गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

कपोत और वनराज

शांति कपोतों की बिरियानी वे नित्य चाव से खाते थे।

क्षुधातृप्ति की हिचकी ले हमको सदा चिढ़ाते थे।।

हम चोटिल चोटिल रहते थे घाटी मे अत्याचारों से।

हम थे अवाक् कश्मीरी जन्नत मे जेहादी नारों से।।

अबकी सिंहासन पर गिर का बाज बिठाया है हमने।

उनकी चाले सीधी कर दे वनराज बिठाया है हमने।।

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आज का अंगुलीमाल #hindistories

सुबह के चार बजे थे कि छत्तीसगढ के सीमांत जनपद का विधनू जंगल गोलियों की तडतडाहट से गूंज उठा था। कमांडेंट विभा सोरांव के नेतृत्व मे केन्द्रीय रिजर्व बल की यह टुकड़ी नक्सल आपरेशन पर थी। नक्सलियों से मुठभेड मे दोनो तरफ से फायरिंग चलते हुए काफी समय बीत गया था। अब सूरज दो लट्ठ उपर आसमान मे चढ़ आया था।


इस मुठभेड़ मे अब तक कितने नक्सली हताहत हुए कुछ पता नही पर सुरक्षाबलों के दो जवान गंभीर तौर पर घायल हो चुके थे। दुश्मनों की हरेक गोली विभा के हौसले को दोगुना कर देती थी। चारो तरफ से घिरे नक्सलियों के पास जब गोला बारूद खत्म होने लगा तो भागने के दुस्साहसिक प्रयास मे उन्हे मार गिराया गया।अंतिम नक्सली के कंधे पर विभा की गोली लगी और वो जमीन पर गिरा कराहने लगा। विभा दौड़कर उस तक पहुंची घायल नक्सली कराहता जा रहा था। जीत की खुशी मे डूबी विभा को अचानक उस कराहती आवाज ने गम के सागर मे डूबो दिया उसकी सारी खुशी गम मे बदल गई थी। कराहने वाली की आवाज मद्धम हो रही थी और विभा की धड़कनें तेज होती जा रही थी। ये वही है, उसने झट घुटनों के बल बैठ कर असित के चेहरे से नकाब हटाया था।


वो रो पड़ी। सुरक्षाबलों की मदद से सभी घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया। आपरेशन के बाद अभी तक असित को होश नही आया था। विभा उसके वार्ड का राउंड लगाकर आयी तो उसे यकीन नही हो रहा था कि दशकों से वो जिसका इंतजार कर रही थी वो इस हाल मे मिलेगा। वो बार बार खुद को कोसती जा रही थी, काश आखिरी गोली न चलाई होती। ऐसा कैसे हो सकता है, यूपीएससी की परीक्षा पास करने वाला इंसान नौकरी ज्वाइन ना करके नक्सलवाद का समर्थक कैसे हो गया? उसे यकीन नही हो पा रहा था।


उसे अब भी यूनिवर्सिटी की कैंटीन का वो कोना याद था जहां एक शर्मीला लड़का अकेले बैठा रहता था। यहां तक की उसे प्रेम का प्रस्ताव भी विभा ने स्वयं ही दिया था।

पर हां असित बहुत भावुक था, भेदभाव को बिल्कुल बर्दाश्त नही करता था इस मसले पर तो कितना आगबबूला हो जाता था वो।

वो खयालों मे खोयी ही थी की इंस्पेक्टर ने बताया कि असित को होश आ गया है। विभा अंदर वार्ड मे गयी बड़ी बड़ी आंखो और सुन्दर केश विन्यास वाला असित अब कितनी झुर्रियां थी उसके चेहरे पर अधपके बाल और आंखो मे अंतहीन बेचारगी भी।

नही तुम ये नही हो सकते तुम तो तथागत थे अंगुलीमाल कैसे बन गये, तुमसे किसी का अपमान तक होते नही देखा जाता था अब तुम हत्यारे कैसे हो सकते हो। खुद को असहज होता देख विभा बोली उसकी आंखो से आंसू बहने लगे थे।

असित भी कुछ बोलना चाह तो रहा था पर शारीरिक कमजोरी से उसके बोल ना निकले। बेबसी में आंसु निकल पड़े थे। दूसरों के बहकावे मे बहुत कर ली मनमानी पर अब नही, अब मुझे मेरा अधिकार चाहिए जो बरसों पहले अनायास मुझसे छीन लिया गया था, विभा दूसरे हाथ से अपने आंसू पोछते बोल पडी थी। उसके हाथों में अपना हाथ देता असित चुप लेटा था आंखो से अश्रुधार बहती ही जा रही थी उसमें पश्चात, प्रेम, विछोह सब साथ मिश्रित थे।

असित ने यह कभी नही सोचा था विभा उसकी इस भाँति प्रतीक्षा करेगी। उसे बहुत सी बातों का पश्चाताप था पर विभा के प्रति हुआ अन्याय उनमे सबसे भारी लग रहा था। 

अस्पताल के वार्ड मे खड़ी विभा उसे प्रत्यक्ष "तथागत" लगी जो उस अंगुलीमाल का जीवन उद्धार कर रही थी।

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:- शशिवेन्द्र "शशि"

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मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

जीवन-स्वामी

 दीन दयाल विरिद संभारी हरहू नाथ मम् संकट भारी।।

पुजारी जी ने इस चौपाई के साथ आज शाम के कीर्तन पर विराम लगाया था। सभा अब विसर्जित हो चुकी थी "एकादशी कब है पंडित जी" केशव भगत घुटने पर हाथ लगा कर उठते हुए बोले।



क्यो, भगत व्रत रखोगे क्या? पुजारी ने ठिठोली करते पूछा

"हां सोच रहा हूं, जबसे बुढिया गई है कोई व्रत त्यौहार नही मना है" भगत बोले

"सब राम जी की इच्छा है भगत" पुजारी ने एकादशी तिथि बताते हुए कहा 

वैसे तो पुजारी और केशव भगत दोनो ही अपने घर मे अकेले थे। यदा कदा खाना भी साथ मे बना लेते थे।

आज पता नही क्यूं भगत को भूख नही लगी थी सो हल्की रात मे थोड़ा थोड़ा टहलने निकल पड़े थे। धीरे धीरे गांव से बाहर अपने खेतों की ओर निकल पड़े। ट्यूबवेल के पास एक चबूतरा बना रखा थोड़ी थकान लगी बस वही चबूतरे पर लेट गये मंद मंद बयार मे हल्की सी झपकी आ गई।

प्रेम की मां कह रही है आ जाओ रोटी खा लो लेकिन भगत आज पूरा खेत एक ही सांस मे जोत लेना चाहते थे। कल ही नया ट्रैक्टर जो लाये थे, गृहस्थ बड़ी मिन्नतों और संयम के बाद कुछ खरीद पाता है और जब बात ट्रैक्टर जैसे बड़े सौदे की हो फिर तो उत्साह चौगुना होता है। तब ट्रैक्टर ट्राली जोडकर पूरे मोहल्ले को बगही के मेला मे ले गये थे। नई साडी मे प्रेम की महतारी बडी चितभावन लग रही थी। केशव के हृदय मे रह रह कर उमंग उठ रही थी तब प्रेम तीन बरस का था।


अहा विधाता हो, क्या दिन थे। दर्द और पश्चाताप पिघल कर उनकी आंखो से द्रव रूप मे निकल पड़ा था। आंखे खोलने का मन नही हो रहा था। वहीं से पुरानी यादों मे चित्त खो गया रात गहराने के साथ ही नींद भी गहरी होती गयी। बड़ी देर तक यादों के समंदर मे गोते लगाते हुए भगत अचानक एक औरत के जल्दी जल्दी चलने की आवाज से सिहर गये थे; आधी रात मे कौन है भगत पांव दबाये उस आवाज की तरफ चल पड़े थे।

तब तक दो अलग आवाजें सुनाई दी, "हम यहां से कहीं दूर चल पडेंगे लेकिन अपने बच्चे को यहां न छोडूंगी" युवती बोली।

"तो क्या अनबयाही किसी बच्चे को साथ रखेगी कुलक्षिनी" दूसरी औरत बोली थी।

यह सुनकर भगत सारा माजरा समझ गये थे। एक नवजात बच्चे की आवाज सुनाई दे रही थी और यही उसके जीवन को समाप्त करने का वाद विवाद भी चल रहा था की एक पुरुष चीखा "मान जा नही तो तुझे भी यही दफन कर देंगे"।

"हमारी नाक पहले ही कटा चुकी हैं" उसने डपटते हुए कहा था

युवती बोली मै इसे लेकर कहीं और चली जाउंगी आप दोनो लोगो से कह देना मै मर गई। आप पर कोई लांछन नही आयेगा। युवती ने तर्क देते हुए विनती की थी। इस समय वह नवजात दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह अपनी जननी की गोद मे था। पुरूष ने गुस्से मे कहा "इसका बाप तो गांव छोड़कर भाग गया है और उसका बाप उल्टे हमे पुलिस केस मे फंसाने की धमकी दे रहा है।

दूसरी औरत रोने लगी थी पुरूष ने धमकाया चुप रह ये मैल मिटाने दे।

वह उस नवजात की तरफ बढ़ा ही था कि केशव झट कूदकर उनके बीच आ गया और उसकी लाठी पकड ली थी।


दोनो गुत्थम गुत्था थे पर नौजवान केशव मे खूब दम खम था उसने जोर लगाकर धम नीचे पटक दिया था। दूसरी औरत पीछे से केशव को मार रही थी पर केशव ने मजबूती से धर रखा था। इतनी देर मे वह जोर से चिल्ला पड़ा तो गांव से लोग लाठी डंडा लेकर दौड़ पड़े थे। सभी को पकडकर गांव मे लाया गया। यह लोग दूर किसी गाँव से आये थे। तय हुआ कल दिन के उजाले मे पंचायत मे फैसला होगा। गांव के बीच पीपल के तले बड़े बुजुर्ग बैठे। चर्चा शुरू हुई लडकी का परिवार उसके बच्चे को अपनाने को कत्तई तैयार नही था और लडकी भी अपने बच्चे को छोड़ने को तैयार नही थी। पंचो के समक्ष यह अजीबोगरीब समस्या थी। कोई समाधान होता ना देख लडकी के मां बाप अपने घर लौट गये साथ ही लड़की से नाता भी तोड़कर गये अब उसके पास क्या रास्ता था। पंचो ने उसकी इच्छा जानने के लिए पूछा।

लड़की ने हाथ जोड़कर कहा " पंचो जीवन बचाने वाला देवता होता है और प्राणों का स्वामी भी, मेरा जीवन तो किसी और के छल से नष्ट हो चुका है अब यदि मुझे आश्रय मिले तो बड़ा उपकार होगा, यह कह उसने अपना सिर पंचो के समक्ष जमीन पर झुका दिया था।

नौजवान केशव को लड़की की बातों ने खूब प्रभावित किया था उसने स्वयं पहल किया और लड़की ने सहर्ष उसे अपने जीवन स्वामी के रूप में स्वीकार कर लिया था। अपने जीवन की इस सच्चाई को दोहराते जब तक भगत की नींद खुलती आसमान मे हल्का उजाला हो चुका था।

:-शशिवेन्द्र "शशि"

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द्रोण पुस्तक के चतुर्थ सर्ग से

ये धृष्ट जयद्रथ खड़ा हुआ  अपने दोषों से सजा हुआ  थी कुटिल चाल दिखलाई तेरे सुत की मौत करायी । सम्बंधी, नही क्षम्य है ये आगंतुक नह...