रविवार, 5 मार्च 2023

होली:- क्यो करते है होली में अलग अलग रंगो का प्रयोग

क्यो करते है होली में अलग अलग रंगो का प्रयोग


वैसे तो होली में उल्लास और उत्साह  का रंग मुख्य होता है पर क्या आप जानते हैं होली के प्रत्येक रंग का अपना 

एक अलग महत्व है । आइये आगे जानते हैं होली के प्रमुख रंगो के प्रयोग के पीछे क्या कारण हैं



प्रमुखतः प्रत्येक रंग का अपना अलग एक भाव है इनके प्रयोग के साथ एक संदेश दिया गया हैं



लाल रंग:- प्यार और सौन्दर्य का प्रतीक है, इसके साथ ही यह सुहाग एवं संपन्नता को भी दर्शाता है।

लाल रंग की बिन्दी सुहाग एवं वैवाहिक सम्पन्नता को दर्शाता हैं।

लाल रंग उल्लास और स्नेह का भाव बढ़ाता है



पीला रंग:- हल्दी से हम सभी भली भांति परिचित हैं इसका पीला रंग प्रत्येक घर के लिए विशेष है। यह शुभ 

कार्यो मे प्रयोग होता है इसके साथ ही इसका औषधीय गुण इसे प्रमुखता के साथ प्राकृतिक एवं घरेलु चिकित्सा मे 

इसका स्थान बनाता हैं।

पीला रंग स्वास्थ्य के प्रति सजगता और सतर्कता के भाव से प्रयुक्त होता है



अतः पीला रंग स्वास्थ्य और खुशहाली का द्योतक है।


नीला रंग:- नीलवर्ण भगवान विष्णु का प्रतीक है। यह श्रीकृष्ण के नीलवर्ण से संबंधित है। इसमें एक राक्षस 

द्वारा उन्हे विष दे दिए जाने के कारण उनका शरीर नीला पड़ गया था। नीला रंग शिव के हलाहल पीने से भी 

संबंधित है। विष प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया था।



हरा रंग:- नव जीवन, फसल कटाई समेत उत्पादकता का प्रतीक है। हिन्दु धर्म मे प्रकृति की पूजा एवं संरक्षण 

को विशिष्ट स्थान दिया गया है। अतः जीवन प्रदान करने वाले परमात्मा के प्रकृति रूप की उपासना का द्योतक है।


अतः हरा रंग धन धान्य, समृद्धि एवं सम्पन्नता का प्रतीक हैं।

उपसंहार:- इस तरह होली के विभिन्न रंगो का उद्देश्य मानव जीवन को भांति भांति के रंगों से बना हुआ एवं

 खुशहाल बनाना है। होली के रंग से सराबोर होने का एक वैज्ञानिक कारण यह भी है जिस प्रकार अलग अलग रंग

 आपस मे मिलकर एक मिश्रित नया रंग बना देतें है ठीक वैसे ही मानव जीवन के विभिन्न रंग जैसे प्रेम, स्नेह, लगाव

 और निराशा आदि भी मिलकर अनुभव का एक सुन्दर गुलदस्ता बनाते है जिसे जीवन कहा जाता हैं

3 टिप्‍पणियां:

Wizard ने कहा…

Holi ke different colors par sunder Lekh

बेनामी ने कहा…

Excellent write up

nitya study point ने कहा…

Bahut Sundar 👍

द्रोण पुस्तक के चतुर्थ सर्ग से

ये धृष्ट जयद्रथ खड़ा हुआ  अपने दोषों से सजा हुआ  थी कुटिल चाल दिखलाई तेरे सुत की मौत करायी । सम्बंधी, नही क्षम्य है ये आगंतुक नह...