🙏गुरू अंधेरे जीवन में प्रकाश लाते हैं। हालांकि यह कोई औपचारिक पद नहीं है, प्रत्येक व्यक्ति जिसने ज्ञान देकर दूसरे के जीवन को बेहतर बनाया है, वह गुरु है।
-) सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय
-) गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
-) कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय
जनम - जनम का मोरचा, पल में डारे धोया
-) गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि - गढ़ि काढ़ै खोट
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट
-) गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान
-) गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं
-) गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं
उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं
-) ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास
गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास
-) कबीरा ते नर अन्ध है गुरु को कहते और
हरि रूठे गुरु ठौर है गुरु रुठै नहीं ठौर
-) गुरु बिन ज्ञान न उपजै गुरु बिन मिलै न मोक्ष
गुरु बिन लखै न सत्य को गुरु बिन मिटै न दोष
-) तगुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत
-) कुमति कीच चेला भरा गुरु ज्ञान जल होय
जनम जनम का मोरचा पल में डारे धोय
-) गुरु किया है देह का सतगुरु चीन्हा नाहिं
भवसागर के जाल में फिर फिर गोता खाहि
-) शब्द गुरु का शब्द है काया का गुरु काय
भक्ति करै नित शब्द की सत्गुरु यौं समुझाय
-) जो गुरु ते भ्रम न मिटे भ्रान्ति न जिसका जाय
सो गुरु झूठा जानिये त्यागत देर न लाय
-) यह तन विषय की बेलरी गुरु अमृत की खान
सीस दिये जो गुरु मिलै तो भी सस्ता जान -) गुरु लोभ शिष लालची दोनों खेले दाँव
दोनों बूड़े बापुरे चढ़ि पाथर की नाँव
-) मूल ध्यान गुरू रूप है मूल पूजा गुरू पाव
मूल नाम गुरू वचन है मूल सत्य सतभाव
-) गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय
-) जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर
एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीर तो भी सस्ता जान
-) गुरु लोभ शिष लालची दोनों खेले दाँव
दोनों बूड़े बापुरे चढ़ि पाथर की नाँव
-) मूल ध्यान गुरू रूप है मूल पूजा गुरू पाव
मूल नाम गुरू वचन है मूल सत्य सतभाव
-) गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय
-) जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर
एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीर
कबीर दास ने गुरु-शिष्य संबंध के महत्व पर बल दिया, यह कहते हुए कि एक सच्चा गुरु शिष्य को आध्यात्मिक ज्ञान की ओर मार्गदर्शन कर सकता है। उन्होंने इस विषय पर अपनी कविताओं और दोहों में विस्तार से लिखा। कबीर दास की शिक्षाएं और लेखन आज भी आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोगों को प्रेरणा देती हैं, भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को उजागर करती हैं।
उन्होने गुरु-शिष्य प्रेम की महिमा गाई, सच्चा गुरु जो शिष्य को ज्ञान के द्वार तक ले जाए।उनकी कविताओं और दोहों में यही संदेश है, गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व का वर्णन भारतीय आध्यात्मिकता में भी है।