शनिवार, 23 अगस्त 2025

प्रतिज्ञा

इतिहास मे प्रतिज्ञा पर आधारित कई महान घटनायें हुई इन पर अनेकों रोचक वर्णन और कथायें आज भी मौजूद है। यहां तक की कई विद्वान 'भीष्म प्रतिज्ञा' को महाभारत जैसे भीषण युद्ध का परोक्ष आधार भी मानते हैं लेकिन प्रतिज्ञा का अर्थ महज वचनबद्ध होने मात्र से नही है वरन मन, कर्म और वचन से उस संकल्प को निभाने में हैं।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास 'प्रतिज्ञा' का नायक 'अमृतराय' अपने जीवन व्रत को आजीवन निभाने के लिए प्रतिबद्ध है जबकि इसमे वर्णित नायिकाओं ने साधारण परंतु अप्रतिम भारतीय नारी की झांकी प्रस्तुत की है। लाला अमृतराय अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी छोटी बहन 'प्रेमा' में नई जीवन संगिनी को देख ही रहे थे कि उन्हें इससे भी बडें एक लक्ष्य की दिशा मिल जाती है फिर वह एक संन्यासी की भांति सारा सुख और वैभव छोड़कर उस लक्ष्य के ही होकर रह जाते हैं। इस दौरान उन्हें कितने झंझावात यहां तक कि अपने लंगोटिया यार दाननाथ से भी भयंकर विरोध झेलना पड़ता है, ससुराल वालों की उपेक्षा और ताने सुनने पडते हैं लेकिन वो अपने संकल्प से टस से मस नही होते। कमलाप्रसाद आधुनिकता की चाशनी में लिपटा एक विषैला करेला है जो ढकोसलेबाजी में नंबर वन है और नैतिकता और आदर्श से कोंसो दूर किन्तु अपनी पत्नी सुमित्रा के ताने और उलाहनों से पीड़ित उसका मन अंतत: हारकर सुमित्रा की ही शरण लेता है। 
मुंशी प्रेमचंद जैसा कालजयी कथाकार अपने शब्दों से एक ऐसी श्रृंखला तैयार करता है जिसकी एक एक कड़ी को पकड़ता हुआ पाठक अपनी उत्सुकता के गहरे समुद्र को पार कर लेता है उदाहरणत:----

पृथ्वी ने श्यामवेष धारण कर लिया और बजरा लहरों पर थिरकता हुआ चला जाता था। उसी बारे की भांति अमृतराय का हृदय भी आंदोलित हो रहा था, दाननाथ ने निस्पंद बैठे हुए थे, मानो वज्राहत हो गये हों। सहसा उन्होने कहा-- भैया तुमने मुझे धोखा दिया।

कोई टिप्पणी नहीं:

द्रोण पुस्तक के चतुर्थ सर्ग से

ये धृष्ट जयद्रथ खड़ा हुआ  अपने दोषों से सजा हुआ  थी कुटिल चाल दिखलाई तेरे सुत की मौत करायी । सम्बंधी, नही क्षम्य है ये आगंतुक नह...