चिरंजीव साह कस्बे के धनाढ्य लोगो मे से एक थे पर लक्ष्मी तो चंचला होती हैं समय बदला अब दाने दाने के मोहताज हो गये। बचपन जितना सुखपूर्वक बीता था बुढापे मे उतनी ही ज्यादा कठिनाई धीरे धीरे बच्चे राह पर आ गये तो घर की तंगहाली समाप्त हुई। इस कठिनाई मे साह ने बहुत कुछ गंवाया इलाज के अभाव मे पत्नी चल बसी अब बुढ़ापे मे राम का नाम ही सहारा था। कस्बे के बाहर एक जीर्ण-शीर्ण मंदिर था।
साह ने उसकी साफ सफाई की और दिन भर वहीं रह कर राम का भजन करने लगे और मंदिर की देखभाल करते पेड पौधे लगाते। धीरे धीरे वहां और भक्तो का जमावड़ा होने लगा शाम को कीर्तन की मंडली बैठने लगी। गांव के ही नियरी यादव, पांचू सिंह और भुगत मल्लाह चार लोगों ने नित्य शाम को कीर्तन करना तय किया। सुर ताल सब ठीक था औ, निस्वार्थ भाव से ईश्वर भजन होता तो लोगो को भी मजा आने लगा धीरे धीरे श्रोताओं की संख्या बढ़कर सैकड़ो मे पहुंच गई देवी मंदिर मे चढ़ावा भी आने लगा।
कुछ दिन तक तो चिरंजीव इसका जिम्मा उठाते रहे, अपनी धोती की टेंट मे रुपये दबाकर रखते थे पर जब बोझ दिनोंदिन बढने लगा तो पांचू के हाथ मे देकर बोले भईया लक्ष्मी बडे बडों का मन फेर देती हैं फिर मेरा तो जीवन भर इनसे विशेष स्नेह रहा है। अब आप ही यह जिम्मा संभालो। पांचू नियरी मास्टर और भुगत प्रधान के गवाही मे कोषाध्यक्ष बन गये। तय हुआ अगले साल गंगा नहान के दिन से मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू होगा सबने सहमति दी।
अगले साल इन भक्तों की देख रेख और जनसहयोग से भव्य मंदिर निर्माण और विशाल भोज का आयोजन हुआ। कई कोस के गांवों से सैकड़ो लोग जुटे खूब कीर्तन भजन भी हुआ चारो ओर खूब धन्य धन्य हुआ। पर धार्मिक कार्य इतनी सहजता से नही होता, कल्याणार्थ कार्य मे कुछ खटमल भी होते है।
इतना भव्य आयोजन किया इतना खर्चा हुआ अपने पास से एक भी रुपया तो लगाया नही होगा।
गांव मे इन विषयों पर दूसरा धड़ा बनने मे समय नही लगता। अब इनके खिलाफ विरोध की बातें होने लगी
मसलन ये तो धर्म की आड़ मे चोरी कर रहे हैं,
चेहरे की चमक देखो इन बूढों के बुढ़ापे मे भी चारो कैसे लग रहे हैं, ऐसी अनगिनत बातें होने लगीं।
ऐसी ही कुछ इनके कानो तक पड़ी, कोरी धातु पर चोट करो तो उसकी पीड़ा की टंकार तेज होती है। श्रद्धापूर्वक ईश्वरीय भक्ति करते इन चारो को भी ऐसा ही दर्द महसूस हुआ। नियरी और पांचू ने तो अपनी गृहस्थी का हवाला दे किनारा कर लिया भुगत कुछ दिन तक निभाते रहे पर पारिवारिक दबाव मे वह भी समझौता कर बैठे। साह अकेले रह गये, कीर्तन का सुर कुछ कमजोर हो गया था। विरोधियों ने पंचायत बैठायी और इनके उपर हेर फेर का इल्जाम लगा तथा इनसे मंदिर की व्यवस्था का कार्य वापस ले लिया गया। नये व्यवस्थापक बड़े शौकीन थे धीरे धीरे कीर्तन की जगह, जगराता और फिर चर्चाओं ने ले लिया।
शाम को अब झाल मजीरों की जगह कहकहों और अटटहासों ने ले लिया। गांव के लोग में भी धीरे धीरे आस्तिकता बढने लगी थी मंदिर पर भक्तों की आवाजाही कम होने लगी थी।
आधी रात हो गई चिरंजीव को नींद नही आ रही थी चादर बदन पर डाल मंदिर की तरफ अनायास ही निकल पड़े। थोड़ी दूरी से आवाजें सुनायी दे रही थीं। अट्टहास के बीच कुछ मादा सुर मे कहकहे भी सुनायी दे रहे थे। साह दुखी मन से ईश्वर का ध्यान करते बोझिल कदमों से घर वापस लौट आये।
#Ssps96
:- शशिवेन्द्र "शशि"