दीन दयाल विरिद संभारी हरहू नाथ मम् संकट भारी।।
पुजारी जी ने इस चौपाई के साथ आज शाम के कीर्तन पर विराम लगाया था। सभा अब विसर्जित हो चुकी थी "एकादशी कब है पंडित जी" केशव भगत घुटने पर हाथ लगा कर उठते हुए बोले।
क्यो, भगत व्रत रखोगे क्या? पुजारी ने ठिठोली करते पूछा
"हां सोच रहा हूं, जबसे बुढिया गई है कोई व्रत त्यौहार नही मना है" भगत बोले
"सब राम जी की इच्छा है भगत" पुजारी ने एकादशी तिथि बताते हुए कहा
वैसे तो पुजारी और केशव भगत दोनो ही अपने घर मे अकेले थे। यदा कदा खाना भी साथ मे बना लेते थे।
आज पता नही क्यूं भगत को भूख नही लगी थी सो हल्की रात मे थोड़ा थोड़ा टहलने निकल पड़े थे। धीरे धीरे गांव से बाहर अपने खेतों की ओर निकल पड़े। ट्यूबवेल के पास एक चबूतरा बना रखा थोड़ी थकान लगी बस वही चबूतरे पर लेट गये मंद मंद बयार मे हल्की सी झपकी आ गई।
प्रेम की मां कह रही है आ जाओ रोटी खा लो लेकिन भगत आज पूरा खेत एक ही सांस मे जोत लेना चाहते थे। कल ही नया ट्रैक्टर जो लाये थे, गृहस्थ बड़ी मिन्नतों और संयम के बाद कुछ खरीद पाता है और जब बात ट्रैक्टर जैसे बड़े सौदे की हो फिर तो उत्साह चौगुना होता है। तब ट्रैक्टर ट्राली जोडकर पूरे मोहल्ले को बगही के मेला मे ले गये थे। नई साडी मे प्रेम की महतारी बडी चितभावन लग रही थी। केशव के हृदय मे रह रह कर उमंग उठ रही थी तब प्रेम तीन बरस का था।
अहा विधाता हो, क्या दिन थे। दर्द और पश्चाताप पिघल कर उनकी आंखो से द्रव रूप मे निकल पड़ा था। आंखे खोलने का मन नही हो रहा था। वहीं से पुरानी यादों मे चित्त खो गया रात गहराने के साथ ही नींद भी गहरी होती गयी। बड़ी देर तक यादों के समंदर मे गोते लगाते हुए भगत अचानक एक औरत के जल्दी जल्दी चलने की आवाज से सिहर गये थे; आधी रात मे कौन है भगत पांव दबाये उस आवाज की तरफ चल पड़े थे।
तब तक दो अलग आवाजें सुनाई दी, "हम यहां से कहीं दूर चल पडेंगे लेकिन अपने बच्चे को यहां न छोडूंगी" युवती बोली।
"तो क्या अनबयाही किसी बच्चे को साथ रखेगी कुलक्षिनी" दूसरी औरत बोली थी।
यह सुनकर भगत सारा माजरा समझ गये थे। एक नवजात बच्चे की आवाज सुनाई दे रही थी और यही उसके जीवन को समाप्त करने का वाद विवाद भी चल रहा था की एक पुरुष चीखा "मान जा नही तो तुझे भी यही दफन कर देंगे"।
"हमारी नाक पहले ही कटा चुकी हैं" उसने डपटते हुए कहा था
युवती बोली मै इसे लेकर कहीं और चली जाउंगी आप दोनो लोगो से कह देना मै मर गई। आप पर कोई लांछन नही आयेगा। युवती ने तर्क देते हुए विनती की थी। इस समय वह नवजात दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह अपनी जननी की गोद मे था। पुरूष ने गुस्से मे कहा "इसका बाप तो गांव छोड़कर भाग गया है और उसका बाप उल्टे हमे पुलिस केस मे फंसाने की धमकी दे रहा है।
दूसरी औरत रोने लगी थी पुरूष ने धमकाया चुप रह ये मैल मिटाने दे।
वह उस नवजात की तरफ बढ़ा ही था कि केशव झट कूदकर उनके बीच आ गया और उसकी लाठी पकड ली थी।
दोनो गुत्थम गुत्था थे पर नौजवान केशव मे खूब दम खम था उसने जोर लगाकर धम नीचे पटक दिया था। दूसरी औरत पीछे से केशव को मार रही थी पर केशव ने मजबूती से धर रखा था। इतनी देर मे वह जोर से चिल्ला पड़ा तो गांव से लोग लाठी डंडा लेकर दौड़ पड़े थे। सभी को पकडकर गांव मे लाया गया। यह लोग दूर किसी गाँव से आये थे। तय हुआ कल दिन के उजाले मे पंचायत मे फैसला होगा। गांव के बीच पीपल के तले बड़े बुजुर्ग बैठे। चर्चा शुरू हुई लडकी का परिवार उसके बच्चे को अपनाने को कत्तई तैयार नही था और लडकी भी अपने बच्चे को छोड़ने को तैयार नही थी। पंचो के समक्ष यह अजीबोगरीब समस्या थी। कोई समाधान होता ना देख लडकी के मां बाप अपने घर लौट गये साथ ही लड़की से नाता भी तोड़कर गये अब उसके पास क्या रास्ता था। पंचो ने उसकी इच्छा जानने के लिए पूछा।
लड़की ने हाथ जोड़कर कहा " पंचो जीवन बचाने वाला देवता होता है और प्राणों का स्वामी भी, मेरा जीवन तो किसी और के छल से नष्ट हो चुका है अब यदि मुझे आश्रय मिले तो बड़ा उपकार होगा, यह कह उसने अपना सिर पंचो के समक्ष जमीन पर झुका दिया था।
नौजवान केशव को लड़की की बातों ने खूब प्रभावित किया था उसने स्वयं पहल किया और लड़की ने सहर्ष उसे अपने जीवन स्वामी के रूप में स्वीकार कर लिया था। अपने जीवन की इस सच्चाई को दोहराते जब तक भगत की नींद खुलती आसमान मे हल्का उजाला हो चुका था।
:-शशिवेन्द्र "शशि"
#Ssps96
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें