इस शीर्षक को पढ़ते ही हमे सबसे पहले जो ध्यान आता है वह है
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ||
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ||
जिसके पास अतुलित बल अनन्य भक्ति और जो ज्ञानियों मे अग्रणी है उस हनुमान जी को भी अहंकार हो सकता है क्या?
आइये इसी प्रश्न का उत्तर जानते हैं
हनुमान जी जब कभी भी असाध्य और दुष्कर कार्य संपन्न करते तो प्रभु श्रीराम प्रसन्न होकर उन्हे आशीष देते थे
'तोहि भरत बाहु बल होय'
हनुमान जी अचंभित हो जाते सोचते मैने इतना कठिन अगम्य कार्य किया, मै अतुलित बल धारण करता हूं और प्रभु प्रसन्न होकर कहते है बस तुम्हे भरतलाल जितना बल हो जाये।
इस बात ने उनके मन मे जिज्ञासा के बहाने थोड़े-बहुत अहंकार भी स्थापित कर दिया था।
उन्होंने इसका समाधान करने की ठान ली और भरत जी के बाहु बल की परीक्षा लेने का मन ही मन ठान लिया।
जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी और संजीवनी बूटी न पहचान पाने की वजह से पूरा धौलागिरी लिए हनुमान जी आ रहे थे तो उन्होने अयोध्या की तरफ से ही आने का निश्चय किया था।
नंदीग्राम मे संन्यासी की भांति रहते भरत जी को आभास हुआ कि अर्द्धरात्रि मे इतना विशालकाय कोई राक्षस अयोध्या पर आक्रमण करने आ रहा है।
उन्होने कुटी के छप्पर से एक सरकंडे को अभिमंत्रित कर हनुमान जी की तरफ संधान कर दिया।
वीरवर मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े गिरते समय मुख से हाय राम निकला।
भरत जी को अपनी गलती का अह्सास हुआ और वो दौड़कर वहां पहुंचे हनुमान जी को होश आया तो लंका युद्ध का पूरा वृतांत सुनाया।
#भरत जी ने कहा
'चढ़ु मम शायक शैल समेता, पठवहुं तहं जहं कृपा निकेता'
#हनुमान जी, धौलागिरी पर्वत समेत शर पर बैठ गये भरत जी ने प्रत्यंचा चढ़ाई तब तीर मे कंपन देखकर हनुमान जी भरतलाल का पराक्रम समझ गये उन्हे अपनी गलती का अह्सास हुआ और श्रीराम प्रभु के वचन स्मरण हो आये।
वो नीचे उतर आये और हाथ जोड़कर बोले हे तात जैसा प्रभु के श्रीमुख से सुना था आपको ठीक वैसे ही पाया
'हौत न भूतल भाऊ भरत को
अचर सचर चर अचर करत को।'
धन्य है प्रभु जो अपने भक्तो को अहंकार की कालिमा से बचाते हैं
#Ssps96
1 टिप्पणी:
Achha likhe ho bhai Sahab
एक टिप्पणी भेजें