खुदा से इतर करी न किसी की बंदगी
आयेगी मौत तो न झुकेंगी मेरी नजरें
शुक्र है जो न की हसीनों से दिल्लगी।।१
झूठ के मुंह पर हमेशा उसे झूठ कहा
वक्त बदला तो दौर अब अपना न रहा
हम तो नजाकत में पले थे बचपन से
बदलते मौसम के थपेड़े कभी न सहा।।२
इल्म हुआ बेशक इन थपेड़ो की चोट से
सुरखुरु करने का ये कुदरती अंदाज है
शुक्रिया कहने को अब रहता ही कौन
खत्म हो तमाशा तो क्या शाकीन बचते हैं?३
गिरते गिरते भी संभल पाने का हुनर
डूबने पे तैरकर निकल जाने का हुनर
समो लेना समंदर का तूफां आगोश में
मुफलिसी से सीखा हमने अजीम हुनर।।४
हमने डंसते आस्तीनो का सांप देखा है
गोया जीत चुके बाजी की मात देखा है
देखा, दूसरों के जज्बात ठुकराते लोग
गैर की आफत मे कहकहे लगाते लोग।।५
अपना जुगनू तो दम भर उछालते हैं
दूजे का हो आफ़ताब खाक बताते हैं
सब्र औ सुकुं बचा ही कहां दुनिया में
मशविरा देकर यहां माल कमा जाते हैं।।६
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