बुधवार, 1 मार्च 2023

गृहस्थ योद्धा:- आपके आस पास ऐसे योद्धा विद्यमान हैं

गृहस्थ के गुण और वीरता:- मित्रों आप सभी जानते हैं एक संन्यासी या तपस्वी के जीवन मे साधना की कठिनता तो रहती है परंतु एक गृहस्थ भी नित्य और नियमित तौर पर चुनौतियों का सामना करता रहता है। जो अपनी जिम्मेदारियों एवं दायित्वों मे बंधा रहता है। मित्रों प्रत्येक गृहस्थ एक योद्धा है। उसकी वीरता और बुद्धिमत्ता का अभिनंदन।

उसकी  वीरता को इस हिन्दी कविता के माध्यम से नमन 


जीवन के मरूधर कानन मे संग्राम लिखता है
दुर्धर काल के मस्तक पर विश्राम लिखता है
गहरी तूफानी लहरों को थामे थामे सीखता है
रवि की छाया मे ही उसे सदा आराम दीखता है।।01

(अर्थ:- मरूधर= रेगिस्तान, कानन= जंगल, उपवन, संग्राम= युद्ध, दुर्धर= कठिन, रवि= सूर्य)



घोर मेघ तपती ज्वाला भूचाल बने विकराल बढ़े
मंद हवा शीतल समीर या तीव्र गति तूफान चढ़े
थककर आशाओं के अनगिन दीप हों शांत पड़े
विष बुझे शत्रुओं के दल करें प्रतीक्षा खड़े खड़े।।02

(अर्थ:- घोर=प्रचंड, भूचाल= धरती का डोलना, मंद= धीमी, अनगिन= बिना गिने हुए, समीर= हवा)



उफनाती नदी पीने का साहस नर का निज प्रताप
जग में कुछ भी शेष नही जो हो उसको अप्राप्य
रोक सके पथ उसका ऐसा ना कोई विघ्न पाप
अभीलिप्सित उसके दर्शन को हैं हम और आप।।03

(अर्थ:- उफनाती= बढियाई नदी, साहस= हिम्मत, विघ्न= रूकावट, अभीलिप्सित= इच्छा जाहिर करना, इच्छुक)


अवरूद्ध करे पथ उसका ऐसी अडचन कहां अभी
मेघों से आच्छादित रवि निस्तेज क्या होगा कभी
सांस रोक धरती थामे और वह वेगवान मारूत भी
वीर यहां आ पहुंचा है उसके स्वागत को चलो सभी।।04

(अर्थ:- अवरूद्ध= रूकावट, पथ= रास्ता, अडचन= रूकावट, आच्छादित= ढका हुआ, निस्तेज= यशहीन,  मद्धिम, वेगवान= बहुत तेज, मारूत= हवा)

#Ssps96






द्रोण पुस्तक के चतुर्थ सर्ग से

ये धृष्ट जयद्रथ खड़ा हुआ  अपने दोषों से सजा हुआ  थी कुटिल चाल दिखलाई तेरे सुत की मौत करायी । सम्बंधी, नही क्षम्य है ये आगंतुक नह...