हम सभी अक्सर ट्रैफिक सिग्नलों पर नन्हे बच्चों को भीख मांगते देखते हैं। मैने उसी करूणा को पीड़ा को अपनी हिन्दी कविता के माध्यम से उकेरने का एक प्रयास किया है।
यह बच्चे अवश्य किसी की आंखो के तारे रहे होंगे किसी मिन्नत से इस धरती पर लाये गये होंगे यदि हम इनसे इज्जत और प्यार से पेश आयें तो इनके दुखभरे जीवन मे एक हलके ठंडी हवा के झोंके को लाने का अह्सास तो हम करा ही सकते हैं।
कल लाल बत्ती पर
खड़ा एक बच्चा फटे चीथड़े से
तार तार कपड़े।।१
अनधुला जिस्म
ऐसा बेहाल
जख्म के निशां
निशान है लाल।।२
उलझे थे केश
केशों मे मिट्टी
मिट्टी संग रेत
चला आया देख।।३
भूख सनी आंखे
आंखो मे चाह
चाह मे इक रोटी
रोटी; हां हां रोटी।।४
वही जो खाते कम
फेंकते है ज्यादा
भरते है प्लेट
न होने पर इरादा।।५
यही मै विचारता
उसे एकटक निहारता
पल भर को खो गया
हजार आंसू रो गया।।६
उसे एकटक निहारता
पल भर को खो गया
हजार आंसू रो गया।।६
रूठने की उम्र मे
ये मांग क्युं रहा है
जिस मां ने जना इसे
बाप इसका कहा है।।७
उसे थी क्या परवाह
पर पीड़ा अथाह
बस रोटी आ जा
कहीं से भी आ जा।।८
पचास का इक नोट
मिटाये इसकी चोट
उसकी तरफ बढ़ाया
वो खिलखिलाया
धूल वाले चेहरे पर
मुझे प्यार बड़ा आया।।९
यही हंसी तो है आम
न इसका कोई दाम
शायद कहता थैंक्स
पर कह नही पाया।।१०
पर वाह रे रूपैया तूने
इक रोते को हंसाया
इक चिंतित को जगाया
मै भी संग था मुस्कुराया।।११
इस हिन्दी कविता पर आपके महत्वपूर्ण विचार सादर आमंत्रित हैं 🙏✍️
आपका
शशिवेन्द्र 'शशि'
1 टिप्पणी:
excellent poem
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