यह कविता मेरी पुस्तक द्रोण के अंश का संकलन है। यह संकलन मैंने बांग्लादेश मे हो रहे हिन्दू नरसंहार के विरुद्ध रोष वश लिखा है
मरते थे दस सहस्त्र सैनिक
भीषण पर्वत कब हारेगा
बढ़ कौन समय को मारेगा ।।1
गंभीर विषय ये देख हरि
थे विवश बड़े ये सोच हरि
न कहिं बची कोई युक्ति शेष
यही चिंता हरि की थी विशेष।।2
विधि लेखन क्या गलत होगा
या इसमे परिवर्तन होगा
सब जान मंद मुस्काते हैं
हरि इसका आनंद उठाते हैं ।।7
अर्जुन लहराता क्यूँ गैरों पर
कायर बन फिरता अपनों पर
जब सारी हुयी युक्ति असफल
समझाने की हर आस विफल।।16
क्षण छोड़ सारथी की पदवी
और दिया सुदर्शन तान वही
रथ छोड़ा और अश्व छोड़े
प्रभु भीष्म का वध करने दौड़े।।29
एक कवि कूटनीति ना समझाता हो पर उसे लेखन और दर्द, पुकार, चीत्कार और प्रेम ज्यादा समझ आता है
#bangladesh
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