बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

रश्मियां और गोला

बिखर रही स्वर्ण रश्मियां छटक गया है गोला
अम्बर सर पीने खातिर दिनमणि ने मुंह खोला
गगन पृष्ठ पर बिन्दुभांति दिखे भानु अति सुन्दर
ज्ञान जागरण भय से तम छिप जता है अंदर।।०१


(अर्थ:- बिखर= फैल जाना, स्वर्ण= सोना, रश्मियां= किरण,
गोला= गोलाकार सूर्य को बताया गया है, अम्बर= आसमान, सर= तालाब, दिनमणि:= सूर्य, गगन= आसमान, भानु= सूर्य, जागरण= जग जाना, भय= डर, तम= अंधेरा)

तम श्रृंगाल ऊलूक दादुर सब सूरज पे चिल्लाते
इस आती उर्जा को रोको मन मसोस धमकाते
पंक्षी चहके करते स्वागत करतल ताल बजाते
धरती का बना नया कलेवर मधुर गान सब गाते।।०२

(अर्थ:- श्रृंगाल= सियार, ऊलूक=उल्लू, दादुर=चमगादड़, करतल= हाथों से ताली बजाना, कलेवर= नया रूप)

अलसायी धरती रवि को दिखा रही निज रोष
आलिंगन को आतुर पर रिक्त हुआ धम कोष
उपालंभ के संग सजाती नदिया पर्वत जंगल
जैसे मुखिया की देरी से हुआ विलंबित मंगल।।०३

(अर्थ:- निज= अपना, रोष= क्रोध, आलिंगन = गोद मे भरना, गले मिलना, आतुर=विह्वल, उत्साहित, धम =धर्म, कर्तव्य, कोष= खजाना, उपालंभ= शिकायत, मुखिया= घर का श्रेष्ठ या घर में बड़ा, विलंबित= देरी होना, मंगल= शुभ कार्य)



बीती रजनी का सौदागर समेट रहा निज सौदे
घर जाने की जल्दी मे है सब औने पौने औधें
जल्दी रखते जल्दी भरते बिखर गया कुछ रव
इस आपाधापी मे उससे छूटा श्वेत संगठित द्रव।।०४

(अर्थ:रजनी= रात, सौदागर= व्यापारी या दुकानदार, सौदे= सामान, औने पौने= हड़बड़ी में, औधें= उल्टा, आपाधापी= जल्दबाजी, श्वेत= सफेद, संगठित= इकट्ठा किया हुआ, द्रव= बह जाने वाला पदार्थ)

सूर्योदय को समर्पित यह कविता यह संदेश देती है कि रात कितनी भी अंधेरी क्यों न हो पर उसका अंत अवश्य होता है। हर रात की एक सुहानी सुबह निश्चत तौर पर होती है।

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