किसी परिवार की पुश्तैैनी इज्जत को बनाए रखने के लिए उस परिवार के सभी सदस्य जिम्मेदार होते है।
इस जिम्मेदारी को सभी सदस्य सतर्कता से निभाएं इसी क्रम मे एक पात्र दूसरे पात्र को समझा रहा है:-
माना बाप के गुजरने पर बेइंतहा रोये हो
गुजर फिर भी तो करना ही पडेगा बोलो
बेजां इस दारू के नशे मे क्यों खोये हो।01
लडखड़ाने से अपनी साख को बट्टा लगता है
दरकती घर दीवार का न ईंट कंकड़ बचता है
यही कर्ज चुकाया तुने बाप के अहसानों का
जो उनके नाम से था जीता वह तुमपे हंसता है।।02
ये आखिर हुआ कैसे मुझे कुछ तो समझाओ
मेरे भाई बिरादर मेरे, आओ मेरे करीब आओ
घर के छोटे हो तुम तो दर्द भी छोटा ही होगा
हुई बहुत बेजा जगहंसाई ना अब कराओ।।03
जिसकी दहलीज पर शराब थी आ नही सकती
नशीली छाया रात क्या दिन मे भी नही दिखती
तुम्हारी हिम्मत थी जो ये मजाल कर गये ऐसे
वर्ना यूं कौड़ियों मे शेर की इज्जत नही बिकती।।04
करो याद हम उस बुलंद हवेली के हिस्से हैं
जिसकी अदावत के अहल रूहानी किस्से हैं
अचानक बहके कैसे तुम सबक भूल आये
हम तुम उस बाप के दोनो हाथों के जैसे हैं।।05
भूलो जो गलत हुआ अब उस पर मिट्टी डालो
निकलो इस कुफ्र से बाहर हमें भी निकालो
तुम्हें शराबी सुनकर हमें अच्छा नही लगता
यूं लगता दिल मे एक धधकता गर्म शोला हो।।06
सोचा कभी क्यों वीरवा अब गुस्से में रहता है
आंगन की मुटरी का गला बातों मे भरता है
कहीं हरकतों से घर का कोना तो न थर्राता
या सदमें मे बैठी मां के देख आंसू सहमता है।।05
मिटेगा आधा ग़र तो हवेली आधी ही बचेगी
जुबानें हर हालात मे इसको जली ही कहेंगी
चलो फेंक दो बोतल कही न ये फेंक दे तुमको
इज्जत घर की मिल्कियत सदा आबाद रहेगी।।07
हो चुका खुद को मिटाना बाकि नही कुछ भी
गुलशन-ए-आशियां का एक खंभा हो तुम भी
इसे गुलज़ार करने का अब तो कोई सबब करो
बड़ा होकर मै जोडूं हाथ बस; अब बस करो।।08
:- शशिवेन्द्र "शशि"
SHASHIVENDRA SHASHI
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