अंधेरे को बुरा अब मत कहना
कमी मे जुड़कर यह इज्जत के रफूगर जैसा है
पता न चले कमी कुछ भी चाहे कैसी भी हो
चार लवों पे न आये बात चाहे जैसी भी हो
इस अंधेरे का एक वज़ूद है बड़ा ही खास
मजबूरी के नंगे बदन का बनता लिबास। ०१
कमी मे जुड़कर यह इज्जत के रफूगर जैसा है
पता न चले कमी कुछ भी चाहे कैसी भी हो
चार लवों पे न आये बात चाहे जैसी भी हो
इस अंधेरे का एक वज़ूद है बड़ा ही खास
मजबूरी के नंगे बदन का बनता लिबास। ०१
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
जरूरी होता है कुछ बातो का कोई राजदार न हो
चिराग का उजाला सभी को बड़ा प्यारा है
जलता हो गर वो पड़ोसी की दहलीज में
बस मद्धम रौशनी देता रहे सुकून की
ख्वाहिश करे न कभी तेल न बाती की।।०२
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
घुमड़ती है चाहत उन्हें अपने जोर आजमाइश की
उनसे बड़ा कोई अय्यार तो न हुआ अभी
पता लगाने की जुगत मे भींचते है मुट्ठी
गिरा हाथ तो इज्जत चली जायेगी
पर अंधेरे मे खाक़ बात फैल पायेगी।।०३
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
अब तो चांद की रौशनी पर भी किराया देना होगा
अपने हिस्से के आसमां का सबब भूल ही जा
कौन मकबूलियत के आसरे बैठा निहारेगा
मेहनत की रोटी है या रोटी अपने नसीब की
रौशन है साहेब की कोठी से झोंपड़ी गरीब की।।०४
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
बच जाते हैं बेआबरू होकर गली से गुजरने से
हालात सामना करने लायक ना भी हों
गला साफकर गर्दन सीधा रखना ही तो है
छिपाये मुंह अपना वो जो धरे गये थे कल
यहां जुर्म को बस हाथों से फिसलना ही तो हैं।।०५
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
उजाले का जश्न मनाने वालों सबके नसीब एक से नहीं
तुम्हारे सुखों के दामन में उस पसीने की बू
महक पाओं तो समझोगे उसमे आंसू भी हैं
किसी तरह पलंग पर काटते हो दिन अपने
जहां काटते मच्छर वहां खाक आते है सपने।।०६
जरूरी होता है कुछ बातो का कोई राजदार न हो
चिराग का उजाला सभी को बड़ा प्यारा है
जलता हो गर वो पड़ोसी की दहलीज में
बस मद्धम रौशनी देता रहे सुकून की
ख्वाहिश करे न कभी तेल न बाती की।।०२
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
घुमड़ती है चाहत उन्हें अपने जोर आजमाइश की
उनसे बड़ा कोई अय्यार तो न हुआ अभी
पता लगाने की जुगत मे भींचते है मुट्ठी
गिरा हाथ तो इज्जत चली जायेगी
पर अंधेरे मे खाक़ बात फैल पायेगी।।०३
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
अब तो चांद की रौशनी पर भी किराया देना होगा
अपने हिस्से के आसमां का सबब भूल ही जा
कौन मकबूलियत के आसरे बैठा निहारेगा
मेहनत की रोटी है या रोटी अपने नसीब की
रौशन है साहेब की कोठी से झोंपड़ी गरीब की।।०४
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
बच जाते हैं बेआबरू होकर गली से गुजरने से
हालात सामना करने लायक ना भी हों
गला साफकर गर्दन सीधा रखना ही तो है
छिपाये मुंह अपना वो जो धरे गये थे कल
यहां जुर्म को बस हाथों से फिसलना ही तो हैं।।०५
अंधेरे को बुरा अब मत कहना
उजाले का जश्न मनाने वालों सबके नसीब एक से नहीं
तुम्हारे सुखों के दामन में उस पसीने की बू
महक पाओं तो समझोगे उसमे आंसू भी हैं
किसी तरह पलंग पर काटते हो दिन अपने
जहां काटते मच्छर वहां खाक आते है सपने।।०६
अंधेरा बुरा है अब मत कहना
बड़ा जरूरी होता है कुछ बातों पर गुमनामी का पर्दा
अमीर की बेटी घर से निकलती है अंधेरे में
बेवा गरीब की दिन के उजाले मे मजूरी पे गई
हुआ बदनाम कौन सभी जानते हैं
पर बड़े को बुरा कहां मानते हैं।।०७
बड़ा जरूरी होता है कुछ बातों पर गुमनामी का पर्दा
अमीर की बेटी घर से निकलती है अंधेरे में
बेवा गरीब की दिन के उजाले मे मजूरी पे गई
हुआ बदनाम कौन सभी जानते हैं
पर बड़े को बुरा कहां मानते हैं।।०७