रविवार, 12 मार्च 2023

सप्तर्षि:- पौराणिक या आधुनिक पर निस्संदेह कल्याणकारी


इस वर्ष बजट प्रस्तुत करते समय वित्तमंत्री ने जन कल्याण के लिए सरकार की सात प्राथमिकताओं को सप्तर्षि के तौर पर बताया।

आइये इसके पौराणिक एवं कल्याणकारी महत्व को समझते हैं

पौराणिक मान्यता:-

अनंत काल से आकाश मे एक विशेष आकृति के तौर पर चमकते इन सात तारों को सप्तर्षि की

संज्ञा दी गई हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह सात ऋषि ब्रहां जी की संतान हैं एवं

कलयुग के अंत मे प्रलय के बाद के काल मे यह धरती पर आते हैं। ब्रह्मा जी के आदेशानुसार

पुनः यहां धर्म और जीवन का शुभारंभ कराते हैं। इन्हें सांसारिक बंधनों एवं भौतिक तत्वों से मुक्त

माना जाता हैं।

विज्ञान इन्हें (उरसा मेजर) कहता है जबकि सनातन साहित्य मे यह सात महान ऋषि माने जाते हैं


1-अत्रि:- सनातन धर्म मे वर्णित देवी अनुसूया के पति एवं भगवान दत्तात्रेय के पिता हैं। आपके

सम्मान मे ऋग्वेद के पांचवे मंडल को अत्रि मंडल भी कहते हैं।



2- भारद्वाज:- इन्हे देवगुरु बृहस्पति का यशस्वी पुत्र एवं द्रोणाचार्य के गुरू भी माना जाता है।

प्रयागराज से संबंधित भारद्वाज आश्रम मे प्रभु श्रीराम का आगमन रामायण मे वर्णित हैं।

 

3-गौतम:- रामायण मे ही चर्चित ऋषि गौतम जिन्होने अपनी भार्या अहिल्या को पाषाण होने का

श्राप दिया था। रामायण मे इनकी चर्चा भी है। गोदावरी नदी की उत्पत्ति का श्रेय गौतम ऋषि को

ही जाता है



 

4- जमदग्नि:- महर्षि भृगु के वंशज एवं प्रतापी भगवान परशुराम के पिता हैं। कामधेनु गाय के

लिए सहस्रार्जुन ने इनकी हत्या कर दी थी। परशुराम जी ने फिर उसका वध किया था।

 

5-कश्यप:- देव और असुर के जनक माने जाते हैं। आधुनिक काश्मीर को इनके ही नाम कश्यप

मीर अर्थात 'ऋषि कश्यप की झील' के नाम से जाना जाता हैं।

 

6- वशिष्ठ:- ब्रहां जी के मानस पुत्र हैं। यह भगवान राम और सूर्यवंशी राजकुल के कुलगुरू भी

माने जाते हैं।देवी अरूंधती इनकी भार्या थीं तथा इन्होने योग वशिष्ठ तथा वशिष्ठ संहिता तैयार की

थी।

7- विश्वामित्र:- एक प्रतापी क्षत्रिय राजा वशिष्ठ की नंदिनी गाय के आकर्षण मे टकराव तक जाते

है तथा राज पाठ छोड़कर संन्यासी बनते है। अंततः अपने तपबल से उच्च पद प्राप्त करते हैं।

राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेना और त्रिशंकु का कल्याण यही करते है। उर्वशी से उत्पन्न कन्या का

नाम शकुन्तला नामक पुत्री पैदा होती है जिससे आगे चलकर भरत पैदा होते है जिससे हमारे

देश का नाम भारत पड़ा है।

सप्तर्षि एवं ध्रुव (Pole Star):-

एक जनश्रुति के अनुसार प्रति रात्रि मे इन सप्तर्षियों की यात्रा आरंभ होती है और ऐसा माना जाता है कि यह ध्रुव तक पहुंचना चाहते हैं।



 

लेकिन ध्रुव का पद प्राप्त करने से पहले ही भगवान भास्कर के तेजस्वी सारथी अरूण अपनी पहली किरण उषा के साथ दिनारंभ का संकेत देते है और इसी के साथ इन सप्तर्षियों की रात्रि साधना की अपूर्ण यात्रा समाप्त हो जाती हैं।

इस तरह यह पूरे वर्ष भर मे ध्रुव के चारो तरफ एक परिभ्रमण भी पूरा कर लेते हैं एवं इनकी स्थिति से ऋतुओं का अनुमान भी लगाया जाता था।



   अनवरत् चलती आ रही यह यात्रा जैसे भगवान सूर्य की दिवस यात्रा नियमतः चलती रहती है ठीक वैसे ही रजनी के समानांतर यह मौन यात्रा भी चलती रहती है।

इस मान्यता मे बताया जाता है जिस दिन सप्तर्षियों की यह यात्रा पूर्ण हो जायेगी उस दिन परमात्मा के द्वारा सृष्टि के पूर्णत्व के बारे मे काल का एक कठोर निर्णय होगा शायद वही प्रलय का समय होगा।


 कुछ प्रश्न 

1- क्या हिन्दु मान्यता के अनुसार सप्तर्षियों का स्थान अपरिवर्तनशील है?

उत्तर:-


2- दत्तात्रेय के माता-पिता का नाम क्या है?

उत्तर:- 


3- ऋषि पंचमी किसकी आराधना का पर्व है ?

उत्तर:-


4- सप्तर्षियों के गुरू का क्या नाम हैं?

उत्तर:-


5- सप्तर्षि तारा समूह का वैज्ञानिक नाम क्या है ?

उत्तर:-


#Ssps96

1 टिप्पणी:

Hare Krishna Followers ने कहा…

शशि जी...सरल भाषा में लिखा गया...बहुत ही जानकारी पूर्ण लेख... जो अंत में पाठकों और शोधकर्ताओं के लिए कुछ प्रश्न भी छोड़ जाता है... आपको साधुवाद... 🙏🏻🙏🏻

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