रविवार, 26 फ़रवरी 2023

प्रेम:- गहन सृष्टि तत्व

प्रेम विरह है वियोग है अनुभूति है संतुष्टि है
यह बूंद है सागर का बिन्दु है और सृष्टि है
ऐसा एक अह्सास जो दूर होने पर पास है
यह सहज विश्वास है जो बहुत ही खास है।।

प्रेम उधव के ज्ञान को क्षण में हर लेता है
राधा मीरा रसखान सदा अमर कर देता है।
रीझै मन इसपे तो गीत गोविन्द लिखता है
प्रेम विवश देव शिव धनु तोड़ते दिखता है।।

पानी को आकर्षित कर वाष्प बना देता है
अवयव यह प्रेम का सब जन का चहेता हैं
बुद्धि को ले अंकुश मे निर्जीव कर देता है
प्रेम पगा मायावश घट घट मे विचरता है।।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

हनुमान जी को अहंकार:- सकल गुणनिधान को कब अहंकार हुआ था

इस शीर्षक को पढ़ते ही हमे सबसे पहले जो ध्यान आता है वह है
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ||

जिसके पास अतुलित बल अनन्य भक्ति और जो ज्ञानियों मे अग्रणी है उस हनुमान जी को भी अहंकार हो सकता है क्या?
आइये इसी प्रश्न का उत्तर जानते हैं 

हनुमान जी जब कभी भी असाध्य और दुष्कर कार्य संपन्न करते तो प्रभु श्रीराम प्रसन्न होकर उन्हे आशीष देते थे
 'तोहि भरत बाहु बल होय' 
हनुमान जी अचंभित हो जाते सोचते मैने इतना कठिन अगम्य कार्य किया, मै अतुलित बल धारण करता हूं और प्रभु प्रसन्न होकर कहते है बस तुम्हे भरतलाल जितना बल हो जाये।
इस बात ने उनके मन मे जिज्ञासा के बहाने थोड़े-बहुत अहंकार भी स्थापित कर दिया था।
उन्होंने इसका समाधान करने की ठान ली और भरत जी के बाहु बल की परीक्षा लेने का मन ही मन ठान लिया।
जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी और संजीवनी बूटी न पहचान पाने की वजह से पूरा धौलागिरी लिए हनुमान जी आ रहे थे तो उन्होने अयोध्या की तरफ से ही आने का निश्चय किया था।

नंदीग्राम मे संन्यासी की भांति रहते भरत जी को आभास हुआ कि अर्द्धरात्रि मे इतना विशालकाय कोई राक्षस अयोध्या पर आक्रमण करने आ रहा है।
उन्होने कुटी के छप्पर से एक सरकंडे को अभिमंत्रित कर हनुमान जी की तरफ संधान कर दिया।
वीरवर मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े गिरते समय मुख से हाय राम निकला।
भरत जी को अपनी गलती का अह्सास हुआ और वो दौड़कर वहां पहुंचे हनुमान जी को होश आया तो लंका युद्ध का पूरा वृतांत सुनाया।

#भरत जी ने कहा 
'चढ़ु मम शायक शैल समेता, पठवहुं तहं जहं कृपा निकेता'
#हनुमान जी, धौलागिरी पर्वत समेत शर पर बैठ गये भरत जी ने प्रत्यंचा चढ़ाई तब तीर मे कंपन देखकर हनुमान जी भरतलाल का पराक्रम समझ गये उन्हे अपनी गलती का अह्सास हुआ और श्रीराम प्रभु के वचन स्मरण हो आये।
वो नीचे उतर आये और हाथ जोड़कर बोले हे तात जैसा प्रभु के श्रीमुख से सुना था आपको ठीक वैसे ही पाया
'हौत न भूतल भाऊ भरत को
अचर सचर चर अचर करत को।'
धन्य है प्रभु जो अपने भक्तो को अहंकार की कालिमा से बचाते हैं
#Ssps96




बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

भारत अर्चना:- ( शस्य श्यामला पुण्य प्रसूता मां भारती को समर्पित एक अर्चन गीत)

 


हे पूज्य धरा भारतभूमि प्रीति पूर्ण अभिनंदन है

निज माटी का अभिमान हमे ये माथे का चंदन है

किरदार बदलना पडता निज कर्तव्य निभाने को

सौ जीवन भी कम है इसका मोल चुकाने को।


रंचक नहीं डिगेंगे मां सर्वस्व समर्पित करने मे

यशो:लभस्व रहेगा ही जीवन जीने या मरने में

जीवन तो क्षणभंगुर है उसको अमर करेंगे हम

बलिदानी परिपाटी को उर से आज वरेंगे हम।


तेरी श्यामल काया मे अब इंच नही घटने देंगे

पुर्जा पुर्जा कट जायेंगे पर देश नहीं बंटने देंगे

बंटवारे के लंगूरों को ऐसा सबक सिखायेंगे

पीडादायक सबकों से वे चिल्लायेंगे थर्रायेंगे।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

शिखंडी को संदेश :-

शिखंडी महाभारत का एक ऐसा योद्धा था जिसने राजा द्रुपद के घर जन्म लिया था। वह अग्निजन्मा बहन द्रौपदी और धृष्टद्युम्न का अग्रज था।

परिचय:- एक कथा के अनुसार वह काशी की राजकुमारी अम्बा थी जिसने गंगापुत्र भीष्म से अपनेअपमान का बदला लेने के लिए जन्म लिया था। यही कारण था कि भीष्म उसे कभी पुरूष नही मानते थे
 
अपने संकल्प की वीर पुरूष कभी नारी के समक्ष हथियार नही उठाते इसके अनुसार भीष्म ने शिखंडी के सामने भी हथियार रख दिए और फिर उसी रथ पर सवार अर्जुन ने भीष्म की छाती बाणों से छलनी कर दिया था।

          भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था इस वरदान का धनी व्यक्ति किसी भी अवस्था मे सिर्फ                   अपनी इच्छानुसार ही मर सकता है।

आधुनिक युग मे छिपे हुए शिखंडी जो कायरता का प्रतीक है अपने प्रतिशोध के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग करते हैं यही से यह कविता प्रारंभ होती है



अतुलित योद्धा, संकल्पित योगी ही क्षितिज को साधेगा।

ध्रुव सा अटल रहे सदा ही उसे विपदा में क्या बाधेगा।

आर्यावर्त का रूद्र आठवां बस अपनों से ही हारेगा।

छोड़ शिखंडी अहं को अपने तू क्या भीष्म को मारेगा।।01



कुरुवंश का उत्तम माणिक जिससे महाभारत होगा

वंशीधर परशुधर हलधर हर कोई उससे हारा होगा

जीतेगा जो इन सबसे वो अंतिम अपनो से ही हारेगा

छोड़ शिखंडी अहं को अपने तू क्या भीष्म को मारेगा।।02


युद्धक्षेत्र मे युद्धघोष से वीरों का अतुल बल जागेगा

उसके सन्मुख कौरव पांडव कोई  याद ना आयेगा

एक अमर सुरसरि का बेटा मर स्वीकारा जायेगा

छोड़ शिखंडी अहं को अपने तू क्या भीष्म को मारेगा।।03

शिखंडी को संदेश :- भीष्म अजेय है अमर है उन्हे हराने का प्रयास निरर्थक है


भीष्म शब्द है एक विचार जो शपथ बनाया जाता है

जीवन मे सांसो की समिधा से उसे निभाया जाता है

विधि के वश मे नही रहा अब ऐसा वीर न आयेगा

छोड़ शिखंडी अहं को अपने तू क्या भीष्म को मारेगा।।04




निज पौरूष से जय को जो क्षण भर मे जीत लिया

आदेशित कर कालचक्र की दुर्धरता को विवश किया

ऐसा परम तपस्वी साधक जीवन सहज बितायेगा

छोड़ शिखंडी अहं को अपने तू क्या भीष्म को मारेगा।।05


जो अनंत बाजू मे बांधे कालगति से सहज चले

उसकी अनथक यात्रा मे धरती से अंबर हिले मिले

धरती के जीवित ध्रुव को कहां टाल तू पायेगा

छोड़ शिखंडी अहं को अपने तू क्या भीष्म को मारेगा।।06


उपसंहार:- यह एक विचारणीय प्रश्न है कि क्या कोई एक शिखंडी जो स्वयं रीढ़विहीन है और अपनी कायरता और छदमता से किसी वीर और पुरूषार्थी को मार सकता है?

क्या उसे समाप्त कर सकता है?

नही बिल्कुल नही!!!

भौतिक शरीर तो नश्वर है परंतु कीर्ति अमर रहती है और समय के समानान्तर चलती रहती है।


https://en.wikipedia.org/wiki/Shikhandi#:~:text=Shikhandi%2C%20whose%20natal%20female%20identity,causing%20the%20death%20of%20Bhishma. 


☺कृप्या सनातन धर्म से संबंधित इन प्रश्नों के माध्यम से अपने धर्म संबंधित ज्ञान का परिचय अवश्य प्राप्त करें


प्रश्न 1:- शिखंडी का पूर्व जन्म मे क्या नाम था

उत्तर:-


प्रश्न 2:- शिखंडी के पूर्व जन्म मे प्रेमी का क्या नाम था और वह किस राज्य के राजा थे ?

उत्तर:- 


प्रश्न 3:- भीष्म का पूर्ववर्ती नाम क्या था और उनका नाम भीष्म क्यों पड़ा?

उत्तर:- 


प्रश्न 4:-भीष्म के पिता का क्या नाम था?

उत्तर:-


*आपके प्रश्न भी आमंत्रित हैं

बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

रश्मियां और गोला

बिखर रही स्वर्ण रश्मियां छटक गया है गोला
अम्बर सर पीने खातिर दिनमणि ने मुंह खोला
गगन पृष्ठ पर बिन्दुभांति दिखे भानु अति सुन्दर
ज्ञान जागरण भय से तम छिप जता है अंदर।।०१


(अर्थ:- बिखर= फैल जाना, स्वर्ण= सोना, रश्मियां= किरण,
गोला= गोलाकार सूर्य को बताया गया है, अम्बर= आसमान, सर= तालाब, दिनमणि:= सूर्य, गगन= आसमान, भानु= सूर्य, जागरण= जग जाना, भय= डर, तम= अंधेरा)

तम श्रृंगाल ऊलूक दादुर सब सूरज पे चिल्लाते
इस आती उर्जा को रोको मन मसोस धमकाते
पंक्षी चहके करते स्वागत करतल ताल बजाते
धरती का बना नया कलेवर मधुर गान सब गाते।।०२

(अर्थ:- श्रृंगाल= सियार, ऊलूक=उल्लू, दादुर=चमगादड़, करतल= हाथों से ताली बजाना, कलेवर= नया रूप)

अलसायी धरती रवि को दिखा रही निज रोष
आलिंगन को आतुर पर रिक्त हुआ धम कोष
उपालंभ के संग सजाती नदिया पर्वत जंगल
जैसे मुखिया की देरी से हुआ विलंबित मंगल।।०३

(अर्थ:- निज= अपना, रोष= क्रोध, आलिंगन = गोद मे भरना, गले मिलना, आतुर=विह्वल, उत्साहित, धम =धर्म, कर्तव्य, कोष= खजाना, उपालंभ= शिकायत, मुखिया= घर का श्रेष्ठ या घर में बड़ा, विलंबित= देरी होना, मंगल= शुभ कार्य)



बीती रजनी का सौदागर समेट रहा निज सौदे
घर जाने की जल्दी मे है सब औने पौने औधें
जल्दी रखते जल्दी भरते बिखर गया कुछ रव
इस आपाधापी मे उससे छूटा श्वेत संगठित द्रव।।०४

(अर्थ:रजनी= रात, सौदागर= व्यापारी या दुकानदार, सौदे= सामान, औने पौने= हड़बड़ी में, औधें= उल्टा, आपाधापी= जल्दबाजी, श्वेत= सफेद, संगठित= इकट्ठा किया हुआ, द्रव= बह जाने वाला पदार्थ)

सूर्योदय को समर्पित यह कविता यह संदेश देती है कि रात कितनी भी अंधेरी क्यों न हो पर उसका अंत अवश्य होता है। हर रात की एक सुहानी सुबह निश्चत तौर पर होती है।

द्रोण पुस्तक के चतुर्थ सर्ग से

ये धृष्ट जयद्रथ खड़ा हुआ  अपने दोषों से सजा हुआ  थी कुटिल चाल दिखलाई तेरे सुत की मौत करायी । सम्बंधी, नही क्षम्य है ये आगंतुक नह...