कुल के वंशज उदयसिंह भी कहां कुछ कम थे
बैरी से लड़ने मिटने को अकल्पित दम खम थे
पर सूरज जब निकले तब छिपते सितारे सारे
उसके अंबर मे आने से हो कोने कोने उजियारे।04

कुछ मतभेद जगा महलों मे हुई रूष्टता भारी
स्व कुटुंब के असंतोष से भरमै थे नर नारी
बढ़ जाये जब द्वंद तब अपनी बुद्धि भरमाती
अपनो की छोटी बातें भी हृदय बेध हैं जाती।।05

ना कुछ संकोच ना ही परवाह शेष बचती है
हां इस हार जीत की बातों पर दांव लगती है
सुन्दर और सलोना मुखड़ा दर्पण मे दिखता है
अस्थिर और खौलते जल मे कहां दिख पड़ता है।।06

उदयसिंह की मर्म भरी बातों से आग भड़की थी
जिसकी परिणिति दुखद सामान्य एक झिड़की थी
तर्क कुतर्क परे सीमा के पहुंच सहज ही आये हुआ
निरूत्तर पुरूष जब कभी तो आंख दिखाये।।07

तर्क शक्ति इक नारी का विधि ने है स्वयं सजाया
काबिल पुरूष कभी भी ना नाजवाब कर पाया
थक हार कर असरदार घुड़की धमकी ही बचती है
पर मेघों की घुड़की से भला धरा कही डरती हैं।। 08

घर कुटुम्ब मे अपनो से बात घणी बिगड़ जाती है
उस पल जीवन मे प्रथम पुरूष की याद आती है
जो उसके हारे से हारा हो उसके जीते से जीत
ऐसा पुरूष जनक कन्या का यह है जग की रीत।।09

रानी कुंवर भी पुत्र संग ले चली मायके आयी 
बही अश्रु की धार निज जननी से लिपटायी 
कुछ दिन यही रहेंगे दोनो ही ठान यही मन आये 
लौटेंगे जब तक की कुछ बात नही बन जाये।।10

नन्हा राजकुमार चला अब मामसा के घर आया 
राजमहल की बंदिश से बच उसका जी हरषाया 
राजप्रसाद की आदत सब सुख वैभव की भारी 
यहां कहां थी मिल पाती वैसी आलीशान सवारी।।11

पर कुंदन बनने से पहले सोना पिटता तपता है 
तब कही जाकर धरा को अमोल कुंदन मिलता है 
ऐसा ही था अब नियति मे उस कुमार के हिस्से
संकट और संघर्षो से मिलकर गढ़ना था किस्से।। 12

 राजपुत्र की कोमल काया अब जंगल मे घुमेगी
गिरने उठने के इस क्रम मे नित मातृभूमि चुमेगी
दांव सिखाने वाले जो थे वे अरण्य के वासी
रोने की बातों पर भी उनको आती थी हंसी।। 13

 राजवंश था बना कुटुंबी आदिवासी आह्लादित 
जैसे वन मे घूम राम ने किया सभी रामादिक 
फिर कुछ ऐसा ही कठोर माता छाती रखती है 
नवजात तक को भूख मिटाने की शिक्षा देती है।। 14

कंधे पर बैठा प्रताप को सरपट दौड़ लगाते
कीका आया कीका आया सबको खूब जनाते 
ना जाने क्या प्रेम कौन सा जोड़ लगाया विधि ने 
आतमस्नेह की मामा भामसा की अमूल्य निधि मे।। 15

ना राणा रहते पलभर भी दूर कही पुंजा से 
ना ही भील कभी रह पाते इस नन्हे कान्हा से 
कही कभी दाब पांजरे उनको खूब घुमाते 
कभी शीर्ष पर बैठा ले जंगल बाग दिखाते।।  16

कहीं खा लिया कहीं पी लिए सो गये जाकर
सभी भील खुश थे इस नन्हे कान्हा को पाकर 
ज्यूं गोविंद रचे लीला को वृन्दावन कुंजन मे 
मामसा था हर भील मामी सा थी हर भीलन मे।।17

बाल गोपाल सखा भाई थे रहते थे सब घुलमिल 
कीका की भोली बातों पर सब हंसते खिलखिल
घुंघराले बालो से चेहरा ढका हुआ मनमोहक 
जिसके रहने से होती थी हर कुटिया मे रौनक।। 18

नये नये थे खेल अबूझे थे दुर्गम साज खिलौने
आयु मे सब बड़े खिलाड़ी कीका नन्हे बौने 
खेल खेल मे हो जाते आपस मे गुत्थम गुत्था 
ना बन्ना ना भील अलग एक ही था वो जत्था।। 19

भीलों को निज चोटों की रंचक परवाह नही थी
कीका को गुस्सा ना आये इसकी चाह बड़ी थी 
इस अद्भुत स्नेह को दैव किस धागे मे गुंथा था 
प्यारा और दुलारा खिलौना जो साथ खड़ा था।। 20

जेठ मास की गर्म दुपहरी और बगिया की छाया 
लखनू पाती खेलने का था सही मौसम है आया 
दो दल बन गये और खेल शुरू हुआ रोचक
लडने की स्पर्धा में भिड़ जाते वहां सहोदर।। 21

तेज धूप मे श्रमजल की अविरल धार 
बही रिक्त हुआ जलकलश और कहीं 
शेष नहीं इतने मे थक प्यासे दल के सभी खिलाड़ी
व्याकुल थे वे प्यास से नन्हे अनाड़ी।। 22

जल की नही पूर्व योजना ना ध्यान दिया था 
जोश जोश मे खेलने का ही ठान लिया था 
पर मरूस्थल से तेज जो गर्म हवा आती थी 
जल समान ही मनुज का कंठ सुखा जाती थी।।23

पानी की इस हुई कमी से बढ़ी विकलता भारी
इक दूजे आपस में भिडते होती हाथापाई
बैठे रहना हल नही इसका यही समझकर बात 
चले ढूंढने पानी को सबको ले अपने साथ।। 24

चार कदम से कोसभर आये पर काम बना था
आज मरेंगे क्या पानी बिन विधि ने ठान था
बड़ी विचित्र दशा है यह उजड़ा उजड़ा गांव 
ना कोई जन दिखता ना है तरूवर की छांव।। 25

इस विचार मे मग्न सब शीश झुकाये बढ़ते जाते
सूखी कंठ मे बरबस अपनी सूखी जीभ़ फिराते
तभी दूर तरूवर के नीचे जल की आहट आई
कलश लिए काले वस्त्रों मे बैठ दिखी एक माई।।26

अहा नाथ यह माता तो जीवनदायिनी लगती है
इस असहाय घड़ी मे जगदंबा प्रतिमा दिखती है
नही हुआ संवाद तनिक सब पानी पीने झुकते
कलश मे रखी लोटिया से मातृ प्रसाद चखते थे।।27

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

इक सफ़र:- जिसमे किधर गया हूं मैं

लोग कहते हैं बहुत बदल गया हूं मैं

शिकायत है ये क्यूं संभल गया हूं मैं।।०१


सवाल आंखों मे रख तुम्हे उठाते हैं लोग

शिकायत ये कि अब बदल गया हूं मै।।०२


मुस्ससलल कोशिशें की थी मुझे गिराने की

मेरे अपने में उन शामिल बेगाने ने।०३


उनका जोर नही रहता मेरी हिम्मत पे शायद

कोशिशें बेजा ही की थी जमाने ने।।०४


मुद्दतों से हारता ही रहा जी भरकर

आलम अब है कि निखर गया हूं मैं।।०५


मुझे तराशा हैं वक्त्त ने अपने थपेड़ों से

आफत के गले भी पड़कर संवर गया हूं मैं।।०६


मेरे मजीद़ का इततेहाद ही कुछ ऐसा

जहां रखा रखा ही बिखर गया हूं मैं।।०७


सिमटना शौक न रहा कभी भी अपना

मिली खाट कहीं भी तो पसर गया हूं मैं।।०८


मुझे ख्याल नही रहता अपने का बेगाने का

जबसे मयखाने से होकर गुजर गया हूं मैं।।०९


मेरे औलख मुझे माफ़ करोगे क्या 

दे देकर दुआएं अब ज़फ़र हुआ हूं मै।।१०


कुढ़ते बैठे रहो तुम दरिया-ए-इश्क के किनारे

मुझे देखो डूबते डूबते भी तर गया हूं मैं।।११


दिल अपना उनकी हथेली पे रख डाला था

उन ख्वाहिशों की कैंची से कतर गया हू मैं।१२


बयार बदली तो अपनी दास्तां सुनायेंगे

किस तरह आंसुओ से तरबतर हुआ हूं मै।१३


मेरी दुश्वारियों के अलह़दा किस्से अनोखे हैं

कहते कहते ही उनमे बसर गया हूं मैं।।१४


किस्मत से मेरा खेल चूहे बिल्ली के जैसा है

मिलने की उम्मीद में रातें कईं जगा हूं मै।।१५


अब तो कालेज के बहाने नही मिलते है वों

मिलने गली की बजाय उनके घर गया हूं मैं।।१६


राह जोहती आंखो का मुझपे मुकरना भी देखा

तो इक़पल को उन पर बिफर गया हूं मैं।।१७


ढलती उम्र की यें झुर्रियां तो मुंह चिढ़ाने लगीं

अब तक मौजूं में था अब ठहर गया हूं मैं।।१८


पीछे छोड़ आया मै कूकती कोयल वाला गांव

हौंकते सायरन वाले अजब़ शहर गया हूं मैं।।१९


शहर हर किसी की पसंद नही होता कुछ लोग अपनी एक सजीली दुनिया पीछे छोड़कर आते हैं।।

Good Friday ke is awasar par meri #hindipoetry jo ki m #hindimedium se ek #hindiwriter hu aur apne  #hindithoughts ko khoobsurat tareeke se #hindithought #hindishayri aur #hindi_poetry ke madhyam se likhta aur aap tak pahunchata rahta hu.

 #hindiwriters ki likhi #hindi_shayri ye sab #hindipanktiyaan ek asafal aur lakshya se chuke vyakti ko utsah aur prerna dengi.








बुलेट मेरी

मेरा रिश्ता है अब भी मेरे घर से गांव से

मै आज भी अपने गांव का बाशिंदा हूं।


चाह कर भी वहां को लौट नही सकता

अपनी जरूरतों की कैद का इक परिन्दा हूं।


लौट जाऊंगा जवानी काट कर घर अपने

अभी कैसे लौटूं अभी तो खुश हूं जिन्दा हूं।


वहीं उदास खड़ी है दरवाजे पर बुलेट मेरी

ख्वाहिश थी जिसे इक लाल बत्ती पाने का।


मै उसे छोड़ आया हूं उपर वाले के भरोसे

तु ही सुन ताने मेरे हिस्से के सारे जमाने का।


थकी मां नही पूछती कुछ भी अर्से पे घर जाता हूं

खुश होता है भाई मेरा बरसों बाद मिल जाने पर।


रास्ता दे देती हैं दीवारें कुछ शिकायतों के बाद

पर घूरती है बुलेट अपने परिचित अंदाज में।


नाजवाब होता हूं मैं उसके हर सवाल पर

बेचारगी ही रही है मेरे कल पर मेरे आज में।


छिपा लेता हूं मुंह अपना मै बेशर्मी से ऐसे

कुछ तो मैने इस शहर मे सीखा है काम का।


Yado ki #shayaries me #hindi aur #urdu ki #shayari jo purani yaado ki #mohabbat ko fir se jaga de

#shayar #urdupoetry


निम्न मध्यमवर्गीय पारंपरिक परिवारों से निकले हुए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु बड़े शहरों का रूख किये नौजवान अपने साथ बहुत से लोगों के सपनों की पोटली लेकर शहर मे आते हैं और सफलता सबके हिस्से तो नही आती कुछ जो असफ़ल रह जाते हैं उनमें से किसी की स्मृति शायद ऐसी रही हो..........................




द्रोण पुस्तक के चतुर्थ सर्ग से

ये धृष्ट जयद्रथ खड़ा हुआ  अपने दोषों से सजा हुआ  थी कुटिल चाल दिखलाई तेरे सुत की मौत करायी । सम्बंधी, नही क्षम्य है ये आगंतुक नह...