बुधवार, 6 सितंबर 2023

वक्त:- रेतीली नदी

उजले बालों को देखकर ये ख्याल आता है
जहां मे मुस्ससलल क्या है वक्त के सिवा
गुमां बेकार है दौर को अपना बताने का
वक्त की दरिया मे बह जाते है सब निशां।।1

जिनका हुकुक कायम कभी अहले वतन में
दो गज़ मिट्टी मयस्सर नही उसे क़ब्रे दफ़न में
उम्र भी तो मुट्ठीभर रेत ही कहते हो साहेब
नही ये कम बीते जो जिन्दगी चैन ओ अमन से।।2

लिखने बैठो तो सब दुशवारिया टूट पड़ती हैं
किसी ने यादों की बाल्टी सिर पे उलट दी है
छुटपन के वो वादे इरादे अब भी याद आते हैं
आम की डाली पकड़ कसमें जो हम खाते थे।।3

खो गये वो मेरे दोस्त या सयाने हो बदल गये
मेरे मुहल्ले के वो सारे सामियाने भी जल गये
गली कच्ची रही नही तो लड़के कंचे खेले कैसे
तरक्की ने शायद उनकी ये खुशियां लूट ली है।।4


दौर बदलेगा, कल मेरा तो आज तुम्हारा होगा
बड़ी शिद्दत से हर दौर के कुछ सानी भी होंगे
पर्दा गिरा तो उनके किरदार भी बदल जायेंगे
इस उठापटक मे एक मशविरा ग़र तुम मानो।।5

संजो लेना उसे जेहन मे जो ख़ुशनुमा गुजारा है
जब कभी भी बैठोगे इस रेतीली नदी के किनारे
और उठाओगे इसकी रेत को पानी समझ़कर के
फिसल जायेगी यह, फिसलना इसकी फितरत में है।।6

कोई टिप्पणी नहीं:

द्रोण पुस्तक के चतुर्थ सर्ग से

ये धृष्ट जयद्रथ खड़ा हुआ  अपने दोषों से सजा हुआ  थी कुटिल चाल दिखलाई तेरे सुत की मौत करायी । सम्बंधी, नही क्षम्य है ये आगंतुक नह...