रात का तीसरा पहर और आंखो मे नींद का नामो निशान नही। बस खिड़की से दूर आसमान मे चांद की रौशनी से नहाया पूरा इलाका दूर से चकवे की आवाज कही इस नीरवता को और मधुर बना रही थी। कुसुम अपनी बड़ी बड़ी आंखो मे अपने किसी प्रिय के स्वप्न लिए प्रतीक्षारत यामिनी सी बिस्तर पर अधलेटी सी थी। तकिये पर सिर को टिकाये नेत्र खिड़की से बाहर देख रहे थे।
यौवन मूर्ति स्त्री मे भगवान अप्रतिम धैर्य भी देता है वह अपने संकेतों से ही अपने मनोभाव को प्रदर्शित करती है न कि शब्दों से।
ठीक वैसे ही कुसुम का भी अपने इस अंजाने प्रिय से अनूठा लगाव था। कहने को तो वो अंजाना परंतु जैसे सबसे ज्यादा जान पहचान उसी से हो। उसके लिए कुछ भी कर गुजरने के भाव पैदा होते पर घर की मर्यादा और लाज के आवरण को पार न करने के प्रति सदैव सचेत भी रहती। इसी उधेडबुन मे रात का चौथा पहर शुरू हो चला था। कुसुम ने थोड़ी थकान महसूस की और वहीं लेटे हुए उसे नीद लग गई।
सुबह मां की आवाज से जगी तो देखा पापा भी वहीं कमरे मे चाय लिए बैठे हैं। एक हलकी मुस्कुराहट से घर के सभी सदस्यों ने उसके जागने का स्वागत किया।
कुसुम थोड़ी शर्माते हुए वहां से उठकर जाने लगी तो पिता ने टोकते हुए कहा "कुसु आज चाय मैने बनायी है, पी कर देख"
आती हूं पापा कहकर वह जल्दी से चहकती हुई कमरे से बाहर निकल गई।
बिटिया घर की वो गौरैया होती है जो समूचे घर के उदासी के दाने चुनकर प्यार ही प्यार बखेर देती है।
मां ने कनखियों से पापा की तरफ देखते हुए कुसुम को आवाज लगायी "अरे, इलायची वाली चाय बनाई है तेरे पापा ने अपनी लाडो के लिए" बाद के शब्दों को हल्के व्यंग्यात्मक अंदाज मे कहा था।
"वो बाथरूम से बोली आती हूं मां" आवाज मे वही कशिश और शहद सी मीठास। इस आवाज से समूचा घर प्रफुल्लित हो जाता था।
कुछ पलों के लिए माता पिता अतीत की यादों मे खो गये। वर्षों पहले किस तरह उनके जीवन मे रंग भरने एक नन्ही सी परी आई थी। उसने चारो तरफ उनकी इस नन्ही बगिया को ढेरों सुनहले रंगो से इस कद़र भर दिया की घर का जर्रा जर्रा उसकी खूशबू से महकता रहता है। वो कुछ देर के लिए सहेलियों के यहां चली जाये या कालेज चली जाये तो घर मे एक अलग ही माहौल हो जाता था।
पिता थोड़ी थोड़ी देर मे पूछने लगते अरे क्या हुआ कुसु आयी, उससे बात हुई क्या?
मां भी थोड़ी थोड़ी देर मे बात करके बेटी का हाल चाल लेती। अपने बच्चों की परवाह ही प्रत्येक मां बाप को खास बनाती है। छोटी बड़ी हर बात की चिंता से मां बाप अपने बड़े होने का हक भी जनाते हैं।
कुसुम वापस रूम मे आयी तो मां उसकी तरफ देख मुस्कुराते बोली "चाय बड़ी खास है आज की, और यह एक ट्रेनिंग भी है। तुम्हारे पापा का कहना है कि तुम भी ऐसी ही चाय बनाना"।
पापा सरकारी मुलाजिम थे। वह मानते थे कि चाय पर तो बड़े बड़े मसले हल हो जाते है और आज तो बेटी को देखने के लिए कुछ लोग आने वाले हैं।
बेटी की शादी मे उसका बाप खुशी और चिंता, कष्ट और सुख जैसे अनेकों परस्पर विपरीत भावों मे सना होता हैं। एक तरफ अपनी जिम्मेदारी निभाने का गर्व तो दूसरी तरफ अपने कलेजे के टुकड़े से बिछड़ना। जिस घर मे उसके होने से आनंद भरा रहता हो उसके जाने के बाद कैसा लगेगा यहां। दिन भर उसकी बातें उसी से करने की आदत पर अब लगाम लगानी पड़ेगी। यही सब ठानकर पिता अंदर ही अंदर खुद को समझा रहे थे। खुद को सख्त पुरुष होने का अहसास न करने पर स्वयं को आईना दिखा रहे थे। तभी यह मजबूती कहीं दरक सी गई और उनकी आंखो से आंसूओं का रिसाव होने ही वाला था कि खुद को संभालते हुए खांसने के बहाने बाहर निकल आये।
कदाचित पिता ही कन्या के जीवन का वह प्रथम पुरूष होता है जिससे प्रेम की होड़ लगती है। बेटियां पिता को सबसे ज्यादा प्यार करती हैं जबकि पिता इस प्रतियोगिता का विजेता होता है उसके पास लुटाने को अविरल प्रेम होता है।
चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा शुरू हुई तो पिता ने धीरे से अपने फोन मे उस घर के होने वाले सबसे खास मेहमान की फेसबुक प्रोफाइल खोल कर मां के हाथ में पकड़ा दिया।
जनाब ने अलग अलग वेश भूषा मे फोटो लगा रखी थी। कही पर्वत पर कहीं झरने मे नहाते तो कहीं रेस्टोरेंट में खाते हुए और सबसे मजेदार की कहीं मुंह बनाते तो कहीं आंखे मिलाते। पहली झलक में तो साहब मजाकिया लग रहे थे पर चेहरे की कटिंग सुन्दर थी और एक अलग गांभीर्य भाव दिख रहा था। एक अलग आकर्षण उनके मुखमंडल पर, कुसुम ने छिप कर देख ही लिया था।
पिता ने कहा "अनंत" नाम है और यहीं विश्वविद्यालय के फिजिक्स विभाग में सहायक प्रोफेसर है।
उन्हें बेटी के संकोच का पूरा भान था अतः मर्यादा का अह्सास करते कुछ काम से मम्मी को भी बाहर ले गये थे।
अरे वाह रे फिजिक्स तुझे तो मै बड़ी नीरस समझती थी पर तुने ऐसा सरस कहां छिपा रखा था, कुसुम मन मे विचार करती फोटो को निहारती रही।
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छोटा भाई उसे छेड़ते हुए बोला बहन अभी कुछ दिन तो ये चाय और पी ले फिर तुझसे पैसे लुंगा मैं। अभी तक कुसुम उसे अपनी बातों से करारा जवाब दे चुकी होती पर जाने कहां खोई थी किस सोच मे डूब रही है।
ला मैं भी तो देखूं भाई ने उसके हाथ से फोन लेते हुए कहा। अरे ये बंदर की तरह उकडूं क्यों बैठा है। चिढ़ाते हुए बोला।
इसके पेट मे दर्द है क्या ? आने दे पूछता हूं इससे।
कुसुम को जाने क्यों अनंत के लिए "इससे" जैसा शब्द उचित नही लगा वह फट बोल पड़ी थी "वो बड़े हैं तुमसे आप कहो"
भाई अवाक रह गया। उसे तो बहन के साथ मिलकर अनंत की खिंचाई करनी थी पर वह तो आज विपरीत बातें कर रही हैं। भाई कुछ कहता इससे पहले कुसुम कमरे से बाहर जा चुकी थी। थोड़ी देर मे चाचा चाची आ गये फूआ और मौसी भी पहुंच गये घर में 10-15 लोगों का जमावड़ा लग गया। ग्यारह बजे तक अनंत के परिवार के लोग भी आ गये थे। नाश्ते पानी के बाद बातें शुरू हुई।
बातें क्रमशः बड़ों की फिर औरतों और बच्चों की, बाद में बागवानी, खेत, गांव,घर यहां तक की घर पर पाले गये कुत्तों की भी खूब चर्चा हुई। फिर अनंत की मां ने कहा तो अब एक बार लड़का लड़की भी आपस मे बातें कर लें। इस बात पर सबकी सहमति बनी और दोनो को उपर वाले कमरे में भेजा गया। कुसुम की मौसेरी बहन साथ गई।
रूकते हिचकते हुए अनंत ने बात शुरू की। औपचारिक बातों के बाद पसंद नापसंद और भी बहुत ढेर सारी बातें। कुसुम को अनंत की बातों का अंदाज बड़ा भा रहा था। दोनो के मन मे एक दूसरे को जानने की उत्सुकता खूब थी। बातें खत्म ही नही हो रही थी पर जल्दी ही नीचे से बुलावा आ गया।
रिश्ता दोनो पक्षों को पसंद आ गया। फिर कुछ देर बाद अनंत का परिवार वहां से विदा लेकर अपने घर के लिए निकल गया।
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तीन दिन बीत चुके थे दोनो में कोई बात नही हुई थी। कोई फोन काॅल नही पता नही किसी ने नंबर दिया या नही। नंबर तो दिया था पर क्या पता पसंद ना आई हों नही कहने में सकुचाते हों और बस यहां बातें बनाकर चले गये हों।
इसी उधेडबुन मे लगी वो थोड़ी सी दुखी अपनी गलती ढूंढ ही रही थी की अचानक उसके मोबाइल की हल्की घंटी बजी थी और काल कट गई।
कोई और दिन होता तो शायद इस समय फोन देखती भी नही पर आज तपाक से फोन वापस उसी नंबर पर मिला दिया। उधर से घबरायी हुई सी पर खूब जानी पहचानी आवाज आयी " हैलो मै अनंत बोल रहा हूं,
कुसुम ने प्यारी सी सहमति दी
फिर धीरे धीरे दोनो में बातें आगे बढ़ने लगी।
"साॅरी वो मै समझ नही पा रहा था फोन करके क्या कहूँगा इसीलिए तीन दिन तक सोचता रहा था"
यह सुनकर कुसुम खिलखिलाती हंसने लगी फिर दोनो तरफ से ही कहकहे लगने लगे। इनकी प्यारी हंसी से दोनो घरों मे आह्लादित सुख और नये जुड़ाव का वास्तविक श्रीगणेश हो चला था।
:-SHASHIVENDRA SHASHI
शशिवेन्द्र "शशि"
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