मंगलवार, 19 जुलाई 2022

उन्नत वैदिक साहित्य

 उन्नत सनातन धर्म के साहित्य को पढ़ने एवं आत्मसात करने हेतु उच्च अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार गणितीय व्यवस्था मे एक बिन्दु पर अधिकतम 360° का कोण बनाया जा सकता है।

उन्नत सनातन धर्म के साहित्य को पढ़ने एवं आत्मसात करने हेतु उच्च अंतर्दृष्टि की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार गणितीय व्यवस्था मे एक बिन्दु पर अधिकतम 360° का कोण बनाया जा सकता है।

एक जीव की पूर्ण विकसित बुद्धि सापेक्ष तौर पर ब्राह्मं निर्मित वस्तुओं को ऐसे देखती है जिस प्रकार किसी बाहरी बिन्दु से उस बिन्दु के वृत्त की परिधि पर प्रत्येक बिन्दु को देखा जा सकता है यही से प्रारंभ होता है "अहं ब्रह्मास्मि" यात्रा का मूल मंत्र 

रविवार, 17 जुलाई 2022

बुद्धांजलि भाग-1

 

बुद्ध संत हैं, 

शांत हैं, 

शून्य हैं, 

साधू हैं,
शाश्वत हैं,
शस्त्र  हैं,
शास्त्र  हैं,
शक्ति हैं,
साज है,
सुख हैं,
सत्य हैं,
सनातन हैं,
सहज हैं,
सरल हैं,
समृद्ध हैं,
सृजन है,
सीमित है,
सीमांत हैं,
संचित हैं,
शोचित हैं,
साधन हैं,
साध्य हैं,
सौम्य हैं,
साम्य हैं,
शीत हैं,
साख्य हैं,
संन्यासी हैं,
सकल हैं,
सांख्य हैं,
सरस हैं,
सर्वोच्च हैं,
सर्वत्र हैं,
सर्वस्व हैं,
स्वीकृत हैं,
संसार हैं
संचार हैं,
सहमत है
सहस्र हैं,
शतक हैं,
सफल हैं,
सिद्ध हैं,
समर्थ हैं,
संकेत हैं,
संगत हैं
संगीत हैं,
संगम हैं,
समस्त हैं,
समाज हैं,
समझ हैं,
सबक हैं,
सफल हैं,
संकल्प हैं,
सागर हैं,
संक्षिप्त हैं,
संबंध हैं,
संस्कार हैं,
संज्ञा हैं,
संधि हैं,
संग्रह हैं,
संजीव हैं,
संकोच हैं,
संज्ञान हैं
संपूर्ण हैं

शनिवार, 2 जुलाई 2022

कलिंग:- चंडाशोक से पियदर्शी बनने की बुद्धकृपा

 चंडाशोक से पियदर्शी  बुद्धकृपा 


बुद्ध पर न क्षणिक द्वंद हैं
बुद्ध तो निरद्वंद हैं

उच्चस्थ मानदंड का
स्वर्णिम काल-खंड है।।01



विकराल लोल लोपसा
भयावही कराल काढ़
बढ़ी कलिंग लीलने
मनुष्यता को छीनने।।02



उन्मत चंडाशोक था
अखण्ड जिसका जोश था
शोणित नदी बहाने को
आतुर था शव बिछाने को।।03



सहस्त्र सैन्य साजकर
पैदल, रथ,वाजि, गज
कलिंग दुर्ग आ डटा
विरोध पे ना पग हटा।।04

धावा करेगा सूर्य पर
किले के शीर्ष तूर्य पर
कलिंग वीरदेश था
संकल्पों मे बंधा हुआ।।05

न एक पग पीछे हटे
सब सूरमा रण में डटे।।
सहस्त्रों शीश कट गयें
ताजी रक्त धार बह चली।।06

मानवता को धिक्कारती
चीखती पुत्कारती
दहाडे मार रो पडीं
जो नारियां थी बच रहीं।।07


इस दर्द को ना सह सका
अशोक वहां ना रूक सका
विक्षिप्त आप मानकर
धिक्कारने लगा वो स्वयं को।।08



यह क्या अनर्थ हो गया
विजय का हार व्यर्थ हो गया
अब अश्रुधार बह चली
हृदय मे घोर खलबली।।09

आत्मग्लानी मे न यूँ जलो
बुद्ध की शरण चलो
वही सभी को तारते
नयी दिशा संवारते।।10

मन मे ऐसा ठानकर
भावावेश जानकर
शरण मे आके गिर पड़ा
नि:शक्त न हो सका खड़ा।।11

यह क्या ही पाप हो गया
बचा हुआ भी खो गया।।
जब लुट चुका संसार है
क्या बच रहा जो तार दें।।12


वह बौद्ध भिक्षु बन गया
चंडाशोक अब "पियदर्शी" हो गया।।

यह भी पढ़ें

बुद्धांजलि प्रथम भाग

बुद्ध तत्व हैं

जीवत्व है

सत्व हैं
ब्राह्मंत्व हैं।।१


बुद्ध आधुनिकता का आस हैं
अतीत का विश्वास हैं
कलिकाग्नि मे कोमल घास हैं
वह एशिया का प्रकाश हैं।।२

बुद्ध-जीवन एक कुरुक्षेत्र हैं
जो संघर्षों में विचित्र हैं
अभिजनों का प्रियछत्र हैं
उत्कंठाओं का एकत्र हैं।।३

बुद्ध निर्वेद हैं
आह्लाद हैं
अभेद्य हैं
आधुनिक चतुर्वेद हैं।।४

बुद्ध अनंत हैं
दिगंत हैं
संभ्रांत हैं
बस शांत हैं।।५

बुद्ध अयन हैं
उन्नयन हैं
चिर शयन हैं
खूब मगन हैं।।६

बुद्ध सहज है
उपलब्ध हैं
मर्मज्ञ हैं
और मैत्रेय हैं।।७

बुद्ध धर्म हैं
सतकर्म हैं
मर्म हैं
अनवरत् कर्म हैं।।८

बुद्ध ज्ञान हैं
सम्मान हैं
प्रतिमान हैं
स्वयं एक अनुष्ठान हैं।।९

बुद्ध आस्था है
प्रत्याशा हैं
अभिलाषा हैं
और जिज्ञासा हैं ।।१०

बुद्ध कण्ठ हैं और गीत हैं
प्रश्न और परिणाम हैं
वह पूर्ण हैं प्रमाण भी
प्रारंभ हैं परिमाण भी।।११

बुद्ध निजता हैं
शुचिता हैं
संहिता हैं
और गौरवशाली गीता हैं।।१२

बुद्ध एक हैं
नेक हैं
अनेक हैं
और प्रत्येक हैं।।१३

बुद्ध आर्य हैं
अपरिहार्य हैं
सद्कार्य हैं
सबको स्वीकार्य हैं।।१४

बुद्ध चिन्हित हैं
पूर्ण परिचित हैं
सदा वंदित हैं
और वर्णित हैं।।१५

बुद्ध हर्ष हैं
उत्कर्ष हैं
विमर्श हैं
स्नेह का चरमोत्कर्ष हैं।।१६

बुद्ध सख्त हैं
ना आसक्त हैं
न परित्यक्त हैं
बस मुक्त हैं।।१७

बुद्ध भिज्ञ है
सर्वज्ञ हैं
मर्मज्ञ हैं
प्रेरणा का यज्ञ हैं।।१८

बुद्ध अपरिमेय हैं
प्रत्येय हैं
विनिमेय हैं
नितांत ज्ञेय हैं।।१९

बुद्ध सहनीय हैं
करणीय हैं
विचारणीय हैं
सर्वदा अनुकरणीय हैं ।।२०

वह उल्लास है
सुखद आभास हैं
कष्ट पर परिहास हैं
एक प्यारा अहसास हैं।।२१

मोक्ष का आह्वान हैं
बड़े ही महान हैं
धरा पर भगवान हैं।।२२

बुद्ध गहन संत है
मुद्रा से महंत हैं
आज भी जीवंत हैं
उनकी महिमा अनंत हैं।।२३

न ही विषाद हैं
न ही प्रमाद हैं
बड़े निर्विवाद हैं
यही आह्लाद हैं।।२४

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द्रोण पुस्तक के चतुर्थ सर्ग से

ये धृष्ट जयद्रथ खड़ा हुआ  अपने दोषों से सजा हुआ  थी कुटिल चाल दिखलाई तेरे सुत की मौत करायी । सम्बंधी, नही क्षम्य है ये आगंतुक नह...