शनिवार, 27 सितंबर 2025

घोड़े

                     शीर्षक - वफादार घोड़े:- 

🐎 आज के परिवेश मे राजनीतिक कार्यकर्ताओं की घोर निष्ठा और वफादारी अपनी स्वामिभक्ति के लिए विख्यात 'घोड़ों' को भी मात देती है। अपनी इच्छाओं को लज्जा और शर्म के आवरण मे समेटे एकनिष्ठ होकर अपने नायकों की सेवा करते इन कार्यकर्ताओं की इस वफादारी के बावजूद उन्हें प्राप्त क्या है ?
इसका आंकलन किये बगैर मै अपनी कविता आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं, आशा करता हूं आपको पसंद आयेगी...............................................

घोड़े हां, हां ये घोड़े ही तो
करते हैं जंग की शुरुआत 
वर्ना राजाओं की फितरत
हंसते गलेमिल भूलने की है।01

घोड़े ही बैठे होते हैं तैयार
निज खूं बहाने को पागल
वर्ना इक राजा की दुश्मनी 
दिखी कभी किसी और से।02

ये दौड़ते है सरपट मैदां से
रौंदते है बेजा हरे भरे खेत
और मिटाते है खेत-खलिहां 
जो भरता है इनका भी पेट।03

आखिर मे जीतता है राजा
हारने पर हार जाते है घोड़े
जीत बनी राजा की खातिर 
चोटिल होने को बने हैं घोड़े।04

खुश होने पे पाते थोड़ी घास
गुस्से मे दमभर पाते हैं कोड़े
इनमें है वफादारी का सबब
आदत से ही मजबूर हैं घोड़े।05

भूल सहज कोड़ो के निशां
सारा बोझ सिर पे उठाते हैं
पूरी चोट देता हो सवार इन्हें 
उसे भी सिर पे ही बिठाते हैं।06

:- शशिवेंद्र 'शशि'
#Ssps96

घोड़े

                     शीर्षक - वफादार घोड़े :-  🐎 आज के परिवेश मे राजनीतिक कार्यकर्ताओं की घोर निष्ठा और वफादारी अपनी स्वामिभक्ति के लिए विख...